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तांत्रिक विधि से होती है लछुआड़ में मां काली की पूजा

जमुई। वेद और पुराणों में उल्लेख है कि यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूजयन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा तथा सत्कार होता है उस कुल में दिव्य गुण दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होते हैं और जिस कुल में नारियों की पूजा नहीं होती है वहां सब क्रिया निष्फल है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Nov 2018 06:55 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 06:55 PM (IST)
तांत्रिक विधि से होती है लछुआड़ में मां काली की पूजा
तांत्रिक विधि से होती है लछुआड़ में मां काली की पूजा

जमुई। वेद और पुराणों में उल्लेख है कि यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूजयन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा तथा सत्कार होता है उस कुल में दिव्य गुण दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होते हैं और जिस कुल में नारियों की पूजा नहीं होती है वहां सब क्रिया निष्फल है। आद्य शक्ति मां काली भी नारी स्वरूपा हैं। इस प्रकार लछुआड़ में मां काली की पूजा व अराधना चार शताब्दी पूर्व से पौराणिक परंपरा के अनुसार नेम निष्ठा के अनुरूप होती चली आ रही है। लछुआड़ का यह प्रसिद्ध काली मंदिर तप साधना के लिए शक्तिपीठ स्थल के रूप में माना जाता है।

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लछुआड़ का ऐतिहासिक है पहचान : इस कस्बे की ऐतिहासिक रूप से दो ही पहचान है, एक यहां की गिद्धौर रियासत के द्वारा स्थापित मां काली मंदिर तो दूसरी भगवान महावीर की जन्मकल्याणक भूमि, दोनों परंपरागत रूप से एक अलग महत्व रखता है। यहां यह कहना मुश्किल है की काली पूजा की शुरूआत कब और कैसे हुई। इस बात की जानकारी गांव एवं आसपास के लोग नहीं बता पाते हैं। ऐसी किवदंती है कि लछुआड़ गिद्धौर रियासत के अधीन था। महाराजा शिकार के लिए प्राय: लछुआड़ के जंगल आया करते थे। इसी क्रम में शक्ति के उपासक रहे महाराजा पूरनमल व उनके वंशज महाराजा जयमंगल ¨सह ने चार शताब्दी वर्ष पूर्व लछुआड़ में एक काली मंदिर का निर्माण कराया वहीं मन्दिर से सटे एक किला भी बनवाया। जहां महाराजा जंगल का विहार करने के बाद उस किला में आराम करते थे। आज भी वह किला जीर्ण शीर्ण अवस्था में विद्यमान है।

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पूजा संपादन का अनोखा संगम:

लोक परंपरा व पौराणिक विधान के अनुसार लछुआड़ में मां काली मंदिर में काली पूजन का अनोखा संगम देखने को मिलता है। पूजा विधि विधान के संदर्भ में पूजा समिति के अध्यक्ष सह पंचायत के मुखिया शक्तिधर मिश्र बताते हैं कि यहां तंत्र पद्धति से पौराणिक परंपरा के अनुरूप पूजन कार्य संपादित कराया जाता है। तांत्रिक पद्धति से पूजा संपन्न कराने के लिए देवघर के विद्वान पंडित तंत्र विधान की कुंडलिनि पद्धति से मां काली की पूजा अर्चना करवाते हैं7उन्होंने बताया कि पूजा में मां काली को शुद्ध देशी घी में छप्पन प्रकार का भोग लगाया जाता है। काली पूजा के अवसर पर खेल तमाशों का होता है आयोजन: यहां के प्रसिद्ध मेले में कभी मल्लयुद्ध का अभ्यास, तीरंदाज, नृत्य संगीत प्रतियोगिता,का आयोजन हुआ करता था। वर्तमान समय में टावर झूला, काठघोड़ा, सर्कस, जादू, मौत का कुआं, ब्रेक डांस झूला जैसे कई मनोरंजक खेल तमाशे मेले की शोभा बढ़ाते हैं।


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