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बरकरार रही जिप अध्यक्ष - उपाध्यक्ष की कुर्सी

आखिर जिला परिषद की अध्यक्ष आभा रानी तथा उपाध्यक्ष रामबाबू पासवान की कुर्सी बरकरार रह गई। इस के साथ ही एक महीने से चले आ रहे राजनीतिक चर्चाओं पर विराम लग गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 11:01 PM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 11:01 PM (IST)
बरकरार रही जिप अध्यक्ष - उपाध्यक्ष की कुर्सी
बरकरार रही जिप अध्यक्ष - उपाध्यक्ष की कुर्सी

जहानाबाद

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आखिर जिला परिषद की अध्यक्ष आभा रानी तथा उपाध्यक्ष रामबाबू पासवान की कुर्सी बरकरार रह गई। इस के साथ ही एक महीने से चले आ रहे राजनीतिक चर्चाओं पर विराम लग गया। समाहरणालय स्थित विकास भवन में शनिवार को जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई। इस मौके पर उपविकास आयुक्त रामरूप प्रसाद भी मौजूद थे। मत विभाजन तथा अविश्वास नोटिस पर बहस को लेकर समाहरणालय के मुख्य द्वार पर सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किये गए थे। किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। निर्धारित समय पर जिला परिषद के अध्यक्ष आभा रानी सहित सात जिला पार्षद बैठक में शामिल होने के लिए पहुंचे। सबसे पहले अविश्वास नोटिस पर बहस आरंभ हुआ। जिप के पूर्व अध्यक्ष संगीता ¨सह, अनुराधा सिन्हा, धर्मेंद्र पासवान तथा देवेंद्र कुमार उर्फ लाला ¨सह ने बहस में हिस्सा लिया। उनलोगों ने अध्यक्ष पर जिला परिषद के कार्यों में मनमानी किए जाने का आरोप लगाया। इन लोगों द्वारा बहस किए जाने के उपरांत जिप अध्यक्ष ने उसका जवाब दिया। उन्होंने कहा कि जिन ¨बदू पर अविश्वास नोटिस दिया गया है सिर्फ उन्हीं ¨बदुओं पर बहस होनी चाहिए थी इसमें व्यक्तिगत आलोचना उचित नहीं था। पक्ष-विपक्ष के बहस के उपरांत मतदान आरंभ हुआ। अविश्वास नोटिस के पक्ष में छह तथा विरोध में मात्र जिप अध्यक्ष ने मतदान किया। हालांकि अध्यक्ष-उपाध्यक्ष को अपदस्थ करने के लिए 13 सदस्यीय सदन में सात मतों का होना जरूरी था। लेकिन अविश्वास नोटिस के पक्ष में मात्र छह मत पड़ने के कारण अध्यक्ष-उपाध्यक्ष की कुर्सी काबिज रही। अध्यक्ष ने कहा कि वह सभी सदस्यों की सहमति से विकास कार्यों का कार्यान्वयन करेंगी। उन्होंने कहा कि सदस्यों को भी चाहिए कि वे लोग जनता के व्यापक हित में विकास कार्यों के कार्यान्वयन में सहयोग करें। इधर पूर्व अध्यक्ष अनुराधा सिन्हा ने कहा कि यह अजीब विडंबना है कि अध्यक्ष बनने में जिन्हें आधे से ज्यादा वोट मिलता है वे अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनते हैं लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में कुल सदस्यों में से आधे से ज्यादा मत होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस तरह के कानून में अविलंब सुधार की जरूरत है ताकि लोकतंत्र की रक्षा हो सके।

पहले तय थी एक सितंबर की तिथि

इसके पहले मत विभाजन के लिए एक सितंबर की तिथि निर्धारित की गई थी। अध्यक्ष- उपाध्यक्ष समर्थक जिला पार्षद विकास भवन भी पहुंच चुके थे। लेकिन तकनीकी कारणों के कारण उस दिन मत विभाजन नहीं हो सका। कारण यह था कि प्रशासन के लोगों द्वारा यह कहा गया कि मत विभाजन के लिए कम से कम एक पखवाड़े का समय देना होता है। लेकिन इस तिथि में इसका अनुपालन नहीं किया गया है। पुन: 15 सितंबर की तिथि निर्धारित की गई थी।


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