Move to Jagran APP

पहली सोमवारी आज, सजे ग्रामीण इलाकों के शिवालय

गोपालगंज श्रावण माह की पहली सोमवारी को देखते हुए ग्रामीण इलाके के तमाम शिव मंदिरों में

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 11:18 PM (IST)Updated: Sun, 25 Jul 2021 11:18 PM (IST)
पहली सोमवारी आज, सजे ग्रामीण इलाकों के शिवालय
पहली सोमवारी आज, सजे ग्रामीण इलाकों के शिवालय

गोपालगंज : श्रावण माह की पहली सोमवारी को देखते हुए ग्रामीण इलाके के तमाम शिव मंदिरों में पूजन के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है। रविवार को पूरे दिन इसको लेकर तैयारियां चलती रही। कोरोना को देखते हुए प्रशासनिक स्तर पर मंदिरों में भीड़ पर रोक के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में श्रावण माह के इस सोमवारी को लेकर खासा उत्साह है। प्रथम सोमवारी को देखते हुए एक दिन पूर्व रविवार को पूरे दिन मंदिरों को सजाने संवारने का काम चलता रहा। श्रावण महीने के महीने में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का अलग महत्व है। इस दौरान प्रत्येक सोमवार को शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ जमा होती है। इस साल पहली सोमवारी को देखते हुए तमाम शिव मंदिरों में पूजा अर्चना के साथ ही मंदिरों की साफ-सफाई में लोग लगे रहे। मांझा स्थिति ऐतिहासिक शिव मंदिर में भी रविवार को सफाई का कार्य पूरे दिन चला। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में भी मंदिरों को सजाने व संवारने का सिलसिला चलता रहा। उधर थावे में भी शिव मंदिर में सोमवारी को लेकर भक्तों में उत्साह दिखा। लोग एक दिन पूर्व से ही इसकी तैयारियों में जुटे रहे।

loksabha election banner

पांडवों के साथ जलाभिषेक को आते थे गुरु द्रोणाचार्य

संवाद सहयोगी, हथुआ (गोपालगंज) : श्रावण माह में हथुआ के प्रसिद्ध बउरहवा शिवमंदिर में जलाभिषेक करने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। पड़ोसी जिला सिवान से लेकर सीमावर्ती उत्तर प्रदेश से लोग यहां पहुंचने लगे है। स्थानीय लोग बताते हैं कि महाभारत काल से जुड़े इस प्रसिद्ध शिवमंदिर में सावन माह में जलाभिषेक करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हथुआ से आधा किलोमीटर पश्चिम मछागर पंचायत में स्थित बउरहवा शिवालय आज भी श्रद्धालुओं के लिए अपना विशेष स्थान रखता है। इस मंदिर का इतिहास गुरु द्रोणाचार्य से जुड़ा है। किवदंती के अनुसार द्वापर युग में गुरु द्रोणाचार्य सिवान के दरौली के दोन आश्रम में अपने पाण्डव शिष्यों के साथ रहते थे। दरौली के दोन आश्रम से गुरु द्रोणाचार्य पाण्डवों के साथ प्रत्येक सोमवार को बउरहवा मंदिर आकर जलाभिषेक करते थे। कहा जाता है कि हथुआ राज के जमाने में कई बार इस शिवालय के लिए गुंबदनुमा मंदिर बनाने का प्रयास किया गया। लेकिन दिनभर में बनाया गया गुंबज रात होते ही धराशाई हो जाता था। जिसे देखते हुए मंदिर बनाने का प्रयास छोड़ दिया गया। खुले आसमान के नीचे पीपल के विशाल वृक्ष तले अवस्थित वृहद शिवलिग आज भी श्रद्धा का केंद्र है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.