मगध में कुनबाई समीकरणों के साथ मुद्दे भी होंगे हावी
मगध नेताओं को जांचने-परखने के लिए तैयार है। यहां की तीन संसदीय सीटों गया नवादा और औरंगाबाद में उम्मीदवारी को लेकर मचे घमासान का एक दौर सोमवार को प्रथम चरण के नामांकन के साथ संपन्न हो गया। अंतिम दिन था सो चिलचिलाती धूप में भी जबर्दस्त भीड़ रही।
अश्विनी, गया
मगध नेताओं को जांचने-परखने के लिए तैयार है। यहां की तीन संसदीय सीटों गया, नवादा और औरंगाबाद में उम्मीदवारी को लेकर मचे घमासान का एक दौर सोमवार को प्रथम चरण के नामांकन के साथ संपन्न हो गया। अंतिम दिन था, सो चिलचिलाती धूप में भी जबर्दस्त भीड़ रही।
यह पहला दौर नेताओं का था, जहां उम्मीदवारी को लेकर हर दिन सियासत रंग बदलती रही। रह-रहकर नए-नए नाम उछलते रहे और दावेदारों की छटपटाहट भी बढ़ती गई। अब तस्वीर साफ होने के बाद जनता की बारी है। परीक्षा की असली घड़ी आ चुकी है, जहां मुद्दों के चाक पर भावी सांसद गढ़े जाएंगे। व्यावहारिक नजरिए से कुनबाई समीकरण को भी कतई दरकिनार नहीं किया जा सकता है, पर इस बार थोड़ा फर्क है।
1952 के बाद से ही कुनबाई खाद-पानी से हो रही सियासी खेती में शत-प्रतिशत पहले वाली बात नहीं रही है। मतदाताओं की सोच बहुत तेजी से बदली है और खास तौर से नई पीढ़ी देश-दुनिया के सवालों के साथ कुछ ज्यादा ही सतर्क दिख रही। बेशक यह पीढ़ी माहौल बनाने में भी अग्रणी भूमिका में होगी। इसलिए चुनाव पर इसका गहरा असर पड़ना तय है।
सभी ने अंतिम दिन अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। संसदीय सीटों पर कई चेहरे बदल गए हैं। गया में मौजूदा भाजपा सांसद हरि मांझी इस बार जदयू उम्मीदवार के सारथी की भूमिका में होंगे तो पिछली बार जदयू प्रत्याशी के रूप में तीसरे स्थान पर रहे जीतनराम इस बार जदयू के सामने हैं। फर्क यह कि राजद साथ है तो दूसरी ओर जदयू के साथ भाजपा। पिछले चुनाव के दलीय और कुनबाई वोटों के गुणा-भाग में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है, सो कुनबे को समेटने की जबर्दस्त चुनौती दोनों ओर है। औरंगाबाद में भी समीकरण थोड़ा बदल गया है। मौजूदा सांसद सुशील सिंह एक बार फिर भाजपा प्रत्याशी के रूप में ही मैदान में हैं, लेकिन पिछली बार रेस में रही कांग्रेस इस बार महागठबंधन के हम प्रत्याशी के समर्थन में। यहां मुद्दों से ज्यादा कुनबाई समीकरण हावी है। खुद की जमात के वोट को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं। लेकिन कुनबे पर दलीय भरोसा किस हद तक साथ रहेगा, यह बड़ी चुनौती होगी। यहां कुनबों के बीच का स्थानीय समीकरण फिलहाल कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा। किसी खास सियासी समीकरण को अपने निजी कुनबाई समीकरण में फिट कर पाने की कड़ी चुनौती दिख रही है। नवादा को लेकर बड़ी उठापटक हो रही। पिछले चुनाव में गिरिराज सिंह ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी, इस बार उन्हें बेगूसराय शिफ्ट कर दिया गया है। सीट एनडीए के घटक दल लोजपा को चली गई, जहां से चंदन सिंह उम्मीदवार हैं। यहां के लिए नया चेहरा, लेकिन पूर्व सांसद सूरजभान सिंह का भाई होने के नाते पहचान का संकट नहीं। दूसरी ओर महागठबंधन से राजद प्रत्याशी विभा देवी हैं। पूर्व मंत्री राजबल्लभ यादव की पत्नी। इनके साथ भी पहचान का संकट नहीं है। यहां दलीय कैडर और कुनबाई वोटों की बिसात पर तस्वीर एक हद तक साफ दिख रही है। लेकिन अंदरखाने की सियासत से जूझने की चुनौती दोनों ओर। यहां मतदान का प्रतिशत बहुत मायने रखेगा। बहरहाल, नामांकन के साथ ही सभा वगैरह की शुरुआत भी हो चुकी है। दो-चार दिनों में जैसे-जैसे चुनावी रंग गाढ़ा होता जाएगा, तस्वीर भी और स्पष्ट होती जाएगी।
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सियासी मैदान के प्रमुख चेहरे
गया
विजय मांझी : एनडीए से जदयू प्रत्याशी
जीतनराम मांझी : महागठबंधन से राजद प्रत्याशी
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औरंगाबाद
सुशील सिंह : एनडीए के भाजपा प्रत्याशी
उपेंद्र प्रसाद : महागठबंधन से हम सेक्यूलर प्रत्याशी
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नवादा
चंदन सिंह : एनडीए से लोजपा प्रत्याशी
विभा देवी : महागठबंधन से राजद प्रत्याशी