बिहार में राहुल के लिए अहम फैक्टर बने लालू, कांग्रेस का बिखराव रोकना बड़ी चुनौती
महागठबंधन की सरकार टूटने के बाद बिहार में कांग्रेस का गुटीय संघर्ष तेज है। पार्टी में लालू भी अहम फैक्टर बनकर उभरे हैं। नए अध्यक्ष राहुल गांधी को इन चुनौतियों से निबटना होगा।
पटना [अमित आलोक]। कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित घोषित होने के बाद राहुल गांधी ने 16 दिसंबर को कार्यभार संभाल लिया है। बतौर अध्यक्ष राहुल के सामने राष्ट्रीय स्तर पर अहम चुनौतियां हैं। बिहार की बात करें तो उन्हें यहां भी निर्णायक फैसले लेने होंगे। यहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के नाम पर दो फाड़ कांग्रेस को एकजुट रखना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।
बिहार कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। अगर कुछ ठीक है तो केवल यह कि राहुल गांधी के नाम पर कोई विवाद नहीं। इसलिए, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के विरोध व समर्थन को लेकर बंटी कांग्रेस को राहुल से उम्मीद भी है। राहुल इन उम्मीदों व चुनौतियों से अवगत हैं। पदभार ग्रहण के बाद बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी तथा विधानमंडल दल नेता सदानंद सिंह से मुलाकात का उनका फैसला उनकी प्राथमिकता का स्पष्ट संकेत दे रहा है।
उबाल पर आई गुटबाजी, लगे नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे
पृष्ठभूमि में जाएं तो बीते नौ अक्टूबर का दिन याद कीजिए। पटना के प्रदेश कांग्रेस कार्यालय (सदाकत आश्रम) में बिहार कांग्रेस की मीटिंग थी। इस दौरान पार्टी के दो गुटों में कुर्ताफाड़ मारपीट हो गई। हद तो तब हो गई, जब एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगा दिए। भाजपा के विरोध के लिए बिहार में लालू के साथ खड़ी कांग्रेस के लिए यह बड़ी बात थी।
दरअसल, बिहार कांग्रेस का एक गुट वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी का तो दूसरा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी का है। अशोक चौधरी ने आरोप लगाया था कि मीटिंग में बुलाने में भेदभाव बरता गया। गुस्साए अशोक चौधरी समर्थकों के साथ सदाकत आश्रम पहुंचे तो उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया। इसके बाद गेट पर चौधरी गुट का आक्रोश भड़क गया। इसी दौरान नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगे। बाद में पुलिस ने हालात को संभाला। राहुल के लिए कांग्रेस की गुटबाजी पर लगात लगाना प्राथमिक चुनौती होगी।
महागठबंधन सरकार टूटने के लगा आघात
बिहार की राजनीति में कांग्रेस का कद बीते विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत के बाद बढ़ा था। जदयू-राजद-कांग्रेस के इस महागठबंधन की जीत के बाद बिहार में लंबे समय से सत्ता से दूर रही कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका मिला था। लेकिन, बदली परिस्थितियों में जदयू ने भाजपा से हाथ मिलाकर खुद को महागठबंधन से अलग कर लिया। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने सरकार बचाने के लिए महागठबंधन बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए।
लालू समर्थन व विरोध पर बंटी पार्टी
बिहार में महागठबंधन की सरकार का जाना कांग्रेस के लिए बड़ा आघात रहा। इससे बिहार की राजनीतिक बिसात पर धीरे-धीरे मजबूत हो रही कांग्रेस अचानक बेपटरी हो गई। पार्टी में वर्चस्व का गुटीय संघर्ष आरंभ हो गया। आलाकमान ने बिहार में भाजपा विरोध की धुरी बनते राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साथ रहने का फैसला किया। लेकिन, पार्टी लालू के समर्थन व विरोध में बंटती दिखी।
ऐसे हटाए गए अशोक चौधरी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले अशोक चौधरी अब लालू के खिलाफ खड़े थे तो कांग्रेस का उनका विरोधी गुट लालू के साथ। बताया जाता है कि दूसरे गुट ने आलाकमान को विश्वास दिलाया कि अशोक चौधरी अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस को तोड़ जदयू में जा सकते हैं। दिल्ली में राहुल ने बिहार कांग्रेस के नेताओं की हाई लेवल बैठक की, जिसमें अशोक चौधरी को नहीं बुलाया गया। इसके बाद अचानक चौधरी को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
कांग्रेस नेता एचके वर्मा अशोक चौधरी के पद से हटने को ‘रूटीन मामला’ बताते हैं। कहते हैं कि उनका टर्म पूरा हो गया था, इसलिए तत्कालीन पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कौकब कादरी को सबों से मशविरा कर पार्टी की कमान दी। लेकिन, अशोक चौधरी ने पद से हटाए जाने को दलित अपमान से जोड़ा। उन्होंने राहुल में आस्था व्यक्त की। उनके निशाने पर 'आलाकमान को बरगलाने वाले' नेता रहे। चौधरी को इसका मलाल जरूर रहा कि उन्हें सम्मानजनक एग्जिट नहीं दी गई।
असंतुष्ट अशोक चौधरी बहुत कुछ कहते हैं। लेकिन, उनके साथ खड़े गुट को पार्टी से जोड़ रखना राहुल के लिए बड़ी चुनौती होगी। यह उनके नेतृत्व। कौशल की परीक्षा भी होगी।
चुनौती सीट बचाए रखने की
महागठबंधन से अलग होने के बाद बिहार कांग्रेस के लिए सीटों को बचाए रखने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। हालांकि चुनाव में अभी विलंब है, लेकिन पार्टी इस कवायद में जुट गई है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जिन 27 सीटों पर संगठन ने जीत दर्ज कराई है, उन्हें हर हाल में बचाए रखा जाए। बतौर अध्यक्ष, राहुल गांधी की यह अग्निपरीक्षा होगी।
एचके वर्मा मानते हैं कि राहुल के नेतृत्व में संगठन में गतिशीलता आएगी। वे कांग्रेस को बूथ लेवल तक मजबूत करने के लिए कदम उठाएंगे। खासकर युवा वर्ग पार्टी से जुड़ेगा।
पदभार ग्रहण के साथ ही बिहार कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात
पदभार ग्रहण करने के बाद शनिवार को ही राहुल गांधी बिहार कांग्रेस के दो बड़े नेताओं कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी तथा बिहार विधानमंडल दल के अध्यक्ष सदानंद सिंह से मुलाकात कर रहे हैं। सदानंद सिंह ने बैठक के संबंध में बताने से तो इन्कार कर दिया, लेकिन इतना जरूर कहा कि राहुल गांधी के साथ बिहार कांग्रेस की दशा व दिशा पर विचार होगा। पार्टी के एक अन्य नेता ने बताया कि इसके बाद कौकब कादरी और सदानंद सिंह पंचायत से लेकर प्रखंड तक जाकर पार्टी नेताओं से फीडबैक लेने के लिए जिलों के दौरे पर निकलेंगे। आलाकमान इस फीडबैक के आधार पर फैसले लेगा।
बदले राजनीतिक हालात पर नजर
कांग्रेस के अंदरखाने के सूत्र बताते हैं कि संगठन बिहार के बदले हुए राजनीतिक हालातों को देख रहा है। उसे इल्म है कि अगली लड़ाई भाजपा के साथ-साथ महागठबंधन में साथी रहे जदयू से भी होगी। पार्टी का प्रदेश नेतृत्व अपने स्तार पर इसकी तैयारियों में जुट गया है। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अध्यक्ष कौकब कादरी ने बताया कि पार्टी अभी से अपनी गतिविधियां बढ़ा रही है, ताकि वक्त पर वह पीछे न रह जाए। पार्टी जिलाध्यक्षों को यह दायित्व भी सौंपा जाएगा कि वे अभियान चलाकर कांग्रेस कार्यकाल में हुई उपलब्धियां जनता तक पहुंचाएं। साथ ही केंद्र की वर्तमान सरकार की नीतियों और फैसलों की वजह से होने वाली परेशानियों की बाबत भी लोगों को अवगत कराएं।
कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रहा लालू फैक्टर
पार्टी भले ही प्रदेश में भविष्य को लेकर सजग होती दिख रही है, लेकिन लालू फैक्टर उसका पीछा नहीं छोड़ रहा। यह सवाल मौजूं हो गया है कि क्या बिहार (और झारखंड) में कांग्रेस लालू के हवाले हो गई है? राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी को लालू प्रसाद ने हटवाया है और आगे भी उनकी मर्जी से ही कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव तय है। इस कयास को इस बात से बल मिलता है कि झारखंड में लालू के करीबी रहे पूर्व आइपीएस अधिकारी डॉ. अजय कुमार को पार्टी ने अध्यक्ष बनाया गया है।
एक जमाने में अशोक चौधरी को लालू का बड़ा करीबी माना जाता था। लेकिन, महागठबंधन की सरकार में शामिल होने के बाद वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीब चले गए। तब तत्काठलीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बड़े प्रशंसकों में थे। लेकिन, बदली परिस्थियिों में नीतीश कुमार भाजपा के साथ चले गए और भाजपा की बढ़त रोकने के लिए लालू प्रसाद कांग्रेस की मजबूरी बन गए। अशोक चौधरी इस परिस्थिति से समझौता नहीं कर सके और वे हाशिए पर चले गए।
कहते हैं कि लालू प्रसाद ने भी कांग्रेस आलाकमान से अशोक चौधरी के खिलाफ बातें कहीं। पार्टी में अशोक चौधरी का विरोधी गुट भी आलाकमान से लगातार संपर्क में रहा। आलाकमान को बताया गया कि चौधरी कांग्रेस के बहुसंख्यक विधायकों के साथ पार्टी तोड़ने की कोशिश में हैं। इस कारण उन्हें आनन-फानन में प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। उन्हें हटाने की हड़बड़ी ऐसी रही कि नया अध्यक्ष भी तय नहीं किया जा सका। कौकब कादरी को कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी देकर तात्कालिक व्यवस्था की गई।
बताया जा रहा है कि लालू कांग्रेस में भी अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाना चाह रहे हैं। एचके वर्मा कांग्रेस में किसी ‘लालू फैक्टर’ से इन्कार करते हुए बड़ी बात कहते हैं कि बिहार में राजद से गठबंधन अनंत काल तक के लिए तो नहीं है। एक समय था, जब हम अकेले सरकार बनाते थे। स्पष्ट है कि राहुल के नेतृत्व, में बिहार में कांग्रेस चाहेगी कि वह अपने मजबूत पैरों पर खड़ा हो सके। एचके वर्मा जो भी कहें, नाम नहीं देने के आग्रह के साथ एक कांग्रेस नेता ने कहा कि लालू प्रसाद की चली तो कोई पिछड़ा या मुस्लिम कांग्रेस अध्यक्ष होगा। हालांकि, चर्चा में डॉ. अखिलेश सिंह, शकील अहमद, कौकब कादरी, मदन मोहन झा आदि कई नाम हैं। चर्चा यह भी है कि लालू की काट के लिए कुछ कांग्रेस नेता पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन को प्रदेश अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने से लालू प्रसाद को दोनों बेटों के नेतृत्व पर संकट खड़ा हो सकता है।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान लालू की शिकायत पर भले ही किसी को हटा दे, लेकिन उनके कहने से अध्यक्ष नहीं बनाएगा। राहुल के लिए लालू को साथ रखते हुए अपनी मर्जी का ऐसा अध्यक्ष बनाना, जो पार्टी को एकजुट रख सके, राहुल के लिए बिहार में सबसे बड़ी चुनौती होगी।