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किताब में लगे रहने के बजाय निर्धारित करें समय

पूरे दिन किताब लेकर बैठने के बजाय निर्धारित समय तक ही पढ़ाई करें लेकिन जब पढ़ने को बैठें तो ईमानदारी पूर्वक उसमें तल्लीन हो जाएं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 11:35 PM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 06:15 AM (IST)
किताब में लगे रहने के बजाय निर्धारित करें समय
किताब में लगे रहने के बजाय निर्धारित करें समय

जहानाबाद। पूरे दिन किताब लेकर बैठने के बजाय निर्धारित समय तक ही पढ़ाई करें लेकिन जब पढ़ने को बैठें तो ईमानदारी पूर्वक उसमें तल्लीन हो जाएं। ऐसा देखा जाता है कि कई बच्चे घंटों पढ़ते हैं लेकिन अच्छा परिणाम नही ला पाते हैं जबकि कुछ बच्चे कम समय तक ही पढ़ाई करते हैं और बेहतर करते हैं। इसका कहने का तात्पर्य है कि लोगों को दिखाने के लिए किताब लेकर बैठने के बजाय अपनी विषय वस्तु के अध्ययन के लिए पढ़ने बैठें। जब आपलोग यह सोंच लेंगे कि हमे पूरे तन्यता के साथ अध्ययन करना है तो निश्चित ही जो समय आप पढ़ाई के लिए देंगे उसका आप पूरा सदुपयोग करेंगे। कई बार ऐसा देखा जाता है कि अभिभावक भी बच्चों को हमेशा पढ़ने के लिए डांटते रहते हैं। इससे भी बच्चों में किताब लेकर बैठने की आदत पड़ जाती है। वैसे बच्चे बैठे तो जरूर रहते हैं लेकिन पूरे मन से अध्ययन नही कर पाते हैं। यह बातें अनुमंडल पदाधिकारी निवेदिता कुमारी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए दैनिक जागरण द्वारा आयोजित बाल संवाद कार्यक्रम में शांतिकुंज पब्लिक स्कूल के बच्चों के बीच कही। उन्होंने बच्चों को प्रेरित करते हुए कहा कि पढ़ाई से परिवेश का कोई लेना देना नही है। कई लोग परिवेश का हवाला देकर अपनी नाकामी छुपाने का प्रयास करते हैं। जबकि मैं अपने बारे में खुद बताती हूं कि मैं पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश का रहने वाली हूं। मेरे परिवार में कोई भी व्यक्ति प्रशासनिक सेवा में नही थे। मेरी मां शिक्षिका थी। इस परिवेश में रहने के बावजूद मैने अपने आपको बीपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा के योग्य बनाया और आज आपलोगों के बीच अनुमंडल पदाधिकारी के रूप में मौजूद हूं। उन्होंने कहा कि गांव हो या शहर सभी जगह पढ़ने वाले बच्चे होते हैं। जो अपने लक्ष्य को एकाग्रचित होकर मनन करते हैं वे सभी परिस्थितियों में उसके अनुरूप चलने का मार्ग ढूंढ़ ही लेते हैं। ऐसा कदापि नही है कि बड़े शहरों के बच्चे ही बेहतर कर सकते हैं। अनुमंडल पदाधिकारी ने बच्चों को प्रेरित करते हुए कहा कि अपने अंदर बड़ों के प्रति सम्मान का भाव विकसित करें। जब आप बड़ों को सम्मान करेंगे तो उनकी हर एक सीख पर अमल भी करेंगे। इस पद पर रहते हुए भी मैं हमेशा बड़ों को सम्मान करना नही भूलती हूं। जब कभी कार्य की बोझ से अपने आपको दबी महसूस करती हूं तो बचपन की वह घटना याद आता है जब मां हमलोगों को खाना देने के साथ-साथ विद्यालय के लिए तैयार भी करती थी और खुद भी विद्यालय के लिए ससमय जाती थी। उससे हमे अब भी यह संबल प्राप्त होता है कि जब मां इतने कार्य के बावजूद भी प्रतिदिन ससमय विद्यालय पहुंचती थी तो मैं कार्य की बोझ से फिर क्यों डरूं। उन्होंने बच्चों को सीख देते हुए कही कि आपलोगों को भी काम के बोझ से डरना नही चाहिए। उसे प्राथमिकता के आधार पर हल करना चाहिए। कई बच्चे पहले से पढ़ाई पर ध्यान नही देते हैं लेकिन जब परीक्षा नजदीक आता है तो अचानक उनकी निद खुलती है। यदि सत्र के प्रारंभ समय से ही अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया जाए तो आप सहज तरीके से परीक्षा में बेहतर अंक प्राप्त कर सकते हैं। बाल संवाद कार्यक्रम में शांतिकुंज पब्लिक स्कूल के बच्चों ने अनुमंडल पदाधिकारी से कई सवाल पूछे। जिसका उन्होंने बड़े ही मजेदार तरीके से प्रेरक जवाब दिया। यहां प्रस्तुत है उन प्रश्नों का कुछ प्रमुख अंश:- प्रश्न- मैडम, आपको एसडीओ बनने की प्रेरणा कैसे मिली।

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सलोनी श्रीराज

देखिए, बचपन से ऐसा कुछ नही था कि मैं बिहार प्रशासनिक सेवा में आना चाहती थी। मेरा परवरिश में भी एक सामान्य परिवार में हुआ था। परिवार के दूर-दूर के रिश्तेदार तक कोई भी इस तरह के पद में नही थे। लेकिन जब आगे की पढ़ाई के लिए पटना आई तो अपनी सहपाठियों से इसकी विशेष जानकारी मिली। मुझे यह भी लगा कि यह ऐसा क्षेत्र है जिसमे समाज के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। जिसके कारण मैने बिहार प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी प्रारंभ कर दी। प्रश्न-मैडम, जब आपको बीपीएससी में सफलता मिली तो इसकी सूचना आपने सबसे पहले किन्हें देना बेहतर समझी।

तानिया कुमारी

उस समय बड़ा ही सुखद एहसास हुआ जब बीपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल हुई। हालांकि इससे पहले की परीक्षा में पीटी तो पास की थी लेकिन मेंस में सफलता नही मिली थी। जिसके कारण काफी निराशा भी हुई थी। कई दिनों तक रोती भी रही। लेकिन फिर अपने कार्य में जुट गई और यह सफलता मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी। मैने तुरंत इसकी सूचना अपनी मां को दी। वे खुशी से गले लगा ली। आज भी वह क्षण हमे भावुक कर देता है। प्रश्न- मैडम, आपका पसंदीदा विषय तथा खेल कौन सा है।

आदिती कुमारी

मेरा पसंदीदा विषय वनस्पति विज्ञान रहा है। इस विषय से ही मैने ऑनर्स की है। आज भी इस विषय से जुड़ने रहने का ईच्छा करता है। अगर जहां तक खेल की बात है तो खो-खो मेरा पसंदीदा खेल है। बचपन में इस खेल का खूब मजा लेती थी। मैं आपलोगों से भी कहती हूं कि पढ़ाई के समय मन से पढ़ें। लेकिन जब खेलना हो तो उसमे पूरी तरह रम जाएं। खेल से मानसिक थकान दूर होता है। प्रश्न- आपको विद्यालय में कभी दंड मिला था।

ध्रुव राज

हंसते हुए कहती हैं कि विद्यालय में छोटी मोटी गलती तो हो ही जाती है। लेकिन मैं होमवर्क के प्रति काफी सजग रहती थी। हमेशा यह प्रयास रहता था कि शिक्षकों की डांट नही सुनना पड़े। लेकिन कभी गलती हो ही जाती थी। हालांकि गलती दोबारा न हो इसकी सुधार में लग जाती थी। मैं आपलोगों से भी कहना चाहती हूं कि शिक्षकों की डांट को आप अपनी कमियों को दूर करने के रूप में उपयोग करें। प्रश्न- आप अपने कर्मियों के साथ कैसा बर्ताव रखते हैं। उनसे गलती होती है तो किस तरह की सजा देते हैं।

आयूष राज

एक पदाधिकारी होने के नाते मेरा पहला कार्य अपने कर्मियों को कार्य के लिए प्रेरित करना है। मैं उनलोगों के हौसले की आफजाई करने के साथ-साथ बेहतर करने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहती हूं। हालांकि कार्य में कभी-कभी कर्मियों से गलती भी होती है। तब यह आंकलन करना पड़ता है कि कर्मी की गलती जान बूझकर हुई है या फिर मानवीय भूल है। यदि मानवीय भूल से गलती होती है तो भविष्य में अपनी गलती सुधार लेने की सलाह देती हूं और ध्यान से काम करने के लिए प्रेरित भी करती हूं। लेकिन यदि जान बूझकर गलती का मामला आता है तो विधि सम्मत कार्रवाई की जाती है। प्रश्न- बड़े लोगों की डांट को आप किस रूप में लेते रहे हैं।

कनिष्का भारती

बचपन से ही मेरी आदत रही है बड़ों को सम्मान करने का। हालांकि बचपन में कुछ जिद के कारण मुझे डांट मिलती थी। कभी-कभी किसी सामान की जिद कर बैठती थी जिसे बड़े लोग अनावश्यक समझते थे। ऐसे में उनलोगों की डांट खानी पड़ती थी। अब बड़ा होने के बाद समझ में आता है कि हम गलत थे। आपलोग भी अपने अभिभावकों तथा गुरुजनों की डांट को गलत तरीके से नही लें। कई जिद वे इसलिए पूरा नही करते हैं क्योंकि वह आपके लिए हितकर नही है। यदि बड़े लोग मना करते हैं तो जिद करना गलत बात है। प्रश्न-मैडम, सरकारी कर्मियों पर घूस लेने का आरोप क्यों लगता है।

पुष्पल कुमार

देखिए, ऐसी बात नही है कि सभी कर्मी घूस लेते हैं। कई ऐसे ईमानदार कर्मी भी हैं जो अपनी इस छवि के लिए जाने जाते हैं। हां, मैं मानती हूं कि कुछ कर्मी रिश्वत लेकर पूरी व्यवस्था को बदनाम कर रहे हैं। हालांकि इसके लिए रिश्वत देने वाला भी कम जिम्मेदार नही है। लोगों की अपनी काम की जल्दी होती है ऐसे में रिश्वत की पेशकश कर्मियों से करते हैं जिससे इसका बढ़ावा मिलता है। सरकारी स्तर पर रिश्वत लेने वाले कर्मियों के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान है। सामाजिक स्तर पर भी इसके लिए लोगों को जागरूक होना होगा। सभी लोग यह सोच लें कि रिश्वत नही देनी है। तो ऐसे आदत पाल रखे लोग अपने आपही सही रास्ते पर आ जाएंगे। प्रश्न- आपको अपना कार्य करते समय परेशानी कब महसूस होती है।

स्नेहा राज

स्नेहा राज

मेरे विभाग के अंदर कई तरह के कार्य हैं। एक साथ कई कार्य करना होता है ऐसे में कभी-कभी परेशानी महसूस होती है। लेकिन उस वक्त मां की सीख याद आ जाती है कि वह एक साथ कई कार्य करती थी और तनिक भी विचलित नही होती थी। बस उसी सीख को आत्मसात करती हुई पुन: कार्य में जुट जाती हूं। जिसके कारण एक नई उर्जा मिलती है। प्रश्न- आपके प्रिय शिक्षक कौन थे और वे किस विषय के थे।

नेहा कुमारी

नेहा कुमारी

कई शिक्षक से आज तक मै प्रेरित हूं। बचपन में पढ़ाने वाले शिक्षकों से काफी कुछ सीखने को मिला। लेकिन जब मैं पटना में पढ़ाई कर रही थी तो एक जीएस के शिक्षक थे। जिनसे मैं काफी प्रेरित रहती थी। उनके प्रेरणा से कई कलिस्ट विषय वस्तु का सहजता से हल भी किया। शिक्षकों की प्रेरणा व्यक्ति के जीवन में पथ प्रदर्शक का कार्य करता है। प्रश्न- मैडम, आपने एसडीओ के पद को ही क्यों चुना जबकि आप विज्ञान की छात्रा थी।

नीतु राज

आपका सवाल बिल्कुल सही है। विज्ञान का छात्रा होने के नाते मैं मेडिकल के क्षेत्र में भी जा सकती थी। लेकिन मुझे एक साथ कई कार्य करना था। जिसके कारण मैने यह विभाग चुना। इस क्षेत्र में बड़ा स्कोप है। स्वास्थ्य, शिक्षा समेत जनसरोकार से जुड़े अन्य कई समस्याओं के निदान के लिए कार्य किया जा सकता है। उन कार्यों को करने में काफी सुकून मिलता है। प्रश्न-आप इतने बड़े पद पर हैं फिर भी आपको ऐसा लगा कि आप संतुष्ट नही हैं।

उजाला कुमारी

उजाला कुमारी

ऐसी बात नही है कि हम अपने कार्य से पूरी तरह संतुष्ट हैं। हमे समाज के सभी वर्गों के सेवा का अवसर मिलता है। हां, कभी जब लोगों की समस्याओं को दूर नही कर पाती हूं तो मन में पीड़ा होती है। किसी बेसहारे को देख ऐसी व्यवस्था स्थापित करने का ईच्छा होती है जिससे सभी की समस्या दूर हो सके। लेकिन हमलोग के पास जो संसाधन है उसके माध्यम से लोगों की समस्याओं के निदान की भरपूर कोशिश की जा रही है। मैं आम आवाम से भी यह अपील करती हूं कि प्रशासन के कार्यों में अपना सकारात्मक योगदान दें ताकि विकास की योजनाएं जमीन पर बेहतर तरीके से क्रियान्वित हो सके।


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