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धूमधाम से मनाया गया सतुआनी पर्व

जमुई। हिदू सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति का प्राचीनतम त्योहार सतुआनी किसानों के लिए वैशाख महीने में नए रबी फसलों की सौगात वाला त्योहार है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 05:02 PM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 06:11 PM (IST)
धूमधाम से मनाया गया सतुआनी पर्व
धूमधाम से मनाया गया सतुआनी पर्व

जमुई। हिदू सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति का प्राचीनतम त्योहार सतुआनी किसानों के लिए वैशाख महीने में नए रबी फसलों की सौगात वाला त्योहार है। रबी फसल की कटाई एवं नई फसल आने की खुशी में किसान यह पर्व मनाते हैं। चैत्र मास की संक्रांति तिथि को मनाया जाने वाला पर्व सतुआनी बुधवार को जिले में श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस मौके पर नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में घर की बुजुर्ग महिलाओं ने चना एवं जौ से तैयार सत्तू, आम की चटनी व आम का टिकोला, गुड़ भगवान को भोग लगाकर सपरिवार उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। सतुआनी पर्व को लोग विसुआ के नाम से भी जानते हैं। हिदू सनातन धर्म का पर्व सतुआनी पर स्नान एवं दान का महत्व है। व्यवहार न्यायालय परिसर स्थित मंदिर के पंडित आचार्य ललन झा के अनुसार मेष संक्रांति में स्नान-दान का काफी महत्व है। इससे धन, सुख, ऐश्वर्य, शांति, निरोगता, बल, बुद्धि एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर सत्तू, आम, गुड़, घी, पंखा, मिट्टी के बर्तन, ठंडा जल, छाता, अन्न दान एवं पंचांग दान करने का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुरूप संक्रांति तिथि को ही शिवलिग पर मिट्टी के घट (घड़ा) के माध्यम से निरंतर बूंद-बूंद जलाभिषेक की व्यवस्था की जाती है। जो एक माह तक चलता है। कथा पुराण के अनुसार वैशाख महीने की तपती धूप में शिव को तृप्त करने के लिए यह व्यवस्था की जाती है। सतुआनी के पश्चात रात में बेसन से निर्मित कढ़ी-बढ़ी एवं चावल का भोग लगा परिवार के सभी सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इसके अलावा रात में बने भोजन को सतुआनी के अगले दिन सुबह बासी प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह इसलिए किया जाता कि सतुआनी के अगले दिन नित्य प्रयोग होने वाले चूल्हे को नहीं जलाया जाता है। कई क्षेत्रों में इस तिथि को जूड़ शीतल के नाम से जाना जाता है। जिसमें घर की बुजुर्ग महिला अपने परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर शीतल (बासी) जल छिड़क कर वर्ष भर शीतल रहने की कामना करती हैं।

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