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नवजातों को गोद में लेकर टीके का इंतजार करती रहीं महिलाएं

अनुमंडल अस्पताल। समय 10 बजे। फार्मासिस्ट अरूण कुमार सिंह व सुरक्षा गार्ड कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे हैं। इस बीच मरीजों का आना शुरू होता है। दैनिक जागरण की टीम ने सोमवार को यहां का नजारा देखा। मरीजों और परिजनों से बात की तो उनकी मुश्किलें भी सामने आई। टीकाकरण के लिए महिलाएं नवजात शिशुओं को लेकर इंतजार करती दिखीं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 10:00 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jan 2019 10:00 AM (IST)
नवजातों को गोद में लेकर टीके का इंतजार करती रहीं महिलाएं
नवजातों को गोद में लेकर टीके का इंतजार करती रहीं महिलाएं

गया। अनुमंडल अस्पताल। समय 10 बजे। फार्मासिस्ट अरूण कुमार सिंह व सुरक्षा गार्ड कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे हैं। इस बीच मरीजों का आना शुरू होता है। दैनिक जागरण की टीम ने सोमवार को यहां का नजारा देखा। मरीजों और परिजनों से बात की तो उनकी मुश्किलें भी सामने आई। टीकाकरण के लिए महिलाएं नवजात शिशुओं को लेकर इंतजार करती दिखीं।

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हमजापुर से आए राजीव प्रकाश पंजीकरण काउंटर पर जाते हैं। इस बीच कुछ महिलाएं भी आ जाती हैं। पंजीकरण के बाद चिकित्सक कक्ष में डॉ. राजेश सिंह मरीजों की जांच करने के बाद दवा वितरण केंद्र पर जाने को कहते हैं। यहीं डॉ. आर कुमार भी मरीजों को देख रहे हैं। चिकित्सा कक्ष के ठीक सामने अल्ट्रासाउंड कक्ष बंद है।

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10:15 बजे : ओपीडी कक्ष के सामने जांच केंद्र और एएनसी कक्ष है। यहा झारखंड के बागेवार से आई गर्भवती बेबी देवी रक्त की जांच के लिए आई हैं। लैब टेक्नेशियन लालबाबू प्रसाद नमूना लेते हैं। वे कहती हैं कि हंटरगंज में इलाज की अच्छी व्यवस्था नहीं है, इसलिए यहां आ जाते हैं।

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10:25 बजे : प्रतिरक्षण केंद्र पर कई महिलाएं शिशुओं के साथ आती हैं। किसी की उम्र एक दिन तो कोई तीन या सात दिनों का शिशु। महिलाएं टीकाकरण के लिए कक्ष के सामने बंद दरवाजे के खुलने का इंतजार कर रही हैं। आमस के सिहुली से आए कलीम खान ने बताया कि एक घंटा पहले सिस्टर ने प्रतिरक्षण कक्ष खोला था। यह कहकर तुरंत बंद कर दिया कि 11 बजे तक इंतजार करें। झारखंड के चतरा जिले के जोरी से सुषमा देवी आई थीं। उनकी गोद में नवजात था, जिसका जन्म एक दिन पहले ही हुआ है। सात दिन के बच्चे को लेकर आईं पंचमह पांडेयपुर की पर्वतिया देवी, तीन दिन की बच्ची के साथ सोनी देवी प्रतिरक्षण केंद्र खुलने का इंतजार कर रही थीं।

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11 बजे : किरण कुमारी ने प्रतिरक्षण केंद्र खोला। इसके बाद बारी-बारी से टीकाकरण शुरू होता है। किरण बताती हैं कि वे एमआर टीका की दवा इंचार्ज भी हैं। इसलिए सुबह सात बजे से 10 बजे तक एमआर के दवा वितरण के बाद प्रतिरक्षण केंद्र खोला जा रहा है। इसलिए टीकाकरण का कार्य देर से शुरू हुआ।

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दवाओं का है अभाव

दवा भंडार के कर्मचारी अरूण कुमार बताते हैं ओपीडी में 58 तरह की दवा होनी चाहिए, पर 45 ही उपलब्ध हैं। इमरजेंसी में 65 में 40 प्रकार की दवाएं उपलब्ध हैं। आवश्यकतानुसार जीवनरक्षक दवाइयां रोगी कल्याण समिति द्वारा समय-समय पर खरीदी जाती हैं। एंटी रेबीज की दवा चार दिनों से नहीं है, लेकिन स्नैक्स बाइट की दवा उपलब्ध है।

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मरीजों से मांगा जाता है पैसा

मरीज वार्ड में सफाई की कमी दिखी। मंजरी कला कहती हैं कि वे यहां रविवार से भर्ती हैं। सामान्य प्रसव हुआ है। प्रसव के बाद नर्स दीदी जबरन पैसे लेती हैं। वे बताती हैं कि छह सौ रुपये लिया है। खुशी से देने पर रख लेना चाहिए, पर दबाव बनाना ठीक नहीं है। हंटरगंज की कंचन देवी का प्रसव ऑपरेशन से हुआ है। वे बताती हैं कि कुछ दवाइयां बाहर से लेनी पड़ी।

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हड़ताल के कारण ऑनलाइन पंजीकरण बंद

स्वास्थ्य प्रबंधक शाह उमैर बताते हैं संजीवनी डाटा ऑपरेटरो की हड़ताल के कारण पंजीकरण का काम अन्य कर्मियों से लिया जा रहा है। ऑनलाइन पंजीकरण बंद है। तीन ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध है, जो मरीजों को आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक की सलाह पर उपलब्ध कराया जाता है।

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आयुष केंद्र में औसतन बीस मरीज

आयुष चिकित्सक ज्योति जायसवाल बताती हैं कि प्रतिदिन औसतन 20 मरीज आते हैं। लकवा, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा एवं हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों की संख्या अधिक है। आमलोग एवं इच्छुक मरीजों को निरोग रहने के लिए योगाभ्यास कराया जाता है।

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चिकित्सक और महिला स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है। चिकित्सक के 29 सृजित पद की तुलना में केवल आठ हैं। दो चिकित्सक डॉ. जितेन्द्र कुमार सिंह व डॉ. राजीव भदानी की प्रतिनियुक्ति बोधगया में कर दी गई है। गायनी, आर्थो, डेंटल, इएनटी के चिकित्सक का पद रिक्त है। ए ग्रेड नर्स के लिए सृजित 49 पद की जगह केवल नौ कार्यरत हैं। ऐसे में चिकित्सकीय व्यवस्था में कठिनाई होती है।

डॉ. आरपी सिंह, अस्पताल उपाधीक्षक, अनुमंडल अस्पताल, शेरघाटी

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सुविधाओं का घोर अभाव

शेरघाटी का अस्पताल अति महत्वपूर्ण है। यह जीटी रोड पर स्थित है। सैकड़ों वाहन रोज गुजरते हैं। दुर्घटना आदि की स्थिति में यही नजदीकी अस्पताल है, पर सुविधा के नाम पर जैसे-तैसे चल रहा है। यहां संसाधनों का घोर अभाव है। यही वजह है कि गंभीर हालत में पहुंचे मरीजों को यहां केवल प्राथमिक उपचार किया जाता है। इसके बाद रेफर कर दिया जाता है। कई बार ऐसा हुआ है कि रेफर मरीजों ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया। वैसे तो यह 100 बेड का अनुमंडलीय अस्पताल है, पर यहां 70 बेड ही उपलब्ध हैं। नर्स की भी भारी कमी है।


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