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सौ दिनों के रोजगार की गारंटी देने वाली योजना से नहीं मिला एक भी दिन काम

ग्रामीण इलाकों में श्रमिकों को काम मुहैया करा गांव में ही रोजगार सुलभ कराने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना मुखिया व कार्यक्रम पदाधिकारी के आपसी अंतद्र्वद्व में फंस गई है। इस कारण पिछले दो साल से जिले के बाराचट्टी प्रखंड की बुमेर पंचायत में अब तक एक भी योजनाएं स्वीकृत नहीं हुई। जबकि योजना के अंतर्गत जॉबकार्ड धारकों (पंजीकृत मजदूर) को सौ दिन के रोजगार की गारंटी देने का प्रावधान है। वहीं रोजगार की तलाश में पंचायत के अधिकाश गावों से मजदूरों का पलायन जारी है। गांव पहुंचने पर घरों में सिर्फ महिला व बच्चे ही नजर आते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 02:16 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 06:13 AM (IST)
सौ दिनों के रोजगार की गारंटी देने वाली योजना से नहीं मिला एक भी दिन काम
सौ दिनों के रोजगार की गारंटी देने वाली योजना से नहीं मिला एक भी दिन काम

अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी (गया)

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ग्रामीण इलाकों में श्रमिकों को काम मुहैया करा गांव में ही रोजगार सुलभ कराने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना मुखिया व कार्यक्रम पदाधिकारी के आपसी अंतद्र्वद्व में फंस गई है। इस कारण पिछले दो साल से जिले के बाराचट्टी प्रखंड की बुमेर पंचायत में अब तक एक भी योजनाएं स्वीकृत नहीं हुई। जबकि योजना के अंतर्गत जॉबकार्ड धारकों (पंजीकृत मजदूर) को सौ दिन के रोजगार की गारंटी देने का प्रावधान है। वहीं रोजगार की तलाश में पंचायत के अधिकाश गावों से मजदूरों का पलायन जारी है। गांव पहुंचने पर घरों में सिर्फ महिला व बच्चे ही नजर आते हैं। महिलाएं कहती हैं, यहां रोजगार नहीं मिलने से पुरुष गैर प्रदेशों में जाकर काम कर रहे हैं। हम लोग घर पर रहकर रोजी-रोटी जुटा रहे हैं। वह कहती हैं, अगर यहीं काम मिलता तो पुरुष बाहर नहीं जाते। परदेस गए पुरुष, महिलाएं जंगलों में बीनती हैं सूखी लकड़ी :

मनफर टोला के बिघी भागलपुर गाव में बेरोजगारी का आलम यह है कि गाव की महिलाएं घरों में बैठकर समय काटती हैं और किसी तरह पेट पालने को मजबूर हैं। शारदा देवी बताती हैं, मेरे पति दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। वहां से मिलने वाले थोड़े पैसे से ही परिवार पलता है। मनवा देवी कहती हैं, मेरे घर के लोग गुजरात में जाकर रंग फैक्ट्री में काम करते हैं। इसी तरह कई अन्य महिलाओं ने भी बताया कि उनके पति व बेटे बाहर काम करते हैं। महिलाएं बताती हैं, हम लोग जंगलों से सूखी लकड़ी काटकर उसे बेचते हैं। हालांकि अब तो लकड़ी भी मुश्किल से बिकती है। लाइन होटलों पर गैस से खाना बनने के कारण खरीदार भी कम मिलते हें। पूर्व मुखिया भी बोलीं, दो साल से नहीं हुआ है कोई कार्य :

पूर्व मुखिया कलवा देवी कहती हैं, बुमेर पंचायत में पिछले दो-तीन वर्षो से अब तक एक भी मनरेगा का कार्य नहीं हुआ है। 40 घरो की इस बस्ती में कुछ घरों को छोड़ दिया जाए तो किसी घर में पुरुष नहीं मिलेंगे। इसकी वजह यह है कि भुखमरी की स्थिति आ जाने के कारण लोग परदेस में जाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। कोट :-1

दो वर्ष से नहीं हो रहा कार्य, काम की तलाश में बाहर जा रहे मजदूर :

मैंने मनरेगा के तहत पिछले साल 20 योजनाओं को चयनित कर प्रशासनिक स्वीकृति के लिए कार्यक्रम पदाधिकारी को भेजा था, लेकिन उन्होंने स्वीकृति नहीं दी। उनसे बात की तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि आपकी पंचायत में मजदूर हैं कहां? पंचायत रोजगार सेवक (पीआरएस) ने योजनाओं के चयनित स्थल की जियो टैगिंग करा दी थी और प्राक्कलन तैयार कर ऑनलाइन भी कर दिया था। दो वर्ष से एक भी योजना स्वीकृत नहीं होने से मजदूर बाहर जा रहे हैं। पीआरएस से कोई समस्या नहीं है, लेकिन कार्यक्रम पदाधिकारी के कारण काम नहीं हो पा रहा है।

-जानकी यादव, मुखिया, ग्राम पंचायत बुमेर, बाराचट्टी, गया। कोट :-2

मुखिया करना चाहते हैं मनमानी, रोजगार सेवक से नहीं है समन्वय

बुमेर पंचायत में एक योजना चल रही है। प्रधानमंत्री आवास का मस्टर रोल बन रहा है और धन का भुगतान समय-समय पर किया जा रहा है। जहां तक मजदूरों के पलायन की बात है, इस संबंध में पीआरएस ने हमें कोई जानकारी नहीं दी है। पंचायत के मुखिया मनमाने ढंग से कार्य कराना चाहते हैं। अगर मजदूरों का पलायन हो रहा है तो उसकी भरपाई भी मनरेगा से करने का प्रावधान है, अगर पीआरएस इसकी रिपोर्ट देंगे तो पलायन करने वाले लोगों के परिवार को लाभ मिलेगा।

-जफर कैफी, कार्यक्रम पदाधिकारी, मनरेगा, बाराचट्टी, गया।


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