समाज के लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन रहा दिव्यांग मुकेश
जहानाबाद। कहते हैं कि यदि इरादा नेक हों तो मार्ग के सभी बाधा स्वत: दूर हो जाते हैं। नेक
जहानाबाद। कहते हैं कि यदि इरादा नेक हों तो मार्ग के सभी बाधा स्वत: दूर हो जाते हैं। नेक इरादा और लगन से जो कार्य किया जाता है, उसमें कुदरत का भी सहयोग हासिल होता है। चाहे फिर समस्या जो भी हो उसका निराकरण भी निकल जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ है पखरपुर निवासी परिखन पासवान के साथ। जब उसके बेटे को पोलियो रूपी दानव ने अपने गिरफ्त में लिया और वह दोनो पैर से दिव्यांग हो गया। हालांकि उस पिता को कुदरत की इस मार ने यह एहसास दिला दिया था कि अब उसका बेटा उसके बुढ़ापे का सहारा तो नहीं बन पाएगा। उल्टे ताउम्र उसे ही उसकी बोझ उठानी पड़ेगी। लेकिन कहते हैं कुदरत कुछ लेता है, उसके बदले में बहुत कुछ देता भी है। ऐसा ही हुआ उसके पुत्र दिव्यांग मुकेश के साथ। भले ही कुदरत की कहर से मुकेश का पैर जवाब दे दिया हो, लेकिन आज वह अपने हौसले के कारण दूसरे को मंजिल तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है। दिव्यांग होने के बावजूद भी वह ऑटो चलाकर अपने परिवार के लोगों का भरण पोषण करता है। दिव्यांगता के कारण नहीं हो रही थी शादी लोग दिव्यांगता को अभिशाप के रूप में लेते हैं। लोगों की सोच रहती है कि जो दिव्यांग है, वह दूसरे का बोझ कैसे उठा सकता है। इसके कारण मुकेश की शादी भी नहीं हो रही थी। लेकिन उसने अपनी किस्मत खुद लिखने की सोची। वह ऑटो चलाने लगा इससे उसे अच्छी खासी आमदनी होने लगी। अब वह लोगों का बोझ नहीं बना बल्कि दूसरे का बोझ उठाने में वह पूरी तरह सक्षम हो गया । तब क्या था उसके पास लड़की वाले शादी के लिए आने लगे। अब उसका भरा पूरा परिवार है। पूरा परिवार उसकी कमाई से बेहतर जीवन यापन कर रहा है। शुरुआती दौर में लाइसेंस मिलने में हुई थी परेशानी दिव्यांग होने के बावजूद भी वह ऑटो चलाना सीख गया। लेकिन जब वह इसके लिए लाइसेंस लेना चाहा। तो उसकी शारीरिक अक्षमता बाधक बन रही थी। हौसले से लवरेज मुकेश ने विभाग के लोगों के समक्ष दावा किया कि उसकी जांच कर ली जाए। यदि वह जांच में सामान्य लोगों से किसी भी तरह कम नजर आता हो तो फिर लाइसेंस नहीं दिया जाए। प्रशिक्षण लेने वाले अधिकारी भी उसके ड्राइ¨वग की कमाल को देख दंग रह गए। उसे लाइसेंस मिला और वह विधिवत रूप से ऑटो चलाने लगा। अन्य दिव्यांगों के लिए बना है प्रेरणा का स्त्रोत आज के समय में अच्छे खासे लोग जहां बेरोजगारी का रोना रोकर माता-पिता पर बोझ बने रहते हैं। वहीं मुकेश ने जिस तरह से दिव्यांगता को धत्ता बताकर अपनी जीवन की गाड़ी बेहतर तरीके से चला रहा है, वह दिव्यांगों के लिए तो प्रेरणा का स्त्रोत है हीं अन्य युवाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहा है। सरकार से मदद की दरकार मुकेश को इस बात का मलाल है कि दिव्यांगता के तहत जो योजनाएं सरकार चला रही है उसका लाभ उसे नहीं मिल रहा है। यदि सरकारी स्तर पर मदद मिलता तो अपने व्यवसाय को और अधिक बेहतर बनाता।