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नल-जल योजना से जन को फायदा नहीं, गया के नेता अनुशंसा कर निजी जमीन पर लगवा रहे चापाकल

योजनाएं आमजन की समस्‍या दूर करने के लिए बनती हैं लेकिन उस तक पहुंचती नहीं। कभी सिस्‍टम तो कभी करप्‍शन की भेंट चढ़ जाती हैं। नल जल योजना को लेकर भी प्रदेशभर से ऐसी ही खबरें आती रही हैं।

By Prashant KumarEdited By: Published: Mon, 31 May 2021 11:04 AM (IST)Updated: Mon, 31 May 2021 11:04 AM (IST)
नल-जल योजना से जन को फायदा नहीं, गया के नेता अनुशंसा कर निजी जमीन पर लगवा रहे चापाकल
निजी जमीन पर चारदीवारी के अंदर लगा चापाकल। जागरण।

संवाद सूत्र, अतरी (गया)। बिहार सरकार के द्वारा चलाये जा रहे सात निश्‍चय योजना में शामिल नल जल योजना जो लगभग पूरे बिहार में पूरी तरह से विफल है। साथ ही सरकार पेयजलापूर्ति के लिए कई माध्यम से गांवों में चापाकल भी लगवा रही है। बिहार सरकार पेय जल मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत ही कुछ और है।

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देखा जाए तो सरकारी नियमानुसार, 250 आदमी पर एक सरकारी चापाकल लगाने का प्रावधान है। जो सरकारी आंकड़ो को पूरा करता है, लेकिन जमीनी हकीकत ही कुछ और है। आंकड़ो को पूरा करने वाले सरकारी चापाकल आमजनों की जरूरत को पूरा नहीं कर पाती है, क्योंकि ज्यादातर चापाकल या तो क्षेत्रीय विधायक या सांसद के अनुशंसा पर लगाया जाता है।

कहने को तो यह सुविधा आमजन के लिए होती है मगर हकीकत में अगर जांच की जाए तो ज्यादातर जनप्रतिनिधियों द्वारा अनुशंसा किया हुआ चापाकल निजी उपयोग में लाया जाता है। इसमें जनप्रतिनिधियों के बिचौलिए ताला जड़ कर रखते हैं या फिर अपनी घेराबंदी में। सामूहिक सरकारी चापाकल का अगर सर्वे किया जाए तो सिर्फ गिनती के चापाकल आमजनों के उपयोग में है। कहीं न कहीं सरकार द्वारा जो विकास का वादा किया जाता है, वह कागजों पर सिमट कर रह गया है।

आखिर किस नियमानुसार जनप्रतिनिधियों द्वारा अनुशंसा किया हुआ चापाकल निजी जमीन पर लगाया जाता है। कहीं इसमें भी कुछ लेन देन का मामला तो शामिल नहीं रहता? जनप्रतिनिधियों द्वारा अनुशंसा किया चापाकल कागजों पर आंकड़ों को तो पूरा कर लेता है, मगर आम जनता इससे कितना लाभान्वित है, इसकी जांच होनी चाहिए।

ऐसा ही एक मामला अतरी प्रखंड के डिहुरी गांव से जुड़ा हुआ है, जहां कई जनप्रतिनिधियों द्वारा पेयजल संकट से मुक्ति हेतु अनुशंसा कर चापाकल लगवाया गया है। ताकि ग्रामवासियों को शुद्ध पेयजल आपूर्ति हो सके। मगर इसमें भी गड़बड़झाला है। अधिकतर चापाकल उन जनप्रतिनिधियों के बिचौलियों की मिलीभगत से निजी जमीन पर लगवाए गए और बाद में तालाबंदी कर दी गई। इसका पानी आम आदमी को नहीं मिल पाता है।

सेंट्रल कॉउंसिल ऑफ ह्यूमन राइट्स के प्रदेश महासचिव पंकज सिंह ने सरकार से सरकारी पैसों के दुरुपयोग पर अकुंश लगाते हुए ऐसे सभी चापाकलों की जांच कराने की मांग की है। साथी ही सरकारी राशि के बंदरबांट में शामिल दोषियों पर कार्रवाई करने को कहा है। कार्रवाई की जद में वे भी आने चाहिए, जिनकी जमीन पर चापाकल लगाए गए और वे एकल उपभोग कर रहे हैं।


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