इंदपैगढ़ में मिली बेशकीमती प्राचीन मूर्ति
जमुई। ऐतिहासिक इंदपैगढ़ से खेल मैदान मनरेगा से समतलीकरण के दौरान बेशकीमती प्राचीन मूर्ति ि
जमुई। ऐतिहासिक इंदपैगढ़ से खेल मैदान मनरेगा से समतलीकरण के दौरान बेशकीमती प्राचीन मूर्ति मिली है। मूर्ति खंडित है तथा हाथ में अर्द्ध पुष्पित कमल का फूल प्रतीत हो रहा है। मूर्ति को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कोई इसे लक्ष्मी की मूर्ति बता रहा है तो कोई पालवंश के अंतिम शासक राजा इंद्रपाल की रानी की बेशकीमती मूर्ति बता रहा है। हालांकि इस मूर्ति का चित्र देखकर पुरातत्वविदों का राय अलग है। बिहार के ऐतिहासिक स्थलों और मूर्तियों की सरकारी स्तर पर खोज हाल तक जुटे रहे पुरविद अरबिंद सिन्हा रॉय के मुताबिक यह शद्यजात (वैष्णव धर्म में नवजात भगवान विष्णु का उनकी मां के साथ दृश्य) है। यह अलग से बनी मूर्ति नहीं है, बल्कि इसे पहाड़ों में ही खोदकर मूर्ति का शक्ल दिया गया है जो किसी कारणवश टूटकर जमींदोज हो गया होगा। जबकि जमुई के प्रख्यात इतिहासकार पुरातत्वविद संग्रहालय के संस्थापक डॉ. श्यामनंदन प्रसाद कहते हैं कि यह महामाया की प्रतिमा प्रतीत होती है, पर भाव-भंगिमा, रूप-विन्यास, केश-विन्यास और कान तथा हाथों के आभूषणों से लगता है कि यह यक्षणी भी हो सकती है। यहां अधिकतर मूर्तियां ऐसी ही पाई गई हैं जिसे जमुई म्यूजियम में रखा गया है। डॉ. प्रसाद की बात से बिहार संग्रहालय पटना के क्यूरेटर डॉ. रविशंकर भी सहमत हैं।
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पंचायत भवन में रखी गई है मूर्ति
मूर्ति को स्थानीय पंचायत भवन में रखा गया है। सूचना पर मौके पर पहुंचे एसडीओ लखींद्र पासवान एवं थानाध्यक्ष संजय विश्वास ने मूर्ति का अवलोकन किया साथ ही इसे सुरक्षित रखने की हिदायत दी है। इसकी सूचना पुरातत्व विभाग को भी सूचित किया गया है।
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मूर्ति बेचने की भी उठ गई चर्चा
इंदपै गढ़ में मनरेगा से खेल मैदान का समतलीकरण किया जा रहा है। इसी दौरान एक शिलापट एवं उक्त खंडित मूर्ति मिली। रविवार की सुबह तेजी से यह चर्चा जोर शोर से होने लगी कि संबंधित पंचायत के मुखिया द्वारा समतलीकरण के दौरान मिली मूर्ति को बेचने के लिए कोलकाता ले जाया गया है। लेकिन अधिकारियों के पहुंचने के उपरांत मूर्ति सही सलामत पंचायत भवन में पाया गया।
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राजा इंद्रपाल का किला रहा है इंदपै गढ़
इंदपैगढ़ पाल वंश के अंतिम राजा इंद्रपाल उर्फ इंद्रद्युम्न का किला था । कहा जाता है कि पाल वंश की रानी कमल के पत्ता पर चल कर स्नान करने जाती थी और उसे श्राप था की जिस दिन पत्ता डूब जाएगा उसी दिन राजा का राज पाट भी डूब जाएगा। मूर्ति के हाथ में कमल के अर्द्ध पुष्पित फूल को देख लोग इसे रानी के कमल प्रेम से जोड़ कर देख रहे हैं।
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गुप्तकाल और पालकाल के मध्य की है मूर्ति : अर¨बद
पुरविद अरबिंद सिन्हा रॉय के मुताबिक यह मूर्ति पालकाल व गुप्तकाल के मध्य की है। पुरातत्व की भाषा में पोस्ट गुप्तकालीन कहा जाता है। इस प्रकार की मूर्ति सुल्तनगंज के अजगबीनाथ, मुरली पहाड़ी और बांका के मंदारहिल पर पाई गई है। यह शद्यजात ही है। मूर्ति की साफ-सफाई होगी तो महिला के साथ भगवान विष्णु भी बाल स्वरूप में दिख जाएंगे।