हसरतों के बढ़ते कदमों को मिल गया मुकाम
नमो देव्यै महादेव्यै ................ हसरतों के बढ़ते कदम आकर ठहरे तो बुलंदी पर ................ फोटो गया 28 और 29 ................ - आधी आबादी की बुलंदी की दो सबूत हैं दीक्षा और दिव्या मर्दो की जमात में लहरा रहीं नारी सशक्तीकरण का परचम - गया जंक्शन पर बतौर स्टेशन मास्टर दोनों बखूबी कर रहीं अपने दायित्वों का निर्वहन देखने वाले हो जा रहे भौंचक ............... - 44 स्टेशन मास्टर हैं गया जंक्शन पर स्टेशन प्रबंधक सहित। उनमें आधी आबादी से केवल दीक्षा और दिव्या - 24 जुलाई को पिछले साल दोनों ने किया था योगदान नौकरी के साथ दोनों कर रहीं सिविल सेवा की तैयारी
सुभाष कुमार, गया
बंदिशें टूटते ही उनकी हसरतें बुलंद हो गई। मेधा और मेहनत के बूते वे उस मुकाम पर पहुंच गई, जहां आज भी पुरुषों का वर्चस्व है। यह कहानी दीक्षा और दिव्या की है। गया रेलवे जंक्शन पर बतौर स्टेशन मास्टर उनके कामकाज की सराहना हो रही है। गया रेलवे जंक्शन को ए-ग्रेड का दर्जा प्राप्त है। स्टेशन प्रबंधक सहित 44 स्टेशन मास्टर हैं और उनमें आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महज दो। जानकर हैरत होगी कि अभी पिछले साल ही उन दोनों ने योगदान किया है। जाहिर है कि उससे पहले तक स्टेशन मास्टर के रूप में गया को महिलाओं का नेतृत्व नहीं मिला। जंक्शन से रोजाना सौ अधिक ट्रेनों का परिचालन होता है। उनमें कई मालगाड़ियां भी हैं। दीक्षा और दिव्या उन ट्रेनों को बखूबी ऑपरेट कर रहीं। उनका कौशल देख पुरुष सहकर्मी भी भौंचक हैं। उन्हें लाइन क्लियर देते और कंट्रोल से मिले मैसेज मुताबिक ट्रेन का मूवमेंट कराते देख महिला यात्री ठिठक जाती हैं। अब तो वे रात की पाली में भी ड्यूटी बजाने लगी हैं। दीक्षा और दिव्या की यह कामयाबी नारी सशक्तीकरण की दिशा में बुलंद बिहार की एक बानगी है। उनकी पदस्थापना इसलिए भी खास है, क्योंकि रेलवे की सेवा में आने वाली अपने गांव-जवार की वे पहली बेटियां हैं। सन् 2018 में सात मार्च को पटना स्थित रेलवे भर्ती बोर्ड ने दोनों की बहाली पर मुहर लगाई। 24 जुलाई को वे गया में योगदान करने पहुंच गई। अब वे उन तमाम युवतियों के लिए नजीर बन गई हैं, जो बदलते दौर के साथ कदमताल करने की हसरत रखती हैं। दीक्षा की दुनिया अभी बहुत आगे की: दीक्षा का घर गया जिलान्तर्गत परैया प्रखंड के कष्ठा गांव में है। पिता मधुकर तिवारी रोजी-रोटी के लिए गांव छोड़कर शहर आ गए। वे प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं। मां और भाई-बहन के साथ दीक्षा गांव ही रह गई। वहीं पढ़ाई-लिखाई हुई। मैट्रिक (हाईस्कूल) के बाद वह गया आ गई। अनुग्रह मेमोरियल कॉलेज में इतिहास में स्नातक और परास्नातक किया। उसके बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगीं। रेलवे की इस नौकरी से उम्मीदों को विराम नहीं। लक्ष्य बहुत आगे का है और इरादे बुलंद। अभी वे सिविल सेवा की तैयारी कर रहीं। बकौल दिव्या, सपनों को पंख होते हैं, बशर्ते कि उड़ान में कोई बाधा न हो। मेरे परिजनों ने पूरा साथ दिया। मैं अभी और आगे जाना चाहती हूं और अब तो आर्थिक तंगी भी नहीं रही। मैं अपने सपने को साकार करूंगी। दिव्या के इरादे अभी और आगे बढ़ने की: भोजपुर जिलान्तर्गत पीरो थाना में एक गांव है लोनार। उसी गांव में कुमारी दिव्या का ससुराल है। पति मनोज कुमार सिंह एक कंपनी में प्लाट मैनेजर हैं। पिता प्रो. एस कुमार पटना में शक्ति नगर के वाशिंदे हैं। दिव्या को शुरू से ही लिखने-पढ़ने का माहौल मिला। वह अपनी कक्षा की मेधावी छात्राओं में शुमार रहीं। एक दौर में इंजीनियरिग की पढ़ाई में पुरुष वर्ग का ही दखल था। दिव्या को शुरू से ही गणित और भौतिकी के सवाल रोचक लगते। अंतत: उन्होंने इंजीनियरिग में स्नातक (बीटेक) की डिग्री ली। उसके बाद दिल्ली में सिविल सेवा की तैयारी में जुट गई। बतौर स्टेशन मास्टर प्रतियोगी परीक्षा में उनकी पहली कामयाबी है और अभी काफी उम्र पड़ी है। उनकी इच्छा सिविल सेवा में जाने की है, लिहाजा नौकरी के साथ पढ़ाई-तैयारी जारी है। बकौल दिव्या, हम लड़कियों को अपना आत्मविश्वास ही आगे बढ़ाएगा। इसे कतई नहीं खोना चाहिए। लक्ष्य के मुताबिक तैयारी हो और तौर-तरीके भी उसी के अनुरूप। एक न एक दिन सफलता मिलेगी ही।