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औरंगाबाद: मंदिर के दरवाजे पर मजार, एक साथ होती है पूजा व फातेहा, सामाजिक सद्भाव का है अनोखा मिसाल

मंदिर में प्रत्येक दिन देव सूर्यमंदिर के पुजारी सुबह होते ही पूजा करते हैं आरती करते हैं घंटी बजाते हैं तो मजार पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कुरानखानी व फातेहा पढ़ते हैं। अगरबत्ती जलाते हैं। मजार पर चादरपोशी की जाती है।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 05:15 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 05:15 PM (IST)
औरंगाबाद: मंदिर के दरवाजे पर मजार, एक साथ होती है पूजा व फातेहा, सामाजिक सद्भाव का है अनोखा मिसाल
मंदिर के दरवाजे पर मजार जहां एक साथ होती है पूजा व फातेहा

 मनीष कुमार, औरंगाबाद : देव थाना मुख्यालय के पौराणिक एवं ऐतिहासिक सूर्य मंदिर के पास किला के पीछे राम, लक्ष्मण, जानकी और हनुमान की मंदिर (ठाकुरबाड़ी) है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर बिजली खां (बिजली शहीद) का मजार है। औरंगजेब के शासन काल में बिजली शहीद व अन्य भाईयों का देव किला पर साम्राज्य था। तब उमगा के राजा प्रवित्य सिंह ने किला को अपने अधीन लिया था। उसी समय किला से कूदकर भागने के दौरान मंदिर के दरवाजे पर मौत हो गई थी। बाद में उसी जगह पर बिजली शाह की मजार बना दी गई। 

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सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल

मंदिर के दरवाजे पर मजार आज दोनों संप्रदाय को सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश करती है। मंदिर में प्रत्येक दिन देव सूर्यमंदिर के पुजारी सुबह होते ही पूजा करते हैं, आरती करते हैं, घंटी बजाते हैं तो मजार पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कुरानखानी व फातेहा पढ़ते हैं। अगरबत्ती जलाते हैं। मजार पर चादरपोशी की जाती है। हर वर्ष मोहर्रम व ईद के दौरान ताजिया रखा जाता है। मजार पर पहला ताजिया देव किला के तरफ से रखा जाता है। पवित्र छठ पर्व के दौरान मजार के पास छठव्रती प्रसाद बनाते हैं। आवासन करते हैं, मजार के पास बैठते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है पर आजतक यहां दोनों समुदाय में किसी भी तरह का विवाद व तनाव नहीं हुआ है। 

यह मंदिर और मजार गंगा जमुनी तहजीब को मजबूत करती है

देश के कई जगहों पर सांप्रदायिक और समुदाय हिंसा के कारण बढ़ते तनाव के बीच सामाजिक समरसता का यह पवित्र जगह आपसी सौहार्द का एक मिसाल है। ऐसे तो देव में लगने वाला छठ मेला में जहां मुस्लिम संप्रदाय के घरों में छठ व्रतियों का आवासन होता है। मुस्लिम संप्रदाय के लोग व्रतियों की सेवा करते हैं इसी परंपरा के बीच यह मंदिर और मजार गंगा जमुनी तहजीब को मजबूत करती है। बुजुर्ग नागरिक बताते हैं कि जब मंदिर के पुजारी (महंथ) जयमंगल दास थे तो बारिश होने पर ताजिया को मंदिर के अंदर ही रखवा देते थे। कब से यह प्रथा चली आ रही है इसका वर्ष कोई नहीं बता पाता है। 

कहते हैं सूर्यमंदिर के मुख्य पुजारी

देव सूर्य मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि ठाकुरबाड़ी के दरवाजे पर बिजली खां का मजार देव में आपसी सद्भाव का मिसाल है। इस जगह पर आजतक न कोई विवाद हुआ है न तनाव। अगर ऐसा सद्भाव पूरे देश में हो तो क्या कहा जाए। क्या कहते हैं कब्रिस्तान कमेटी के सचिवमजार के पास के निवासी कब्रिस्तान कमेटी के सचिव मुनिर खां ने बताया कि देव का यह जगह दोनों संप्रदाय के लिए आपसी सौहार्द का एक अनोखा मिसाल है। आजतक यहां ताजिया रखने, कुरानखानी व फातेहा पढ़ने, चादर चढ़ाने , अगरबत्ती जलाने के लिए कोई विवाद या तनाव नहीं हुआ है। अल्पसंख्यक के अलावा हिंदू समुदाय के लोग भी इसमें शामिल होते हैं। मोहर्रम के दौरान पहला ताजिया देव किला के तरफ से ही रखा जाता है।


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