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मैं दरधा हूं, मध्य प्रदेश जहानाबाद को सिंचित करने वाली

जहानाबाद। मैं दरधा हूं। वही दरधा जो कालांतर में मध्य प्रदेश की वादियों से निकली थी। हजारों बाधाओं को पार कर जहानाबाद की भूमि को सिंचित करते आ रही हूं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 10:40 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 10:40 PM (IST)
मैं दरधा हूं, मध्य प्रदेश जहानाबाद को सिंचित करने वाली
मैं दरधा हूं, मध्य प्रदेश जहानाबाद को सिंचित करने वाली

जहानाबाद। मैं दरधा हूं। वही दरधा जो कालांतर में मध्य प्रदेश की वादियों से निकली थी। हजारों बाधाओं को पार कर जहानाबाद की भूमि को सिंचित करते आ रही हूं। मेरे गोद में निर्मल जल में लोग स्नान और आचमन करते थे। आज शहर के मलमूत्र और कचरे का बोझ ढोने के काबिल नहीं बची। मेरे सीने पर अब लोग इमारत खड़ी करने लगे हैं।

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हमारी गोद से छोटी-बड़ी 14 पईन निकली जो निस्वार्थ भाव से फसल को सिंचकर किसानों को आबाद करती थी। आज अन्नदाता बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। ऐसा क्यों हुआ मेरे अस्तित्व के साथ जवाब स्वार्थी लोग के पास है। स्वार्थी लोग बांध काटते गए और धारा संकीर्ण होती चली गई। शहरी क्षेत्र में तो नगर परिषद ने मलमूत्र और कचरा से भर दिया तो स्वार्थी लोगों को अतिक्रमण कर इमारत खड़ा कर लिया।

ंस्थ्य के लिए लोगों ने नदी का पेट भ्हालात यह है कि नदी की चौड़ी अब दो सौ की जगह महज सौ फीट तक ही सिमट कर रह गया है। निकलकर हजार बाधाओं से टकराते नक्सल प्रभावित जहानाबाद की जमीन को सिंचिंत करने वाली दरधा नदी के अस्तित्व के लिए कोई चिंतित नहीं है। अब इसके जिम्मे शहर के मल-मूत्र और कचरे का बोझ से इसके किनारे पर सिचित करने वाली दरधा नदी लोगों के कारगुजारी के कारण अब मृतप्राय होते जा रहा है। नदी धीरे-धीरे अपना वजूद खोकर नाला का शक्ल लेता जा रहा है। ऐसे में जहानाबाद के साथ-साथ पड़ोस के नालंदा जिले के हजारों हेक्टेयर भूमि अब इसकी सिचाई से वंचित होने लगा है।परिणामस्वरुप भूजल स्तर पर भी इसका असर पड़ने लगा है। यूं तो यह नदी बरसात में उफान पर रहती थी। तकरीबन दो सौ फीट चौड़ा पाट रहने के कारण सर्दी के मौसम मे भी इसमें पर्याप्त मात्रा में पानी रहता था जिससे किसान धान के साथ-साथ रबी फसल की सिचाई भी इससे करते थे। इस नदी से छोटी बड़ी 14 पइन निकली है। जिससे सुदूर ग्रामीण इलाके के खेतों तक पानी पहुंचता था। लेकिन अब इन 14 पइनों में से इक्के दुक्के में ही बरसात के मौसम पानी पहुंचता है। हालात यह है कि नदी की चौड़ी अब दो सौ की जगह महज सौ फीट तक ही सिमट कर रह गया है। नदी के रास्ते में कई जगहों पर निर्माण कार्य हो जाने के कारण बरसात में भी पानी कम ही मात्रा में यहां पहुंचता है। नदी की इस बदहाली के जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि खुद वे लोग है जो इससे लाभान्वित होते थे। यदि शहर की बात करें तो यहां मकान बनाने की होड़ सी मची हुई है। नदी के किनारे लोग जमीन की खरीददारी कर मकान बनाने में जुटे हुए हैं। जिनलोगों द्वारा जमीन की खरीददारी की जा रही है वे अपने जमीन का दायरा बढ़ाते हुए नदी को भी उसमें समिलित करने में परहेज नहीं कर रहे हैं। कई मोहल्लों का कूड़ा कचड़ा नदियों में फेंके जाने से कई जगहों पर टीले बन गए हैं। कुछ लोग तो अपने घर के पास जान बुझकर नदी को अतिक्रमण करने के उद्देश्य से कूड़े का ढेर लगाने में जुटे हुए हैं। जब नदी की भूमि समतल हो जा रही है तो उसे वे लोग अपना घर का हिस्सा बना रहे हैं। हालात यह है कि जो लोग सामाजिक मंचों पर पर्यावरण संरक्षण जैसे मुृद्दों पर बड़े-बड़े व्याख्यान देते हैं वे लोग भी अतिक्रमण की होड़ में शामिल हैं। दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधन संरक्षण की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वे भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यदि हालात यही बना रहेगा तो जिले की जीवन रेखा माने जाने वाली दरधा नदी इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। इधर सरकारी या प्राकृतिक संसाधन की भूमि को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी को निर्वहन करने वाले अंचलाधिकारी संजय अंबष्ठ इस मामले पर सरकार की योजना स्पष्ट करने की बजाए टाल मटोल करते नजर आ रहे हैं। शहर में जिस तरह से भूमि अतिक्रमण किए जा रहे हैं इस पर उसका कोई स्पष्ट गाइड लाइन नहीं है। हालांकि वरीय अधिकारियों की भी इस ओर नजर नहीं जा रही है। जिस तरह सड़क के किनारे फैले अतिक्रमणकारियों पर प्रशासन का डंडा चलता है।यदि यहां भी इस तरह की पहल होती तो आज स्थिति कुछ बेहतर हो सकता था।


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