सूई-धागे से सुनहरे जीवन की माला गढ़ रहीं रंजू, दूसरी महिलाओं को भी दिखा रहीं स्वावलंबन की राह
गया के वजीरगंज की रंजू उन महिलाओं के लिए मिसाल हैं जो गरीबी बेरोजगारी का रोना रोती हैं। कभी भरपेट खाने को तरसने वाली रंजू आज न सिर्फ अपनी जिंदगी में सफल हैं बल्कि वे दूसरों को भी राह दिखा रही हैं।
रविभूषण सिन्हा,वजीरगंज (गया )। वजीरगंज की रंजू देवी वैसी तमाम महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं जो आर्थिक तंगी या पति के नहीं कमाने का हवाला देते हुए खुद को कोसती रहती हैं। कभी भरपेट खाने को तरसने वाली रंजू आज न सिर्फ खुद सुखद जीवन बिता रही हैं बल्कि दूसरे को भी रास्ता दिखा रही हैं। जीवन में तमाम कष्टों को झेलते हुए रंजू सिलाई-कढाई कर आज स्वावलंबन की नई कहानी गढ़ रही हैं।
कई दिन तक नहीं जलता था चूल्हा, नसीब नहीं था दो वक्त का खाना
रंजू का आरंभिक दांपत्य जीवन बहुत ही कष्टदायक रहा। कई दिन घर में चूल्हा नहीं जला। यहां तक की माचिस खरीदने के लिए भी दूसरों का मोहताज रहना पड़ा। पैसे के अभाव में बच्चे को स्कूल से निकाल दिया गया। सही कपड़े तक नहीं थे। भला इससे भी ज्यादा कष्ट और क्या हो सकता है। लेकिन इन सारी विकट परिस्थितियों को हंस-हंसकर झेलते हुए रंजू आज अपने जीवन के सफल मुकाम पर हैं। आज अच्छी स्थिति में खुद का व्यवसाय, सुंदर सा मकान, सरकारी सेवा में दो संतान, सब कुछ है इनके पास। एक पुत्र अमित एमसीए एवं पुत्री सृष्टि बीएससी कर प्रखंड कार्यालय में सहायक कार्यपालक के पद पर कार्यरत हैं। तीसरा पुत्र सुमित भी दरभंगा इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री ले चुका है ।
विवाह के पहले और बाद के दिन रहे कष्टदायक
अपनी कहानी बताते हुए रंजू के चेहरे पर दर्द साफ दिखता है। वे बताती हैं कि विवाह के पहले और विवाह के बाद भी लंबे समय तक घर में खाने के भी लाले पड़े रहते थे। पहले तो पिता की निर्धनता और लंबी बीमारी रंजू को सताए रही। न समय से भरपेट खाना, न पहनने के वस्त्र, न पढ़ाई लिखाई। हां पिताजी को वजीरगंज मुख्य बाजार में पूर्वजों से विरासत के रूप में मिला हुआ अपना मकान था, जिससे रहने के घर के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पड़ा। रंजू सिर्फ दो बहने थीं कोई भाई नहीं था। किसी तरह दसवीं कक्षा तक पढ़ाई करते-करते रिश्तेदारों के सहयोग से विवाह करा दिया गया। विरासत में पिता का मकान मिला ।
नाममात्र की थी पति की कमाई
पति सुबोध राम भी निर्धन थे। पति तो जैसे हार मान गए। घर में कुछ भी नहीं था। लेकिन वह विचलित नहीं हुई। कुछ दिन अपने मामा का सहयोग मिला। पति गांव-गांव घूमकर कपड़े बेचते थे। उसकी पूंजी महाजन की होती थी। पति की कमाई नाममात्र की थी। कभी-कभी भूख बर्दाश्त नहीं होने पर किसी से दस रुपये उधार भी लिए। बहुत कष्ट था। इसी बीच बच्चे भी हो गए। बोझ बढ़ता गया। लेकिन जैसे-जैसे बोझ बढ़ा, रंजू खुद की सोच से सशक्त होती गई। सिलाई कटाई की एक जानकार महिला से संपर्क कर सिलाई सीखी। पड़ोस के एक सिलाई मशीन दुकानदार ने उधार में एक मशीन दे दी। अब रंजू अपनी जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए सुई धागे से भविष्य बुनने लगी। सुई और धागे जो सुनने और देखने में तो बहुत ही छोटा सा प्रतीत होता है भला रंजू के इतने बड़े पहाड़ से बोझ वाली जिंदगी को यह कैसे संभाल सकता था। लेकिन सुई और धागे जैसे बिखरे फूलों को भी पिरोकर सुंदर सा माला का स्वरूप देता है ,निराकार कपड़ों को पहनने या तन ढकने के लिए सुंदर सा वस्त्र का रूप देता है ,ठीक उसी तरह रंजू की जिंदगी को भी इसने सुंदर और सुसज्जित रूप में ढाल दिया ।
(महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखातीं रंजू।)
सिलाई सीखने के बाद भाग्य भी देने लगा साथ
प्रारंभ में रंजू अपने घर के पास पड़ोस के ग्राहकों के कपड़े सिलाई करने लगी, जिससे घर के खर्चे आसानी से निकलने लगे। घर के आगे महिला सिलाई सेंटर का बोर्ड भी लगा दिया जिससे बाहरी ग्राहकों का भी आना-जाना शुरू हो गया। बचे समय में आसपास की कुछ लड़कियों को सिलाई सिखाने का भी काम करने लगी। अब सिलाई के पैसे से घर में आसानी से दोनों शाम चूल्हा जलाते हुए मशीन के उधारी का पैसा भी चुकता करने लगी । एक कहावत है, जब इंसान खुद से प्रयत्न करता है तो उसे भाग्य और भगवान दोनों साथ देने लगते हैं । रंजू की साहसी प्रवृत्ति और लगन शीलता को देखकर अब इसके भाग्य ने भी अपना दरवाजा खोलना शुरू कर दिया।
जनशिक्षण संस्थान से मिला सहयोग
एक दिन घर पर लगे महिला सिलाई सेंटर के बोर्ड पर एक सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र कुमार सिन्हा की नजर पड़ी। वे प्रसिद्ध जन शिक्षण संस्थान के जिला कार्यक्रम समन्वयक हैं। उन्होंने तुरंत रंजू के घर तक पहुंच कर उसके पूरे जिंदगी की जानकारी ली । यूं कहिए रविंद्र जी को भगवान ने रंजू के लिए एक फरिश्ता के रूप में भेज दिया था ।इनके संपर्क और सहयोग मिलते ही रंजू के जिंदगी में चार चांद लग गए । संस्थान के तत्कालीन प्रमुख जयकुमार पालीत और रेणुका पालीत से इनकी मुलाकात कराई गई। पालीत दंपत्ति ने अपने यहां सरकारी योजनाओं से संचालित वजीरगंज का सिलाई कटाई प्रशिक्षण केंद्र के संचालन की जिम्मेवारी रंजू को सुपुर्द कर दिया। अब क्या था इसका कारवाँ तेज गति से बढ़ने लगा । आय का स्रोत मिल गया ।
अब पति की बैग की अच्छी खासी दुकान
कुछ पूंजी जमा हुई तो पति को फेरी का कार्य छुड़ाकर अपने ही मकान में बैग बेचने की एक दुकान खोलवाई। वह अब वजीरगंज बाजार का प्रसिद्ध बैग दुकान है अमित बैग सेंटर। आज के समय में पूरे परिवार खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। क्षेत्र की महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबन की राह भी दिखा रही है । इनकी प्रेरणा से प्रखंड क्षेत्र के सोनी कुमारी ,नीतू कुमारी, काजल कुमारी ,प्रतिमा एवं अन्य कई महिलाएं सशक्त होकर खुद का घर चला रही है । जन शिक्षण संस्थान गया द्वारा इन्हें अपने संस्थान से सर्वोत्कृष्ट पर शिक्षिका एवं सशक्त महिला के रूप में सम्मान पत्र भी दिया जा चुका है ।