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तपे-तपाए की जगह नए चेहरे पर सभी ने लगाया है दांव

लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान तेज होने के साथ ही अब हवा में चुनावी फिजा रंग बिखेरने लगी है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 09:13 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 09:16 PM (IST)
तपे-तपाए की जगह नए चेहरे पर सभी ने लगाया है दांव
तपे-तपाए की जगह नए चेहरे पर सभी ने लगाया है दांव

गोपालगंज। लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान तेज होने के साथ ही अब हवा में चुनावी फिजा रंग बिखेरने लगी है। इसके साथ ही राजग तथा महागठबंधन के प्रत्याशी का नाम सामने आने के बाद अब चुनावी मैदान में उतरे प्रत्याशियों को भी लोग आंक रहे हैं। लेकिन देश के पहले संसदीय चुनाव से लेकर अब तक हुए चुनाव से इस बार प्रत्याशियों को लेकर माहौल कुछ अलग है। अब तक हुए लोकसभा चुनावों में कोई न कोई राजनीति के चर्चित खिलाड़ी चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं। लेकिन इस बार राजग तथा महागठबंधन ने राजनीति के नए चेहरे को अपना-अपना प्रत्याशी बनाया है। राजग से जदयू के डॉ.आलोक कुमार सुमन तथा महागठबंधन से राजद ने सुरेंद्र राम को टिकट दिया है। ये दोनों प्रत्याशी पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं।

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साल 1957 में हुए पहले संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने डॉ सैयद महसूद को प्रत्याशी बनाया था। चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही इनकी पहचान देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के करीबी की बन चुकी थी। चुनाव जीतने के बाद ये नेहरू मंत्रिमंडल के सदस्य भी बने। साल 1962 से लेकर 1971 तक कांग्रेस के टिकट पर जीत की हैट्रिक लगाने के बाद अगले चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर लगातार चौथी बार चुनाव जीत करने वाले द्वारिकानाथ तिवारी की सारण प्रमंडल में राजनीति के एक बड़े शख्सियत के रूप में बन चुकी थी। साल 1980 में कांग्रेस के टिकट पर नगीना राय जीत दर्ज कर सांसद चुने गए थे। सांसद बनने से पहले ही सहकारिता क्षेत्र में पूरे सूबे में इनकी एक पहचान बन चुकी थी। ये सूबे के मंत्री भी रह चुके थे। साल 1984 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सांसद चुने गए कालीप्रसाद पाण्डेय भी चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही सूबे में चर्चित शख्सियत बन चुके थे। साल 1980 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर सांसद चुने गए राजमंगल मिश्रा पांच बार विधायक रह चुके थे। 1991 तथा 1998 में जनता दल तथा समता पार्टी की टिकट पर दो बार सांसद चुने गए अब्दुल गफूर की पहचान कद्दावर नेता की थी। ये सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके थे। हालांकि इसके बीच साल 1996 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज करने वाले लालबाबू प्रसाद की पहचान राजनीतिक के बड़े खिलाड़ी के रूप में नहीं बन सकी थी। लेकिन इस साल चर्चित कालीप्रसाद पाण्डेय कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे। साल 1999 में जदयू के टिकट पर जीत दर्ज करने वाले रघुनाथ झा 35 साल विधायक तथा 15 साल तक मंत्री रह चुके थे। 2004 में राजद के टिकट पर जीत दर्ज करने वाले साधु यादव भी किसी पहचान के मोहताज नहीं थे। 2009 के चुनाव में जदयू के टिकट पर जीत दर्ज करने वाले पूर्णमासी राम विधायक व मंत्री रहे चुके थे। साल 2014 में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज करने वाले जनक राम 2009 मे बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर चुके थे। 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने एमएलसी ज्योति भारती को अपना उम्मीदवार बनाया था। गोपालगंज संसदीय सीट से अब तक हुए चुनाव में कोई न कोई बड़ा खिलाड़ी चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं। लेकिन इस बार राजग तथा महागठबंधन दोनों ने तपे-तपाए चेहरे की जगह राजनीति के नए खिलाड़ियों पर दांव लगाया है। अब मतदाता इन नए चेहरों में से किस पर अपना भरोसा जताते हैं, इसका पता चुनाव परिणाम के बाद ही चल सकेगा।


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