आध्यात्मिक व मैत्री संबंध का प्रतीक है अष्टधातु से बनी भगवान बुद्ध की चलायमान मुद्रा की प्रतिमा
बोधगया में स्थित भगवान बुद्ध की चलायमान प्रतिमा भारत और थाईलैंड के आध्यात्मिक एवं मैत्री संबंधों का प्रतीक है। थाइलैंड सरकार निर्मित इस 25 फीट ऊंची प्रतिमा को देखने देश-विदेश के पर्यटक पहुंचते हैं। इस प्रतिमा का निर्माण अष्टधातु से किया गया है।
जेएनएन, गया। पौराणिक उरुवेला वन राजकुमार सिद्धार्थ के बुद्धत्व प्राप्ति के पश्चात बुद्ध गया के नाम से ख्यात हुआ। जगह की प्रसिद्धि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। वैसे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति की 25 सौवीं वर्षगांठ पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर बोधगया को विदेशों में एक अलग ख्याति और पहचान मिली। तब से बोधगया में बौद्ध महाविहार और प्रतिमा स्थापित करने करने का सिलसिला चल पड़ा, जो आज भी जारी है। यहां बुद्ध की एक चलायमान प्रतिमा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है।
बोधगया में विभिन्न बौद्ध देशों के कई मंदिर मोनेस्ट्री बने हैं। भगवान बुद्ध की चार मुद्राओं की चर्चा यथा है-- भूमि स्पर्श मुद्रा, ध्यान मुद्रा, आशीर्वाद मुद्रा और महापरिनिर्वाण मुद्रा। लेकिन थाईलैंड की एक संस्था ने बुद्ध की धम्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा की प्रतिमा बोधगया के अखिल भारतीय भिक्षु संघ के परिसर में स्थापित की है। अष्टधातु की ये प्रतिमा 25 फुट ऊंची है। इसे जमीन से 15 फीट ऊंचे आधार पर खुले में स्थापित किया गया है, जो पूरे भारतवर्ष में स्थापित बुद्ध की प्रतिमाओं में से एक है।
भिक्षु संघ के प्रभारी भंते प्रज्ञा दीप कहते हैं कि इस प्रतिमा के निर्माण में सोना, चांदी, तांबा, लोहा और अष्ट धातु के मिश्रण का इस्तेमाल किया गया है। प्रतिमा की खासियत यह है कि बुद्धत्व प्राप्ति के उपरांत गौतम बुद्ध यहीं से सारनाथ गए थे।अतः इस मुद्रा की निर्मित प्रतिमा में बुद्ध के उड़ते चीवर और पैर आगे पीछे दिखाया गया है। बता दें कि बोधगया में विभिन्न विदेशी मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की प्रतिमा विभिन्न मुद्राओं में अपनी अपनी संस्कृति और कला के अनुसार स्थापित की गई है। उन्होंने कहा कि धम्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा यानी चलायमान मुद्रा की प्रतिमा थाईलैंड और भारत के आध्यात्मिक और मैत्री संबंध के प्रगाढ़ता रूप में इस पावन भूमि पर खुले आकाश में स्थापित की गई है जो दर्शकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता है।