यहां घोर समस्या के बाद भी शिकायत से डरते हैं मरीज और परिजन
फोटो 26 27 28 29 ----------- ऑन द स्पॉट -मगध मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति विभाग में चहुंओर अव्यवस्था पदाधिकारी बने हैं मूकदर्शक ---------- -मां के साथ नवजात की सेहत के लिए भी ठीक नहीं माहौल -जन्म के बाद ही नजराने के लिए मच जाती है होड़ ------------- जागरण संवाददाता गया
गया । गजब है भाई गजब। यहां घोर अन्याय होने के बाद भी कोई कुछ नहीं बोलता। बोले भी कैसे। शिकायत करने या फिर आवाज उठाने पर जुल्म और बढ़ जाता है। यहां भर्ती मरीज राम भरोसे ही हैं। हालांकि, बच्चे के जन्म लेने के बाद नजराने के लिए व्यवहार मधुर हो जाता है।
यह स्थिति मगध प्रमंडल के सबसे बड़े अस्पताल अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति विभाग की है। यहां चहुंओर अव्यवस्था मुंह बाए है। शिकायत आम बात। मरीजों के साथ लापरवाही बरतने, नवजात गायब होने, रात को मरीजों को उनके हाल पर छोड़ने, बच्चे के जन्म के बाद जबरन नजराना मांगने, मरीज व परिजन के साथ दुर्व्यवहार, जमीन पर मरीजों को लेटाने, दवा न मिलने समेत कई शिकायतें आए दिन मरीजों द्वारा की जाती है। इसे गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई करने या फिर व्यवस्था में सुधार लाने के बजाय अधिकारी मूकदर्शक बने हैं। दैनिक जागरण की टीम ने शनिवार को पड़ताल की तो कई अनियमितताएं सामने आई।
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सुबह 8 बजे
ओपीडी के रजिस्ट्रेशन काउंटर खुल जाना चाहिए था पर ऐसा नहीं दिखा। दर्जनों मरीज व उनके परिजन कतारबद्ध होकर काउंटर खुलने का इंतजार करते रहे। निर्धारित समय के आधे घंटे देरी से रजिस्ट्रेशन काउंटर खुला।
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सुबह 8:30 बजे
स्त्री व प्रसूति विभाग का ओपीडी शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं था। कुछ महिला मरीज कतार में खड़ी थीं तो कुछ बैठी थीं। डॉक्टर के कमरे की तमाम कुर्सियां खाली पड़ी थीं। हालांकि, नर्स इंचार्ज अपनी टीम के साथ मुस्तैद नजर आई। यहां मरीजों के नाम दर्ज किए जा रहे थे। कुछ महिला मरीज असहनीय दर्द से कराह रही थीं।
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सुबह 9 बजे
स्त्री एवं प्रसूति विभाग का ओपीडी शुरू हुआ। डॉक्टर के कमरे बाहर महिला गार्ड ने मरीजों को कतारबद्ध होने का निर्देश देती रही। ओपीडी में धीरे-धीरे मरीजों की संख्या बढ़ने लगी थी। नर्सो ने बताया करीब दो सौ मरीजों की जांच एक दिन में होती है। ओपीडी का समय सुबह आठ बजे से दो बजे तक और शाम चार से छह बजे तक है। यहां नर्सो की संख्या ऐसे तो 60 है, तीन शिफ्टों में 20-20 नर्सो की ड्यूटी है। मरीजों की संख्या हिसाब से नर्सो की संख्या कम है।
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सुबह 9:15 बजे
गायनी विभाग के 80 बेड वाले वार्ड के कुछ कमरों का दृश्य चौंकाने वाला था। एक मरीज के लिए बने एक बेड पर दो और तीन मरीज लेटे नजर आए। मा के साथ इसी बेड पर नवजात भी था। पूछने पर नसरें ने बताया कि ये सभी मरीज ही हैं। कुछ गर्भवती हैं तो कुछ का प्रसव हो चुका है। जगह कम है। एक बेड पर दो-तीन मरीज रखना मजबूरी है।
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सुबह 9:30 बज
विभाग के गायनी वार्ड में हर तरफ गहमागहमी थी। वार्ड के छोटे-छोटे कमरे में मरीज व उनके परिजन भरे हुए थे। बरामदे में भी कई बेड लगे हुए थे। वहीं, वार्ड के इर्द-गिर्द गंदगी फैली थी। शायद यह माहौल नवजात, मा और गर्भवती की सेहत के लिए ठीक नहीं। दिन लाल रंग की चादर का था, लेकिन अधिकाश बेड पर पहले की हरे रंग की चादर बिछी थी। कई बेड पर चादर थी ही नहीं।
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सुबह 10:15 बजे
भर्ती मरीज पूजा कुमारी कहती हैं, बच्चे के जन्म लेते ही दाई नजराना के लिए दबाव बनाती हैं। हर मरीज व परिजन कुछ न कुछ शिकायत कर रहे थे। सस्ती दवा तो यहां मिल जाती है लेकिन महंगी बाजार से मंगाई जाती है। शौचालय की हालत बद से बदतर थी। चहुंओर गंदगी फैली थी। प्रसव के लिए भर्ती मरीज कहती हैं, यहां सुनने वाला कोई नहीं है। नर्स से कुछ कहने में डर लगता है। ऐसे में चुप रहना ही विकल्प है।
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व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है। लगातार मोनीटरिग की जा रही है। मरीजों की शिकायतों का संज्ञान लिया जा रहा है। दिशा-निर्देश भी दिए जा रहे हैं। जल्द ही अस्पताल में व्यापक बदलाव दिखेगा।
पी.के. अग्रवाल, उपाधीक्षक, एएनएमएमसीएच