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नवादा: थर्मोकोल और प्लास्टिक पर प्रतिबंध से कौआकोल के नेढ़ला गांव के दर्जनों परिवार अत्यंत खुश, जानिए कारण

सरकार की ओर से थर्मोकोल व प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे में अब पत्तल निर्माण से जुड़े परिवारों के समक्ष बेहतरी की उम्मीद जगी है। इन गरीब परिवारों को उम्मीद है कि अब उनके हरे-हरे पत्तल की मांग बढ़ेगी। अब अधिक पत्तल बनाकर बेच सकेंगे।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Published: Mon, 04 Jul 2022 01:54 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2022 01:54 PM (IST)
नवादा: थर्मोकोल और प्लास्टिक पर प्रतिबंध से कौआकोल के नेढ़ला गांव के दर्जनों परिवार अत्यंत खुश, जानिए कारण
थर्मोकोल और प्लास्टिक पर प्रतिबंध से कौआकोल के नेढ़ला गांव के दर्जनों परिवार खुश

 नवीन कुमार, कौआकोल: नवादा जिले के पिछले प्रखंड में शुमार कौआकोल में अनेकों परिवार वर्षों से हरा पत्तल बनाने का काम करते आ रहे हैं। सरकार की ओर से थर्मोकोल व प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे में अब पत्तल निर्माण से जुड़े परिवारों के समक्ष बेहतरी की उम्मीद जगी है। इन गरीब परिवारों को उम्मीद है कि अब उनके हरे-हरे पत्तल की मांग बाजार में बढ़ेगी। अब वह अधिक पत्तल बनाकर बेच सकेंगे। 

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आमदनी बढ़ने से घर की माली हालत थोड़ी दूर हो सकेगी। जंगल से सटे दरावां पंचायत के नेढ़ला गांव का घटवार परिवार का पुश्तैनी धंधा पत्तल बनाने का रहा है। बिहार में थर्मोकोल एवं प्लास्टिक पर पूर्णता बैन लगने से उन लोगों का पुश्तैनी धंधा एक बार फिर से जोर पकड़ने की उम्मीद है। 

इस गांव में दर्जन भर से अधिक परिवार हर दिन पत्ता से पत्तल बिनने का काम करते हैं। एक दिन में एक परिवार 100 से लेकर 200 तक पत्तल बना लेता है। एक बंडल में 25 पत्तल रहता है। एक बंडल की कीमत 14 रुपये मिलती है। अब मांग बढ़ेगी तो रेट भी बढ़ेगा। यह सोचकर पत्तल बनाने वाले खुश हैं।

नेढ़ला गांव की पत्तल निर्माण के रूप में रही है पहचान

कौआकोल प्रखण्ड मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर जमुई जिले के चन्द्रदीप थाना से सटे दो जिला की सीमा के किनारे दरावां पंचायत का एक छोटा सा गांव नेढ़ला है। यहां की पहचान परंपरागत पत्तल निर्माण के केंद्र के रूप में की जाती है। दशकों पूर्व से ही इस गांव के लगभग दो दर्जन से अधिक परिवार इस पेशे से जुड़े हुए हैं। यह गांव तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा है। जिनकी जीविका का एकमात्र साधन पत्तल बनाकर बाजारों में बेचना है।

उन लोगों का बनाया पत्तल शादी से लेकर श्राद्ध और अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों में हर घरों में उपयोग होता है। लेकिन बदलते परिवेश में इसी रोजगार से पेट चलाना इन परिवारों के लिए काफी मुश्किल होता जा रहा है। बाजार में थर्मोकोल से बने पत्तल व कटोरी आ जाने से इनका पत्तल उस अनुरूप नहीं बिक रहा था।

जंगल से लाते हैं कच्चा माल

गांव के लोग पास के जंगलों से पत्तल निर्माण के लिए कच्चा माल लाते हैं। इस गांव में पत्तल का निर्माण मुख्य रूप से सखुआ के पेड़ के पत्तों से होता है। हरे सखुआ के पत्ते को बांस के बारीक सींक से एक-दूसरे से टांक कर पत्तल तैयार करते हैं। पुरुषों के साथ साथ गांव की महिलाएं भी इस कार्य से जुड़ी हुई हैं।

क्या कहते हैं ग्रामीण:

पत्तल बनाने के काम से जुड़े ग्रामीण बाली देवी, सुषमा देवी, पचमी देवी, बबीता देवी, इंदु देवी, गौरी देवी,अर्जुन राय, रामधनी राय, बासुदेव राय आदि बताते हैं कि उन लोगों के पूर्वज ही पत्तल बनाते थे। पहले लोग उनके घरों तक आकर उनलोगों के हाथ का बना पत्तल व कटोरी शादी, विवाह, श्राद्ध आदि अवसरों पर ले जाया करते थे। लेकिन हाल के दिनों में थर्मोकोल का प्रचलन हो जाने से उनलोगों का धंधा काफी फीका पड़ गया। सरकारी स्तर पर इस धंधे के विकास को लेकर कोई पहल भी नहीं की जा रही है। जिससे वे लोग किसी तरह इस धंधे से जुड़कर अपना पेट पाल रहे हैं। दो जून की रोटी का किसी तरह जुगाड़ हो जाता है।

क्या कहते हैं अधिकारी

सीओ अंजली कुमारी ने कहा कि थर्मोकोल एवं प्लास्टिक पर सरकार ने पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया है। बावजूद जो लोग प्रतिबंधित सामानों का उपयोग व बिक्री करते पकड़े जाएंगे,उन पर विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी।


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