परोपकार की भावना से ही होगी विश्व शांति : दलाईलामा
फोटो-807 से 811 -------------- -बोधगया के कालचक्र मैदान में तीसरे दिन धर्मगुरु दलाईलामा ने श्रद्धालुओं को दिया प्रवचन -कहा-प्रत्येक मनुष्य दूसरों के प्रति आदर व सम्मान का भाव रखे यथासंभव दूसरों की मदद करे -------------------- जागरण संवाददाता गया
गया । भगवान बुद्ध की पावन ज्ञानभूमि बोधगया के कालचक्र मैदान पर शनिवार को तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाईलामा का तीसरे दिन का प्रवचन कार्यक्रम संपन्न हुआ। प्रवचन में विश्व के कई देशों के बौद्ध श्रद्धालु हजारों की संख्या में शामिल हुए। सुरक्षा को लेकर कड़े प्रबंध किए गए थे। दलाईलामा के आगमन के बाद श्रद्धालुओं ने उनका अभिवादन किया। इसके बाद उन्होंने श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वचन देते हुए प्रवचन शुरू किया।
उन्होंने कहा, मनुष्य को हमेशा परोपकार की भावना रखनी चाहिए। परोपकार से ही पूरे विश्व में शाति आ सकती है। हम अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं, उसे किसी स्वार्थ के रूप में नहीं करना चाहिए, बल्कि परोपकार की भावना से करनी चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को दूसरों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखना चाहिए। जितना हो सके दूसरों की मदद करनी चाहिए। इसी भावना से ही मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बना सकता है। उन्होंने कहा कि परोपकार से बड़ा धर्म और कुछ भी नहीं। दूसरों के प्रति स्नेह, प्रेम, करुणा और परोपकार का भाव रखकर ही जीवन में शाति आ सकती है।
दलाईलामा ने मंजूश्री अभिषेक करवाया और उपासकों को जीवन जीने की कला बताया। मंजूश्री बुद्धिमता का प्रतीक है। ज्ञान व प्रज्ञा की प्राप्ति के लिए इनके मंत्रों का सतत अभ्यास जरूरी है। द् व्हील्स ऑफ टीचिंग्स ऑन मंजूश्री विषय पर उन्होंने बताया कि मंजूश्री पद्मपाणि की शक्ति है। प्रज्ञा की प्राप्ति के लिए मंजूश्री के मंत्रों का अभ्यास महत्वपूर्ण है। प्रज्ञा से ही बुद्धत्व लाभ होगा। मंजूश्री को प्राय: राजकुमार सदृश्य आभूषणों से सजे, अज्ञान के बादलों को चीरने के लिए तलवार उठाए व दूसरे हाथ में प्रज्ञापारमिता का ताड़पत्र पाडुलिपि लिए गए दिखाए गए हैं। ज्ञानरूपी तलवार हाथ में लेकर अज्ञानता के नाश के लिए प्रयत्नशील हों। अज्ञानता से ही क्लेश व तृष्णा के जाल में फंसकर दुखमय जीवन बिताना पड़ता है। दलाईलामा ने कहा कि क्लेश, लोभ और मोह दुख का कारण है। क्रोध आने पर क्षमा का विचार भी करें। इससे चित्त नियंत्रित करने से संभव है। उन्होंने बताया कि सोते समय मन में शुद्ध विचार लेकर सोएं तो निश्चय ही चित्त शुद्ध होता है। क्लेश रखने वाला व्यक्ति दूसरों के साथ-अपना भी अहित करता है, इसलिए प्रसन्नता से बड़ा दूसरा धन नहीं है। दूसरों को खुशी देने में कुछ खर्च नहीं होता। इससे आपसी सहिष्णुता बढ़ता है। दूसरे के हित पर ध्यान दें। चित्त की शून्यता का जब अभ्यास करेंगे, तब ऐसा भाव खुद जन्म लेगा। ज्ञानरूपी प्रकाश बढ़ाएं। सुबह से ज्यादा ऊर्जा दोपहर में होती है, अर्थात अभ्यास से विकास होगा। उन्होंने कहा, स्वार्थ की भावना से ही परेशानी आती है। शातिमय विश्व के लिए धर्म की आवश्यकता है।