छोटी सी पहल ने नक्सल प्रभावित गांव की बदल दी तस्वीर
नमो देव्यै महा देव्यै.. --------- फोटो 26 नई इबारत -महिलाओं ने पैसे बचाकर खोला कुटीर उद्योग अब जी रहीं खुशहाल जिंदगी -आज उनके बनाए उत्पाद की मांग बिहार ही नहीं अन्य राज्यों में भी ----- -70 किमी गया जिला मुख्यालय से दूर इमामगंज का पकरी-गुरिया गांव की कहानी -2013 में 12 महिलाओं का समूह बना शिव गुरु जीविका स्वयंसहायता समूह नाम रखा ---------
विश्वानाथ प्रसाद, मानपुर
ये बदलते गाव की तस्वीर है। महिलाएं कुटीर उद्योग से खुद की और गाव की गरीबी दूर करने की नई इबारत लिख रही हैं। सैकड़ों परिवार आर्थिक तंगी से उबर कर खुशहाली की जिंदगी जी रहे हैं। छोटी सी पहल ने पूरी तस्वीर बदल दी है।
जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर स्थित अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज का पकरी-गुरिया गांव। यहां की महिलाएं नाजायज खर्च में कटौती कर उन पैसों को कुटीर उद्योग में लगाया। आज उनके बनाए उत्पाद की मांग बिहार, झारखंड सहित अन्य राज्यों के कई शहरों में है।
जीविका की पहल : जीविका की पहल से वर्ष 2013 में 12 महिलाओं का समूह बनाया गया। शिव गुरु जीविका स्वयंसहायता समूह नाम रखा गया। महिलाएं नाजायज खर्च में कटौती कर प्रतिमाह साठ रुपये बचत करने लगीं। कुछ ही दिनों में समूह में पचास हजार रुपये जमा हो गए। इससे वे रोजगार करने की योजना बनाई। जीविका द्वारा महिलाओं को विभिन्न तरह के अचार, चिप्स, पापड़ आदि सामग्री बनाने का प्रशिक्षण पटना में दिया गया। उसके बाद महिलाएं गांव आकर सामूहिक रूप से विभिन्न प्रकार की सामग्री बनाने लगीं।
------
120 पर 80 रुपये मुनाफा
कुटीर उद्योग से समूह की महिलाएं बेहद खुश हैं। समूह के अध्यक्ष रेणु गुप्ता बताती हैं, आम, अमड़ा, नींबू, बसकरैल, आंवला, मिक्स व खट्टा-मीठा अचार बनाते हैं। इसके अलावा आलू चिप्स, पापड़ भी बनते हैं। इसे बनाने में 120 रुपये प्रति किलो लागत आती है। इसकी बिक्री दो सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से होती है। यानि एक किलो बिक्री होने पर 80 रुपये का मुनाफा। सीजन के अनुसार, समूह की महिलाओं द्वारा प्रतिदिन सौ किलो से ज्यादा अचार तैयार किया जाता है।
-----------
कोलकाता में अचार
की काफी मांग
समूह की महिलाओं द्वारा बनाई गई विभिन्न किस्म के आचार, पापर, चिप्स की बिक्री गया, पटना, रांची, कोलकाता में में होती है। कोलकाता में सबसे ज्यादा मांग है। यहां सप्ताह में कभी दो तो कभी तीन बार विभिन्न किस्म के बने आचार जरूरत के अनुसार भेजे जाते हैं।
-------
रहने के तौर-तरीके बदले,
बच्चे ले रहे अच्छी शिक्षा
नक्सल क्षेत्र के गांवों की महिला और पुरुष दिनभर खेत में काम करते थे। खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ी लाते थे। माता-पिता के सहयोग में बच्चे भी लगे रहते थे। इसके कारण बच्चे अशिक्षित रह जा रहे थे। आज सब कुछ बदल चुका है। कुटीर उद्योग ने रहने के तौर-तरीके बदल दिए हैं। उनके बच्चे भी अच्छी शिक्षा ले रहे हैं।
------------
अब इलाज के लिए नहीं
लेना पड़ता है कर्ज
समूह के सचिव मुन्नी देवी, कोषाध्यक्ष सरिता देवी बताती हैं, गांव में समूह बनने से काफी फायदा हो रहा है। अब किसी की तबियत बिगड़ती है तो इलाज के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ता है। समूह की महिलाएं नहीं जरूरत के अनुसार रुपये इलाज को दे देती हैं।