पितृपक्ष मेले पर प्रतिबंध को किसी ने सराहा तो कइयों ने नकारा
गया। पितृपक्ष मेले पर प्रतिबंध से लोगों मे निराशा है।
गया। पितृपक्ष मेला स्थगित हो जाने के बाद शहर के बुद्धिजीवियों ने अपनी-अपनी राय विभिन्न तरीके से दी है। मेले पर प्रतिबंध को किसी ने सराहा है तो किसी ने नकारा है। कई लोगों ने कोरोना संक्रमण के मद्देनजर प्रतिबंध को उचित ठहराया है तो कुछ लोगों ने इसे नाजायज बताया है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रतिबंध के कारण कई लोगों की रोजी-रोटी छिन जाएगी और उन्हें जीवनयापन करना मुश्किल होगा। प्रस्तुत है विभिन्न वर्ग के बुद्धिजीवियों की राय :-
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जनता के हित में लिया गया निर्णय :
साहित्यकार डॉ. राम निरंजन परिमलेंदु ने कहा कि पितृपक्ष मेले का आयोजन हजारों वर्ष होते आ रहा है। किंतु कोरोना वायरस को लेकर सरकार ने मेला को स्थगित कर सराहनीय कार्य किया है। गाइडलाइन के साथ भी मेला का आयोजन होता तो संभव नहीं शारीरिक दूरी का पालन होना। जनता के हित को देखते हुए सरकार ने सही निर्णय लिया है।
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धार्मिक दृष्टिकोण से गलत निर्णय :
साहित्यकार डॉ. रामकृष्ण ने कहा कि धार्मिक दृष्टिकोण पितृपक्ष मेला पर प्रतिबंध लगाना गलत निर्णय है। क्योंकि आध्यात्म में आस्था सबसे बड़ा है। जिसके कारण देश-विदेश से तीर्थयात्री गया आते हैं, लेकिन कोरोना काल में मेला पर प्रतिबंध का निर्णय सरकार का सराहनीय कार्य है। ऐसे आर्थिक हानि तो होगी, परंतु किया क्या जा सकता है।
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मेला लगने से संक्रमण फैलने का भय :
चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष संजय भारद्वाज ने कहा कि पितृपक्ष मेला पर पहली बार प्रतिबंध लगा है। धार्मिक पक्ष से यह गलत कार्य है। लेकिन सरकार ने प्रतिबंध लगा सही कार्य किया है। मेला का आयोजन होने से कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का भय है। क्योंकि भीड़ लगने से शारीरिक दूरी का पालन संभव नहीं है।
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संक्रमण में वृद्धि का संभावना :
समाजसेवी शिव कैलाश डालमिया ने कहा कि सरकार ने पितृपक्ष मेला पर प्रतिबंध लगाकर अच्छा कार्य किया है। नहीं तो कोरोना संक्रमण खतरा अधिक बढ़ सकता था। क्योंकि देश-विदेश में तीर्थयात्री पितृपक्ष मेला में आते है। अधिक भीड़ लगने पर अधिक संख्या में लोग संक्रमित हो सकते थे।
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ऑनलाइन पिडदान उचित नहीं :
भारतीय राष्ट्रीय ब्राहृाण महासभा के अध्यक्ष डॉ. विवेकानंद मिश्र ने कहा कि वैदिक मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार पितरों की मुक्ति के लिए गयाधाम में सशरीर उपस्थित होकर पुरोहितों के आदेश लेकर ही पिडदान करने का आदेश निहित है। जिसमें बदलाव धर्म विरुद्ध आचरण है। उक्त कार्य बिल्कुल गलत है। सनातन धर्मावलंबियों को आहत करने वाली है।