वृद्ध विधवा और दलित लड़कियों की आवाज बन गई है साधना
जमुई। दलित लड़कियों को लज्जा बस अपनी जरूरी चीजों के लिए होने वाली परेशानी के खिलाफ मदद करनी हो अथवा समाज के सबसे पिछड़े तबके की विधवा वृद्ध महिलाओं को पेंशन दिलाना हो साधना शोषण के विरुद्ध लड़ाई में एक जाना पहचाना नाम बन चुकी है।
जमुई। दलित लड़कियों को लज्जा बस अपनी जरूरी चीजों के लिए होने वाली परेशानी के खिलाफ मदद करनी हो अथवा समाज के सबसे पिछड़े तबके की विधवा वृद्ध महिलाओं को पेंशन दिलाना हो साधना शोषण के विरुद्ध लड़ाई में एक जाना पहचाना नाम बन चुकी है। महज 30 वर्ष की उम्र में एक अधिवक्ता के रूप में अपनी पहचान से ज्यादा साधना को लोग अपने हर दुख दर्द में पुकारने लगे हैं। पदाधिकारियों को भी पता है कि साधना सच के साथ लड़ाई में किसी हद तक जा सकती।
जमुई के खैरमा में अपने नाना स्वर्गीय रामावतार सिंह के सामाजिक कार्यों के कारण इलाके में नाम और काम को देखकर बड़ी हुई साधना के पिता रतन प्रसाद सिंह जमुई के बिजली विभाग में काम करते हुए गंभीर रूप से बीमार हो गए। पदाधिकारी और कर्मचारी ने भी उनकी तकलीफ को अनसुना कर दिया। यहां तक कि उनका ट्रांसफर जमुई से उस कठिन परिस्थिति में भी जमुई से दूर बड़हिया हो गया। इस विकट परिस्थिति में अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण साधना अपने पिता के लिए पुत्र के रूप में ऑफिस का सारा काम संभालने के साथ-साथ पिता को लाने ले जाने और इलाज कराने में संघर्ष करने लगी। इन संघर्षों के दौरान उसे बीमार पिता की लाचारी का लाभ उठाकर शोषण करने वाले कर्मचारियों पदाधिकारियों से भी लड़ाई लड़नी पड़ी। वह विद्युत विभाग के सचिव तक पटना जाकर इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के बाद 4 साल के लंबे संघर्ष के दौरान पिता का स्थानांतरण जमुई में कराने के बाद उन्हें इलाज कर ठीक कराया। साधना बताती हैं कि तब से यह सिलसिला जो चला है अब कोरोना के संकट में भी एक दिन घर पर नहीं रह पाती हूं। अपने ही गांव खैरमा की राम प्रभादेवी पति की मृत्यु के बाद प्लास्टिक डाल कर झोपड़ी में रह रही थी तो उसे उठाकर जमुई के पदाधिकारियों के समक्ष लाया। लंबी लड़ाई के बाद राशन कार्ड दिलाया और घर बनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान जब गरीबों के बीच खाद्यान्न वितरण की बात आई तो राशन विक्रेता के खिलाफ लड़ाई में भी वह पीछे नहीं हटीं और जरूरतमंदों को लेकर डीएम से लेकर पीएम तक अपनी आवाज को बुलंद कर उसे हक दिलाने का प्रयास किया। जमुई में एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म और हत्या मामले में पीड़ित के गरीब माता-पिता केस मुकदमे की झंझट से पूरी तरह बेखबर थे तो उसे न्याय दिलाने के लिए डीआइजी मनु महाराज के पास भी कई बार लोगों को लेकर जा चुकी है। वह बताती हैं कि खाली समय में वह अपने ही गांव के दलित बस्ती में 25-30 बच्चों को साफ सुथरा रहने की प्रेरणा देकर अपने घर पर निश्शुल्क शिक्षा देती है। दलित जवान लड़कियों को उनकी जरूरत की चीजें मुहैया कराने के साथ किसी को स्कूल कॉलेज में नाम लिखाना हो या अस्पताल में समुचित इलाज के लिए मदद की जरूरत हो साधना शोषण के खिलाफ एक मजबूत आवाज बन गई। अब जमुई के हर तबके के प्रशासनिक पदाधिकारी और लाचार मजबूर लोगों के साथ महिलाओं के बीच साधना शोषण के विरुद्ध एक बड़ा और जाना पहचाना नाम है।