बदहाली के शिकार बांसुरी बनाने वाले कलाकार
गोपालगंज। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने हथुआ के बांसुरी उद्योग से जुड़े सिद्धहस्त कलाकारों क
गोपालगंज। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने हथुआ के बांसुरी उद्योग से जुड़े सिद्धहस्त कलाकारों की स्थिति बदहाल है। जम्मू काश्मीर से कन्या कुमारी तक यहां की बनी बांसुरी तथा मुरली के कद्रदान हैं। लेकिन इससे बनाने वाले हुनरमंद परिवार आर्थिक तंगी झेलते हुए साहुकारों के कर्ज से दबकर कराह रहे हैं। हथुआ गांव के मीर शिकार टोली के लगभग सवा सौ परिवार का यह पुस्तैनी धंधा हथुआ राज के जमाने से चला आ रहा है। पहले यह कलाकार सिर्फ हथुआ राज के लिए ही मुरली और बांसुरी बनाते थे। जिससे कृष्ण राधा उपासना के लिए गोपाल मंदिर में बजाया जाता था। हथुआ राज के जमाने में संरक्षण मिलने से इनका दिन अच्छे से गुजरता था। लेकिन बाद में ये अन्य प्रदेशों में घूमकर अपनी बनायी मुरली और बांसुरी बेचकर रोजी रोटी चलाने लगे। आज भी घूम घूम कर बांसुरी बेच कर ये किसी तरह से अपनी जीविका चला रहे हैं। बताया जाता है कि इनका अपना मुखिया होते हैं, जिसे ये प्रधान कहते हैं। एक छड़ीदार भी होते हैं। वर्तमान में प्रधान अख्तर मियां हैं। वे बताते हैं कि अब आसाम से बांस तथा नरकट थोक भाव में मंगाया जाता है। जिससे बिरादरी के सभी घरों में मुरली और बांसुरी बनाने के लिए उपलब्ध कराया जाता है। वे बताते हैं कि अब सरकारी मदद नहीं मिलने से रुपये के अभाव में बांसुरी बनाने वाले सभी परिवार साहुकारों के कर्ज से दब गए हैं। वे कहते हैं कि आज तक किसी जनप्रतिनिधियों ने हमारी समस्याएं नहीं सुनी। हालांकि इस मीर शिकार टोली में एक आंगनबाड़ी केंद्र, प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र तथा एक छोटा विद्यालय भवन भी है। लेकिन बांसुरी बनाने के धंधे से जुड़ लोगों को सरकारी स्तर पर सहायता नहीं मिलने से सवा सौ परिवार बदहाली के शिकार हो गए हैं।