आकांक्षी मिश्रा ने महिलाओं को किसान कहलाने का दिलाया अधिकार
गया। समाज में महिलाओं को किसान कहलाने का हक की चर्चा नहीं हुई है। जबकी आकांक्षी मिश्रा ने इस मिथ्या को तोड़कर इस क्षेत्र में मुकाम हासिल कर आज नारी सशक्तिकरण की मिसाल बन गई।
नमो दैव्ये महादैव्ये
पेज-6, फोटो 32 तकनीकी और आर्थिक रूप से महिलाओं को सशक्त बना रही आकाक्षी मिश्रा
बाराचटटी प्रखंड के 57 महिला ग्राम संगठन की 2280 महिलाओं को किसान कहलाने का दिलाया अधिकार
स्लैक परियोजना से सतत आजीविका एंव पर्यावरण अनुकूल खेती के माध्यम से अधिक उत्पादन, वित्तीय सबल, तकनीकी एंव प्रशिक्षण तथा जन प्रबंधन के मुद्दे पर महिलाओं को कर रही जागरूक संवाद सूत्र बाराचट्टी:
गया। समाज में महिलाओं को किसान कहलाने का हक की चर्चा नहीं हुई है। जबकी आकांक्षी मिश्रा ने इस मिथ्या को तोड़कर इस क्षेत्र में मुकाम हासिल कर आज नारी सशक्तिकरण की मिसाल बन गई। बीएचयू से हिंदी में पीजी की पढ़ाई कर पिछले एक वर्ष से गया जिले में महिलाओं को किसान कहलाने का अधिकार दिलाने के लिए कार्य कर रही हैं। बनारस की रहने वाली आंकाक्षी मिश्रा जीविका से जुड़ी हैं। जो इन दिनों बाराचट्टी प्रखंड में स्लैक परियोजना की यंग प्रोफेशनल पद पर हैं। गाव मे जाकर समूह की महिलाओं को जागरूक कर रही है। सतत आजीविका एंव पर्यावरण अनुकूल खेती करने को प्रेरित कर रही हैं। महिला समूह के बीच खुद खेती कर उन्हें आत्मनिर्भर बनने को उत्साहित कर रही हैं।
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57 महिला ग्राम संगठन की 2280 महिलाओं को सीखा रहीं खेती के गुर आकाक्षी मिश्रा प्रखंड क्षेत्र के 57 महिला ग्राम संगठन की 2280 महिलाओं को खेती करने के लिए जागरूक कर रही हैं। परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। खेती कर महिलाएं दो पैसे की आमदनी कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। कम लागत पर अच्छी खेती कर रही महिलाओं को पूंजी की चिंता भी नहीं है। जब पैसे की कमी होती है तो महिलाएं समूह से कर्ज लेकर खेती करती हैं। अच्छी आमदनी के बाद बचत के पैसे से कर्ज भी चुका दे रही हैं।
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महिलाओं को आकंाक्षी दिला रही किसान कहलाने का अधिकार
कल तक इस क्षेत्र की महिलाएं महिला समूह की बैठक और घर के कार्य तक ही सीमित थी। अब किसानी कर ही है। किसान कहलाने का गौरव महिलाओं को प्राप्त हो रहा है। इस कार्य मे महिलाओं के परिजनों का भी सहयोग मिल रहा है।
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महिलाओं की जुबान पर रहती है आकाक्षी दीदी का नाम महिला समूह के बीच आकाक्षी दीदी का नाम महिलाओं की जुबान पर हर वक्त रहती है। दहियार गाव की इंदु देवी, मनीचक गाव की प्रतिमा देवी कहती हैं इनकी प्रेरणा से मधुमक्खी पलान कर रही हूं। इस वर्ष पहले सीजन में 120 किलो शहद निकला। लगभग चालीस हजार की आमदनी हुई। सोभ बाजार की रेखा देवी,राजवंशी देवी मधुमक्खी पालन एंव मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बनीं। ये बताती हैं अच्छी शहद और मशरूम का उत्पादन हुआ। जिसे बेचने के लिए बाजार में नही जाना पड़ा। घर पर ही आकर लोग खरीद कर ले गए। उक्त महिलाओं ने इसके लिए आकाक्षी दीदी का ही देन कहती है।
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पंद्रह दिन पूर्व ही मिल जाती मौसम की जानकारी
आंकाक्षी मिश्रा गांव की महिलाओं को खेती करने के लिए तो प्रेरित कर रही हैं। वहीं ये लोगों को 15 दिन पूर्व ही मौसम के बारे में जानकारी दे देती हैं कि मौसम कैसा रहेगा और खेती से नुकसान होने वाला है या मुनाफा। इस बात की जानकारी गाव की महिलाओं को उनके मोबाईल पर मैसेज के माध्यम से मिल जाता है। रोही गाव की रेखा देवी कहती हैं कि मौसम की जानकारी पहले होने से खेतो मे लगे फसल को नुकसान से बचाने के उपाय कर लिए जाते हैं। यह सब स्लैक परियोजना और इसे संचालित कर रहीं आकांक्षी मिश्रा की देन है। 'आज ग्रामीण क्षेत्रों मे आधी से अधिक आबादी खेती पर निर्भर है। बात जब खेती करने की आती तो है तो किसान होने का दावा पुरूष वर्ग करते हैं। आज बाराचट्टी प्रखंड में 2280 महिलाएं मौसम के अनुकूल खेती कर यह साबित कर दी हैं कि केवल पुरूष ही नहीं, बल्कि महिला भी किसानी की रीढ़ हैं। जो खेती करने में आगे निकल रही है। बचपन से मेरी यह सोच बनी थी कि महिलाएं घर के चौखट तक ही क्यों रहेगी। वो भी बाहर आकर कृषि के क्षेत्र में काफी कुछ कर किसानी और खुद को आगे तक बढ़ा सकती हैं।
आकाक्षी मिश्रा