पानी की कमी से परेशान रहे छठव्रती
जमुई। मैं समय हूं। मैं वही समय हूं जिसने कभी नदी में पुल बनाने पर मजबूर किया था आज पानी जुगाड़ करने को बाध्य कर दिया हूं।
जमुई। मैं समय हूं। मैं वही समय हूं जिसने कभी नदी में पुल बनाने पर मजबूर किया था आज पानी जुगाड़ करने को बाध्य कर दिया हूं। मुझे पहचानो, समझो और सुधरो वरना कहीं आने वाला छठ बिना पानी का न करना पड़े। लाख परेशान होने के बावजूद पानी मयस्सर न हो। यह तो बस चेतावनी है, कल के संभावित भविष्य का झलक भर है। नहीं संभले-संभाले तो पानी के लिए तरस जाओगे। याद करो पिछले व उसके पिछले वर्ष तथा कुछ वर्ष की वह तस्वीर, जब छठ करने लोगों को घुटने भर पानी में उतरना पड़ता था। याद है न जब आंजन नदी में पुलिया बनाना पड़ा था और आज सिर्फ बालू के सहारे छठ करनी पड़ी। नदी में खेलते-कूदते व उमंग से किलकारी मारते तुम्हारे बच्चे की खुशी इस बार गायब थी। न ही छपाक की आवाज न ही पानी में बच्चे दौड़ लगा पा रहे थे। नाली के रूप मे सिमटी नदी में अर्घ्य देकर संतोष करना पड़ा। शीशे की तरह साफ पानी की जगह गाद भरी जल से अर्पण किया। मिट्टी ऐसी कि एक जगह से दूसरे जगह जाना मुश्किल, चाह कर दोस्तों व पड़ोसी के डाला के पास पहुंचना मुश्किल था। हर कदम मिट्टी रोक रही थी तो कंकड़ कांटा बना था। उम्मीद की अब साफ व स्वच्छ पानी में दोस्तों संग घूमने की याद ताजा कर दी होगी। शहर के पत्नेश्वर घाट, त्रिपुरारी घाट, हनुमान घाट, कल्याणपुर घाट आदि घाटों पर भी पानी पर्याप्त उपलब्ध नहीं था। लोग किसी प्रकार अर्घ्य दे पा रहे थे। भाई मैं समय हूं। तुम्हारे कृत्य का गवाह हूं और तुम्हारे किए का परिणाम बनकर आता हूं। देख लो इस बार शासन-प्रशासन व तुम्हारे लाख प्रयास, के बावजूद पानी के लिए कैसे परेशान रहे। समझ सकते हो तो समझो, नदी का सम्मान व बचाव का उपाय ढूंढो और अपने कर्तव्य का अक्षरश: पालन करो वरना मेरा क्या मैं तो समय हूं पहिया की तरह घूमता रहूंगा और तुम्हें बेबस व लाचार बने देखता रहूंगा।