मदद के इंतजार में टूटती जा रही हुनरमंद बस्ती के लोगों की उम्मीदें
एक-एक कर चुनाव बीतते गए। हर चुनाव में हुनरमंद बस्ती के लोगों को उनकी परेशानियां दूर करने के लिए सरकारी स्तर पर मदद दिलाने का आश्वासन मिलता गया। लेकिन चुनाव बीतने के बाद हथुआ विधानसभा क्षेत्र के हथुआ प्रखंड के मिस्कार टोला के लोगों को भूला दिया जाता रहा है। दशकों से बांसुरी बनाने वाले इस बस्ती के लोगों की बांसुरी की मांग कभी सिगापुर से लेकर नेपाल तक थी।
धनंजय प्रताप सिंह, हथुआ(गोपालगंज) : एक-एक कर चुनाव बीतते गए। हर चुनाव में हुनरमंद बस्ती के लोगों को उनकी परेशानियां दूर करने के लिए सरकारी स्तर पर मदद दिलाने का आश्वासन मिलता गया। लेकिन, चुनाव बीतने के बाद हथुआ विधानसभा क्षेत्र के हथुआ प्रखंड के मिस्कार टोला के लोगों को भूला दिया जाता रहा है। दशकों से बांसुरी बनाने वाले इस बस्ती के लोगों की बांसुरी की मांग कभी सिगापुर से लेकर नेपाल तक थी। लेकिन, मदद नहीं मिलने से हुनंरमंद हाथ धीरे धीरे बांसुरी बनाने का काम छोड़ कर कुदाल-फावड़ा थामने लगे हैं। मदद के इंतजार में हुनरमंद लोगों की उम्मीदें अब टूटती जा रही हैं। इस बस्ती के लोगों की तरफ सिर्फ चुनाव के समय ही राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की नजरें पड़ती हैं।
हथुआ विधानसभा क्षेत्र के हथुआ प्रखंड मुख्यालय के समीप स्थित है मिस्कार टोला। दशकों पूर्व हथुआ राज परिवार ने हथुआ के ऐतिहासिक गोपाल मंदिर में श्रीकृष्ण लला के दरबार में बांसुरी की तान छोड़ने के लिए गाजीपुर से बांसुरी बनाने वाले लोगों को मिस्कार टोला में बसाया था। तब से गोपाल मंदिर में सुबह और संध्या पूजा के समय इस बस्ती में बनी बांसुरी की धुन पर श्रीकृष्ण लला की पूजा अर्चना करने की परंपरा चली आ रही है। पहले हथुआ राज परिवार से इस बस्ती के लोगों का मदद मिलती थी। यहां बनी बांसुरी की मांग सिगापुर से लेकर नेपाल तक होती थी। लेकिन, समय के साथ इस बस्ती के लोगों को भूला दिया गया। जिससे इनकी दशा अब काफी खराब हो गई है। इस बस्ती के सागिर मिया आदि बताते हैं कि दो साल पूर्व जिला प्रशासन ने बांसुरी उद्योग को बचाने के लिए पहल की थी। पदाधिकारियों ने इस बस्ती में आकर यहां की समस्याओं के बारे में जानकारी ली। लेकिन, इसके आगे काम नहीं बढ़ा। कोई मदद नहीं मिली। उन्होंने बताया कि चुनाव के समय ही वोट मांगने नेता लोग आते हैं। उसके बाद कोई इस बस्ती की तरफ रुख नहीं करता है। अपनी जीविका चलाने के लिए इस बस्ती के काफी लोग बांसुरी बनाने का काम छोड़ कर मेहनत मजदूरी करने लगे हैं। मदद के इंतजार में टूटती जा रही इस बस्ती के हुनरमंद लोगों की उम्मीदें टूटती जा रही हैं।