औरंगाबाद जिले में छात्रवृत्ति घोटाला में डीडीसी समेत कई बैंकों के प्रबंधक और कर्मी जांच के दायरे में आए
मामला औरंगाबाद जिला में छात्रवृत्ति घोटाला का बिना उपयोगिता प्रमाण पत्र के ही कल्याण विभाग ने कैसे दिया आवंटन बतौर नियंत्रित पदाधिकारी डीडीसी की भूमिका-दायित्वों की होगी जांच राशि का हस्तांतरण बैंक से इसलिए संबंधित बैंक के प्रबंधक और कर्मी भी घेरे में।
[उपेंद्र कश्यप] दाउदनगर (औरंगाबाद)। औरंगाबाद जिले में करोड़ों रुपये के हुए प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति घोटाले में जांच का दायरा कल्याण विभाग पटना, तत्कालीन उप विकास आयुक्त औरंगाबाद और संबंधित बैंकों के प्रबंधक-कर्मी तक पहुंचेगा। सभी जांच के दायरे में हैं। कई प्रश्न ऐसे हैं, जिनका जवाब आगे होने वाले अनुसंधान के बाद ही सामने आएगा।
शुक्रवार को पटना में आर्थिक अपराध इकाई में दर्ज कराई गई प्राथमिकी कांड संख्या 03/ 2021 के अनुसार जिला कल्याण पदाधिकारी को व्यय से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र कल्याण विभाग को उपलब्ध कराने का निर्देश है। किंतु तत्कालीन जिला कल्याण पदाधिकारी शान्ति भूषण आर्य द्वारा निर्धारित नियमों मापदंडों को ताक पर रखकर राशि का आवंटन गलत ढंग से साजिश के तहत किया गया। उनके द्वारा ना तो विद्यालय शिक्षा समिति से उपयोगिता प्रमाण पत्र प्राप्त की गई और न ही व्यय से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र कल्याण विभाग को दिया गया। इस प्रकार गलत रूप से किए गए आवंटित राशि को संबंधित स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक या प्रधानाध्यापकों द्वारा जिला कल्याण पदाधिकारी से संबंधित अन्य लोगों से मिलकर राशि को वास्तविक रूप में लाभूक को न देकर गबन कर लिया गया।
प्रावधान के तहत जिला कल्याण पदाधिकारी द्वारा आवंटन राशि की उपयोगिता प्रमाण पत्र देने के बाद ही विभाग द्वारा अगला आवंटन किया जाता है। इस मामले में कल्याण विभाग अनुसूचित जाति जनजाति एवं पिछड़ा अति पिछड़ा पटना द्वारा इस प्रकार राशि आवंटित की गई, इस बिंदु पर भी अनुसंधान के क्रम में जांच अपेक्षित है। प्राथमिकी में कहा गया है कि प्रावधान के तहत छात्रवृत्ति योजना में संबंधित जिले के उप विकास आयुक्त नियंत्रि पदाधिकारी होते हैं। करोड़ों रुपए की सरकारी राशि का गबन हुआ है।
इस संदर्भ में नियंत्रि पदाधिकारी की भूमिका एवं दायित्व के संबंध में अनुसंधान में अग्रेतर अनुसंधान में छानबीन करने की आवश्यकता है। प्राथमिकी में कहा गया है कि चूँकि गबन की राशि अत्यधिक है इसलिए इस योजना से जुड़े अन्य पदाधिकारी की भूमिका तथा उनका दायित्व की छानबीन अग्रेतर अनुसंधान में किया जा सकता है। राशि का हस्तांतरण बैंक के माध्यम से किया गया है, इसलिए संबंधित बैंक के प्रबंधक-कर्मी की संलिप्तता की जांच इस बिंदु पर आवश्यक है कि उनके द्वारा खाता खोलने के सरकारी नियमों का पालन किया गया है या नहीं।
अवैध निकासी की हुई है पुष्टि
प्राथमिकी में कहा गया है कि जांच के क्रम में इस बात की पुष्टि हुई है कि जिला कल्याण पदाधिकारी एवं कल्याण विभाग के कर्मियों द्वारा संबंधित विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक से आपसी साजिश के तहत मिलीभगत कर सरकार के करोड़ों रुपए के राशि का गबन किया गया है। इन लोक सेवकों के द्वारा गबन में अपने पद का भ्रष्ट दुरुपयोग कर राशि आवंटित करने एवं उनसे अवैध तरीके से निकासी करने में पाया गया है।
इस प्रकार तय है जिम्मेदारी
डीडीओ व डीडीसी की जिम्मेदारी सरकार ने तय कर राखी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के पत्रांक 01/ छात्रवृत्ति-रा.यो.-प्री-मैट्रिक 06-/2010 (31) दिनांक 07.07.2014 एवं अन्य पत्रों में सभी जिला कल्याण पदाधिकारी को निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी (डीडीओ) की जवाबदेही निर्धारित की गई है। योजना के नियंत्रित पदाधिकारी संबंधित जिला के उप विकास आयुक्त के होने का उल्लेख पत्रों में किया गया है। इस कारण डीडीसी भी जांच के घेरे में शामिल किए गए हैं।
12,79,79,900 रुपये का इस प्रकार गबन
प्राथमिकी के अनुसार संबंधित विद्यालयों के बारे में जिला शिक्षा पदाधिकारी से पत्राचार करने पर ज्ञात हुआ कि 19 विद्यालय सरकारी नहीं है जिसमें मैट्रिक छात्रवृत्ति की राशि 04 करोड़ 93 लाख 69400 रुपये नियम विरुद्ध हस्तांतरित किया गया है। 19 विद्यालय के विद्यालय शिक्षा समिति के खाते में राशि न भेजकर अन्य बैंक खाता में कुल 62427000 रुपए भेज कर गबन किया गया। 17 विद्यालयों की ऐसी सूची मिली है जिसमें छात्रों के अनुपात में 01 करोड़ 61 लाख 83 हजार 500 अधिक रुपए भेज कर गबन किया जाना प्रतीत होता है।