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भूख सह लेंगे, बर्दाश्त नहीं होगी फैक्ट्रियों में पड़ने वाली मार

[अश्विनी] गया न घर-परिवार का प्यार-दुलार, न ही गांव-समाज की पुचकार। हमउम्र मिलते भी हैं तो श्रम क

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 09:00 AM (IST)
भूख सह लेंगे, बर्दाश्त नहीं होगी फैक्ट्रियों में पड़ने वाली मार
भूख सह लेंगे, बर्दाश्त नहीं होगी फैक्ट्रियों में पड़ने वाली मार

[अश्विनी] गया

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न घर-परिवार का प्यार-दुलार, न ही गांव-समाज की पुचकार। हमउम्र मिलते भी हैं तो श्रम की भट्ठी में, जहां बचपन हर रोज सिसकता है। छोटी-सी उम्र में वक्त से बहुत पहले जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा बचपन। यह मजबूरी है और उसका फायदा उठाते हुए जबर्दस्ती बचपन के सौदागरों की। बिहार से हर साल बड़ी तादाद में मजदूरी के लिए बाहर ले जाए जा रहे बच्चों का एक कड़वा सच।

बिहार में गया इसका सबसे बड़ा हब बन चुका है, जहां से बच्चों को मजदूरी के लिए महानगरों में भेजा जाता है। इसमें अनुसूचित जाति के बच्चों की संख्या ज्यादा है। परिवार की दीन-हीन हालत को सौदागरों की शैतानी आंखें बखूबी परख लेती हैं। फिर लगाई जाती है कीमत। पांच से आठ-दस हजार तक। कुछ पैसे तत्काल, कुछ बाद में देने का वादा और बच्चे दलालों संग पहुंच जाते हैं कि उस दलदल में, जहां उसे न किसी से मिलने की इजाजत होती है और न बात करने की। सप्ताह भर पहले जयपुर से छुड़ाकर लाए गए बच्चों की सहमी आंखों ने एक बार फिर बयां किया कि हालत कितनी नाजुक है। अच्छी बात यह कि प्रशासन ने इनकी खोज-खबर ली, अन्यथा ये बच्चे किसी फैक्ट्री में पिस रहे होते। इन बच्चों ने कहा-भूख सह लेंगे, पर फैक्ट्रियों में पड़ने वाली मार बर्दाश्त नहीं होगी।

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रोंगटे खड़े कर देने वाला सच

यह लंबे समय से चल रहा है। हाल के वर्षो में यह और बढ़ा। 2018 में दैनिक जागरण ने जब पड़ताल की तो रोंगटे खड़े कर देने वाले तथ्य सामने आए। बच्चों को पता भी नहीं कि वे कहां जा रहे हैं। राजस्थान का जयपुर वह बड़ा केंद्र था, जहां बच्चों की सर्वाधिक मांग थी और आपूर्ति का केंद्र गया। बचपन के सौदागरों ने बच्चों को मांग-आपूर्ति का बाजार बना दिया। दलालों का नेटवर्क इतना मजबूत कि किसके घर में हांडी में क्या पक रहा है, यह भी पता। स्थानीय स्तर पर भी नेटवर्क तैयार कर रखा है। वह दलाल बच्चों के माता-पिता को झांसे में रखकर उन्हें बाहर ले जाता है।

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बच्चों के साथ खतरनाक खेल

चूंकि चाइल्ड ट्रैफिकिंग बहुत आम बात हो चुकी थी, इसलिए सामाजिक स्तर पर भी इसका बहुत मायने नहीं कि बच्चे कहां जा रहे हैं। जागरण जब गांवों में पहुंचा तो बात इससे कहीं बहुत आगे की निकली। मानपुर का परोरिया, खिजरसराय, नीमचक बथानी, अतरी जैसे इलाकों में दलालों की पैठ और बचपन का सौदा! देश के आने वाले कल के साथ खतरनाक खेल। बाराचट्टी की एक मां सात-आठ साल पहले गए अपने बच्चे का आज भी इंतजार करती हुई मिली। वैसे, चाइल्ड ट्रैफिकिंग रोकने की दिशा में कुछ संस्थाओं का सराहनीय प्रयास बच्चों को वापस लौटा पाने में कारगर जरूर रहा। एक किरण आरोह की चेयरमैन रितू प्रिया, पीपुल फ‌र्स्ट एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन दीपक कुमार आदि ने इसके लिए प्रयास किया। रेस्क्यू जंक्शन और चाइल्डलाइन ने बच्चों की सुध ली।

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दलालों की दबंगई

बड़ा सवाल बच्चों के पुनर्वास का था। जागरण ने अपनी पड़ताल में पाया कि बच्चे छुड़ाकर लाए जाने के बाद फिर उस दलदल में वापस जाने को मजबूर थे। दलालों की दबंगई का यह प्रमाण था। ऐसे बच्चे भी मिले, जो दोबारा नर्क की जिंदगी जीने को जयपुर के चूड़ी कारखानों में भेज दिए गए थे। इसे रोकने को सामाजिक स्तर पर कोई पहल नहीं होने के कारण दलालों का मन बढ़ा हुआ है। इस मुद्दे पर संबंधित अथारिटी से बात की गई तो वहां भी लाचारी ही बयां हो रही थी।

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चला अभियान तो खुलने लगी पोल

दैनिक जागरण ने पूरी पड़ताल के बाद जब 'बाजार में बचपन' संपादकीय श्रृंखला शुरू की तो बचपन के सौदागरों की द¨रदगी की कहानियां परत दर परत सामने चली आती गई। 4 जून, 2018 को बच्चों की दर्दभरी रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जिसका शीर्षक था-अपनी मां के पंखों तले चूजे महफूज, इंसान के बच्चों से छूट रही गोद। यह रिपोर्ट उस जमीनी सच को बता रही थी, जहां बच्चों का मोल भाव मुर्गो की तरह हो रहा हो। यह कड़वा हो सकता है, पर हकीकत है। 5 जून की रिपोर्ट में बताया गया कि दलाल किस तरह हर घर का हिसाब रखे हुए हैं-'बचपन के सौदागरों के पास होती है हर गांव की कुंडली।' इस दौरान जयपुर से लौटे कुछ बच्चों ने भी अपनी आपबीती बताई (पहचान उजागर नहीं की जा सकी)। कुछ ऐसे बच्चे भी मिले, जिन्हें कुछ साल पहले हिमाचल ले जाया गया था। 6 जून को सरकार और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया गया कि किस तरह बिहार से थोक में बच्चे बाहर भेजे जा रहे हैं-'बिहार से थोक में हो रही बच्चों की तस्करी।' बच्चों ने बताया कि किस तरह उसका मालिक उसे दांत काट लेता था, उन पर जुल्म की यह हद थी। 7 जून को जागरण ने इसे उजागर किया-'पलक झपकते ही बच्चों को काट लेता था शेरू।' गांव-कस्बों से श्रम की भट्ठी में धकेले गए बच्चों की पीड़ा सामने आ चुकी थी। इसके बाद जागरण की टीम ने जयपुर की चूड़ी फैक्ट्रियों में स्टिंग ऑपरेशन किया तो हकीकत सामने थी। इस संबंध में 8 जून को रिपोर्ट प्रकाशित हुई-'बिहार के बच्चों यातनागृह बने राजस्थान के कारखाने।' अब बारी थी व्यवस्था की। जागरण ने बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. हरपाल कौर से बात की। वे यह सब जानकर दुखी थीं, पर लाचारी भी। 9 जून को यह रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई-'बिहार बाल आयोग की अध्यक्ष ने कहा, बेबस है आयोग।' यूनीसेफ की कंट्री हेड डॉ. यास्मिन अली हक से इस मुद्दे पर बात की गई। 10 जून को यह रिपोर्ट भी आई-'पंचायत स्तर पर ही लगाएं बाल तस्करी पर लगाम।'

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जब दिखने लगा असर

इन अभियानों का प्रशासन ने संज्ञान लिया। दृढ़ इच्छाशक्ति बच्चों के सुनहरे कल को गढ़ने की दिशा में अपना असर छोड़ने लगी। 9 अगस्त को 123 बच्चे जयपुर के कारखानों से मुक्त कराकर लाए गए। बच्चों ने जो कुछ बताया, उस संबंध में वही बातें प्रकाशित हुई थीं। इन्होंने भी वही दर्द सहा था, लेकिन अब वे अपने घर में महफूज थे। पुलिस प्रशासन से लेकर रेल पुलिस तक ने मोर्चा संभाला तो दलालों में खलबली मची। जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने सितंबर में गया जंक्शन पर चाइल्ड हेल्पलाइन डेस्क का शुभारंभ किया। उन्होंने जागरण की मुहिम पर कहा कि पिछले सात-आठ माह के कार्यकाल में उन्हें बच्चों की तस्करी के बारे में काफी जानकारी मिली, इस पर न सिर्फ रोक लगेगी, बल्कि पुनर्वास की भी पूरी व्यवस्था की जाएगी। रेल पुलिस की सक्रियता बढ़ी तो आए दिन ऐसे बच्चे बरामद किए जाने लगे, जो दलालों के माध्यम से ले जाए जाने वाले थे। एक तस्कर को कोर्ट ने सजा भी दी। यह एक सुखद संकेत है। अब इस साल 24 जनवरी को 166 बच्चे जयपुर से छुड़ाकर लाए गए, जिनमें सर्वाधिक गया के थे। चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि अब बच्चों को कारखानों में ले जाने के लिए महिलाओं की मदद ली जा रही है। बहरहाल, प्रशासन ने इस पर संज्ञान लेते हुए सतर्कता बढ़ा दी है।

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जागरण की मुहिम से लोगों में जागरूकता आई है, प्रशासन लगातार कार्रवाई कर रहा है। इसका ही असर है कि अमूमन हर दिन ऐसे बच्चों को बचाया जा रहा है, जिन्हें बाहर ले जाने की तैयारी थी। लेकिन अभी भी जयपुर व हिमाचल में काफी बच्चे हैं।

दीपक कुमार, चेयरमैन

पीपुल फ‌र्स्ट एजुकेशन चैरिटेबल ट्रस्ट

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बच्चों की तस्करी सामूहिक प्रयास से ही रुकेगी। जागरण की इस दिशा में पहल के बाद लोगों ने जमीनी सच भी जाना है। बच्चों के पुनर्वास पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान होगा। दलालों पर नकेल कसी गई है, पर वे चोरी-छिपे सक्रिय हैं। इसलिए लगातार नजर रखनी होगी।

रितू प्रिया, चेयरमैन

एक किरण आरोह

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पुलिस की कड़ी नजर है। बच्चों का सौदा करने वाले दलालों के खिलाफ स्पीडी ट्रायल चलाया जा रहा है। रेल पुलिस हर संदिग्ध पर कड़ी नजर रखे हुए है। कहीं से भी सूचना मिलते ही तत्काल कार्रवाई की जा रही है।

कमल किशोर सिंह

रेल थानाध्यक्ष, गया जंक्शन


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