Bihar Election 2025: सीट हारी पर जीत गई उम्मीद, बिहार की इकलौती ट्रांसजेंडर उम्मीदवार ने बदली राजनीति की परिभाषा
बिहार चुनाव 2025 में ट्रांसजेंडर उम्मीदवार प्रीति किन्नर सीट हारकर भी उम्मीद की किरण बनीं। उन्होंने राजनीति में बदलाव की परिभाषा लिखी और हाशिए पर रहने वाले समुदाय के लिए मिसाल कायम की। प्रीति की भागीदारी ने अन्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी प्रेरित किया, जिससे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। उनकी यात्रा दर्शाती है कि हार के बावजूद समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।

भोरे विधानसभा सीट से जन सुराज के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी थीं प्रीति किन्नर।
डिजिटल डेस्क, भोरे (गोपालगंज)। Bihar Assembly Election Result 2025 में जन सुराज पार्टी की ट्रांसजेंडर उम्मीदवार प्रीति किन्नर सुर्खियों में रहीं। पहली बार भोरे विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरी प्रीति किन्नर को जनता ने ध्यान से सुना, सराहा भी, लेकिन नतीजों में उन्हें उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिल सका। ECI के अंतिम आंकड़ों के अनुसार प्रीति किन्नर को 8602 वोट मिले और वे चुनाव हार गईं।
भोरे सीट पर मुकाबला कई दावेदारों के बीच था और अंत में यह सीट जेडीयू के सुनील कुमार के हाथ लगी, जिन्होंने 1 लाख से अधिक वोट हासिल कर स्पष्ट जीत दर्ज की। दूसरी तरफ, प्रीति किन्नर जन सुराज पार्टी की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास करती दिखीं, लेकिन उन्हें बड़े दलों के प्रभाव और स्थानीय जातीय समीकरणों के बीच अपेक्षित बढ़त नहीं मिली।
प्रीति किन्नर की उम्मीदवारी क्यों थी खास?
प्रीति किन्नर गोपालगंज क्षेत्र में लंबे समय से सामाजिक काम करती रही हैं। बधाई गाने की परंपरा से जुड़ी होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और जरूरतमंदों के लिए मदद का काम जारी रखा। अनेक आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों की शादियाँ करवाने और स्थानीय समस्याओं को सामने लाने की वजह से वे इलाके में जानी-पहचानी हस्ती बन गईं।
यही कारण था कि उनकी उम्मीदवारी को “सामाजिक परिवर्तन की आवाज” और एक प्रतीकात्मक कदम माना गया।
क्या मायने रखता है यह चुनाव?
प्रीति किन्नर जन सुराज पार्टी की ओर से पहली बार विधायी चुनाव लड़ रही थीं। उनका दावा था कि जनता उन्हें भरोसे की नजर से देख रही है और वे क्षेत्र का सम्मान बढ़ाने के लिए राजनीति में आई हैं। हालांकि परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहे, लेकिन उनके लिए यह चुनाव अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और राजनीतिक पहचान बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
जातीय समीकरण और राजनीतिक धरातल ने बदला खेल
भोरे सीट पर मुख्य लड़ाई जेडीयू, बीजेपी और बाम दलों के बीच थी। जेडीयू के सुनील कुमार और CPI(M) के धमान यादव ने बड़े स्तर पर वोटों को आकर्षित किया। ऐसे में प्रीति किन्नर को वह बड़ा सामाजिक आधार नहीं मिल पाया जो उन्हें मजबूत दावेदार बना सकता था।
फिर भी एक नई शुरुआत
हालांकि प्रीति किन्नर सीट नहीं जीत सकीं, लेकिन उनकी उपस्थिति राजनीतिक विमर्श में ट्रांसजेंडर समुदाय की बढ़ती भागीदारी का संकेत दे रही है। उन्होंने चुनाव के दौरान कहा था कि वे राजनीति में इसलिए आई हैं ताकि समाज के सबसे कमजोर तबकों की आवाज बन सकें।
परिणाम भले ही उनके पक्ष में न रहे हों, लेकिन यह चुनाव उनके लिए और जन सुराज पार्टी दोनों के लिए आगे की राजनीति का नया अध्याय खोलता है।

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