जहां जनहित का सवाल, वहीं खड़े हो जाते हैं वृजनंदन
तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वाजिब मुद्दों के लिए लड़ते रहे एक व्यक्ति की सोच और जज्बे ने न सिर्फ अपनी मुहिम को राह दी, बल्कि आने वाली पीढि़यों की भी चिंता की। हथियार बना सूचना का अधिकार।
[कमल नयन] गया
तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वाजिब मुद्दों के लिए लड़ते रहे एक व्यक्ति की सोच और जज्बे ने न सिर्फ अपनी मुहिम को राह दी, बल्कि आने वाली पीढि़यों की भी चिंता की। हथियार बना सूचना का अधिकार।
उम्र करीब 40 साल। सरल स्वभाव के वृजनंदन पाठक मुद्दों पर जंग के लिए मशहूर हैं। उन्होंने प्रशासन के कई फैसले के खिलाफ न सिर्फ आवाज बुलंद की, बल्कि अदालत की चौखट पर भी पहुंचे। इसके सार्थक परिणाम भी निकले। चाहे फल्गु नदी के अस्तित्व का मामला हो यह पहाड़ों का अतिक्रमण कर वहां नई बसावट का। प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद होते देखना उन्हें मंजूर नहीं था और एक जिम्मेवार नागरिक की हैसियत से उन्होंने इस पर रोक लगाने के लिए सूचना के अधिकार का सहारा लिया। उससे मिली जानकारी के आधार पर कोर्ट पहुंचे। उनकी यह लड़ाई समाज के हित, आने वाली पीढि़यों के लिए थी।
उन्होंने एक दर्जन से भी अधिक जनहित याचिका दायर कर रखी है। सारे सवाल समाज के हैं। कोर्ट ने इन मामलों में प्रशासन को निर्देश भी जारी किया।
वृजनंदन बताते हैं कि शहर की लाइफलाइन फल्गु नदी की दुर्दशा उन्हें काफी कचोटती रही थी। उन्होंने इस मामले में जानकारी एकत्र की और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्हें जगह-जगह से काफी कुछ सुनना पड़ा, धमकी भी मिली, पर समाज के लिए सोचते हैं तो उसी समाज के लोग साथ भी देते हैं।
उन्होंने ऐसे ही एक मामले में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी तो पता चला कि गया शहर के बीचोबीच प्रमंडलीय मुख्यालय के एक पौराणिक सरोवर को भर दिया गया है। उन्होंने इसे खाली करने की बात कही। उन्हें प्रशासन की नाराजगी भी झेलनी पड़ी। यह मामला आज भी चल रहा है। अब भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बिहार सरकार के सचिव को पत्र भेजा है कि इस पर कार्रवाई की जाए। ऐसे एक-दो नहीं, दर्जनों मामले हैं ,जहां प्रशासन की अनदेखी के कारण धरोहरों का नुकसान हुआ है। स्थानीय गांधी मैदान इसका एक नमूना है, जहां चारों तरफ सरकारी भवनों का निर्माण करा दिया गया। वे इस मामले में भी हाईकोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने सख्ती बरती तो अब कहा जा रहा कि आगे निर्माण नहीं होगा।
वृजनंदन बातें सबकी सुनते हैं, पर सवाल जनहित का होता है तो उनका हथियार होता है आरटीआई और फिर पहुंच जाते हैं कोर्ट। पेयजल संकट, फल्गु नदी, निजी विद्यालयों का शुल्क, रेलवे का ओवरब्रिज, ब्रह्मायोनि पहाड़ी पर अतिक्रमण जैसे मामले आमलोगों से जुड़े हैं, जिसमें वे लगातार लड़ाई लड़ रहे। उनका मानना है कि हर व्यक्ति को जिम्मेवार बनना होगा, तभी सिस्टम और सामाजिक सरोकार दुरुस्त होंगे। संविधान ने हर नागरिक को पर्याप्त अधिकार हैं, यह हमारा कर्तव्य बनता है कि समाज के हित में उन अधिकारों का इस्तेमाल करना सीखें।