Move to Jagran APP

मिट्टी गढ़ने वाले कुम्हारों पर मेहरबान नहीं हैं लक्ष्मी

जमुई। दीपोत्सव का पर्व दीपावली में अब एक पखवारे से भी कम का समय बचा है लेकिन मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों के चूल्हे की आग अभी ठंडी ही पड़ी है। कोरोना के कारण पहले ही कमर टूट चुकी कुम्हारों का चाक पर मिट्टी से सने हाथों से मिट्टी को आकार देने की रफ्तार अभी भी मंद है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 05:33 PM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 05:33 PM (IST)
मिट्टी गढ़ने वाले कुम्हारों पर मेहरबान नहीं हैं लक्ष्मी
मिट्टी गढ़ने वाले कुम्हारों पर मेहरबान नहीं हैं लक्ष्मी

जमुई। दीपोत्सव का पर्व दीपावली में अब एक पखवारे से भी कम का समय बचा है, लेकिन मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों के चूल्हे की आग अभी ठंडी ही पड़ी है। कोरोना के कारण पहले ही कमर टूट चुकी कुम्हारों का, चाक पर मिट्टी से सने हाथों से मिट्टी को आकार देने की रफ्तार अभी भी मंद है।

loksabha election banner

दीपावली को लेकर एक से बढ़कर एक चाइनिज दीये के साथ ही इलेक्ट्रानिक्स डिजायनर बल्बों की दुकान सजनी शुरू हो गई है। इनकी तड़क-भड़क के आगे मिट्टी के दीये मानो गुम हो गए हैं। अब यह सिर्फ परंपरा को जीवित रखने के लिए ही तैयार किया जा रहा है। कहा जाता है कि जब भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास से अयोध्या वापस लौटे थे तो उनके स्वागत में मिट्टी के दीए जलाए गए थे और तब से ही दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीए जलाने का प्रचलन है। परंतु आज के इस हाईटेक जमाने में मिट्टी के दीयों का स्थान चाइनिज बल्ब व देसी-विदेशी इलेक्ट्रानिक दीये और मोमबत्तियों ने ले ली है। परिणामस्वरूप इस धंधे से जुड़े कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है। आज मिट्टी के दीये बनाने में श्रम और लागत अधिक हो रहा है। जिसके अनुरूप मुनाफा नहीं मिल पा रहा है। कुम्हार के परिवारों के साल भर का भरण पोषण दीपावली के पूर्व एक माह के कारोबार पर निर्भर होता था। यह औपचारिकता मात्र ही रह गई है। भोला पंडित, लाखो पंडित, गुलेश्वर पंडित आदि ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व दीपावली के मौके पर इतनी कमाई जरूर हो जाती थी कि साल भर परिवार का भरण-पोषण आसानी से चल जाता था पर इस पुश्तैनी काम में अब कुछ नहीं रखा है। परिवार के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसलिए धंधे से अच्छी मजदूरी ही है। कोरोना के कारण पहले से ही मंदी है। हाल के दिनों में मिट्टी के दीये व मूर्ति बनाने तथा उसके सजावट में लगने वाले रंग आदि की कीमत बढ़ी है। इससे लागत अधिक हो रहा है और मुनाफा कम। दूसरी और पंकज सिंह, कामदेव सिंह, लक्खीनारायण वर्णवाल ने कहा कि भले ही आज दीपावली पर्व पर अधिकांश घरों के छज्जे के ऊपर विद्युत झालरों अपनी रंग-बिरंगी रोशनी बिखेरती हो, लेकिन जिन घरों की छतों पर मिट्टी के दीये की रोशनी अपनी छटा बिखेर देती है वह मन को लुभाती है। अभी भी दीये का क्रेज कम नहीं हुआ है। मिट्टी लाने व दीए बनाने से लेकर पकाने में जो खर्च होता है इसके हिसाब से लाभ नहीं हो पाता है। वर्तमान परिस्थिति में इस कला को बचाने के लिए सरकार की मदद की दरकार है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.