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    Bihar Election: बिहार के इस सीट मुकाबला दिलचस्प, NDA का रहेगा जलवा या फिर तेज होगी 'लालटेन' की लौ

    Updated: Sat, 01 Nov 2025 03:53 PM (IST)

    झाझा विधानसभा क्षेत्र में एनडीए का वर्चस्व रहेगा या लालू यादव का जादू चलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। जातीय समीकरण अनुकूल होने के बाद भी यहां लालू का प्रभाव नहीं दिखा है। 2000 से एनडीए को लगातार जीत मिली है, लेकिन 2015 में भाजपा ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)

    जागरण संवाददाता, जमुई। झाझा विधानसभा क्षेत्र में एनडीए का जलवा कायम रहेगा या फिर पहली बार लालू का जादू चलेगा, यह सवाल सिर्फ झाझा ही नहीं, बाहर के लोगों का भी है। सवाल यूं ही नहीं है।

    जातीय गणित अनुकूल होने के बाद भी यहां कभी लालू प्रसाद का जादू नहीं चला है। इस विधानसभा क्षेत्र से जनता दल को 1990 में पहली और आखिरी जीत मिली थी। तब लालू प्रसाद पार्टी की पहचान नहीं थे। उनके नेतृत्व में लड़े गए 1995 के चुनाव में यहां कांग्रेस प्रत्याशी रविंद्र यादव के सामने जनता दल के प्रत्याशी शिवनंदन झा को हार का सामना करना पड़ा था।

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    इसके बाद 2000 के विधानसभा चुनाव से यहां लगातार एनडीए को मतदाताओं ने अपनी पसंद बनाया। 2000 विधानसभा चुनाव के अलावा 2005, 2010 और 2020 में जनता दल यू के प्रत्याशी के तौर पर दामोदर रावत को मतदाताओं ने प्रतिनिधित्व का अवसर दिया।

    2015 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का कमल डॉ. रविंद्र यादव के आंगन में खिला था। तब भी वहां का परिणाम और अप्रत्याशित आया था और महागठबंधन में नीतीश और लालू के साथ रहते हुए भी यहां महागठबंधन की दाल नहीं गली थी। तब महागठबंधन से जदयू प्रत्याशी दामोदर रावत थे।

    उक्त चुनाव में जमुई जिले में झाझा ही एक ऐसी सीट थी, जहां से एनडीए की प्रतिष्ठा बची थी। इस चुनाव में पहली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव और दामोदर रावत आमने-सामने हैं।

    जयप्रकाश नारायण यादव की परोक्ष-अपरोक्ष पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह से राजनीतिक टक्कर होती रहती थी, लेकिन दामोदर रावत से पहली बार सामना हो रहा है। परिणाम क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन झाझा का मुकाबला दिलचस्प हो गया है।