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नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उगाए जा रहे मलवरी रेशम के धागे

जमुई। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जहां कभी बंदुके गरजती थी आज मेहनतकश आदिवासी उन्हीं इलाकों में रेशम के धागे के लिए कुकून तैयार कर हजारों युवाओं को रोजगार दे रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 08:21 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 06:10 AM (IST)
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उगाए जा रहे मलवरी रेशम के धागे
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उगाए जा रहे मलवरी रेशम के धागे

जमुई। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जहां कभी बंदुके गरजती थी आज मेहनतकश आदिवासी उन्हीं इलाकों में रेशम के धागे के लिए कुकून तैयार कर हजारों युवाओं को रोजगार दे रहे हैं। प्रखंड के बौंगी बरमोरिया, ठाढी, नौवाडीह, दुलमपुर, पौझा पंचायत के जंगली इलाकों में बड़े पैमाने पर सखूवा एवं अर्जुन के पेड़ पर आदिवासी युवकों द्वारा रेशम विकास केन्द्र भागलपुर एवं रांची से शहतूत के लार्वा,अंडा लगाया जा रहा है जो 10 दिन में कीड़ा बन जाता है और पत्ता खाकर 30 से 40 दिन में कुकून के रूप में परिवर्तित हो जाता है। एक हेक्टेयर जंगल में तकरीबन बीस हजार कुकून तैयार होता है जिसकी कीमत बाजार में 80 हजार से एक लाख मिलती है। इसी कुकून से मलवरी रेशम के धागे एवं कपड़े तैयार होते हैं जो काफी हल्का एवं कीमती होता है। नौवाडीह पंचायत के किसानों ने तो अपने जमीन पर अर्जुन के पौधे लगाकर कुकून तैयार कर रहे हैं। पीपरा निवासी राजन सोरेन बताते हैं कि एक हेक्टेयर वन से हम 70 हजार का कुकून तैयार कर कमा लेते है। फतेपुर निवासी बासुदेव यादव इलाके में सैकड़ों आदिवासी को लार्वा मुहैया कराके तैयार कुकून खरीद लेता है फिर इसे मिल तक पहुंचाता है। दस वर्ष पूर्व तक चकाई में रेशम विकास केन्द्र था जो इन्हें प्रशिक्षण दिया करता था परंतु अब वह केन्द्र बंद कर दिया गया है। यदि फिर से रेशम विकास केन्द्र प्रारंभ कर कुकून पालकों को लार्वा मुहैया कराया जाए। इन्हें प्रशिक्षित किया जाए तो वनवासियों के लिए यह वरदान साबित होगा और घर बैठे किसान अपनी तंगहाली दूर कर सकेंगे।

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