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    मगध मेडिकल में 2 साल से ठप पड़ा अल्ट्रासाउंड, हर दिन 300 गरीब मरीजों की जेब पर डाका, निजी क्लीनिकों की चांदी

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 12:24 PM (IST)

    गया के मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पिछले दो वर्षों से अल्ट्रासाउंड सेवा ठप है, जिससे रोजाना 300 गरीब मरीजों को निजी क्लीनिकों में महंगा अल्ट्रासाउंड कराना पड़ रहा है। रेडियोलॉजिस्ट की कमी के कारण यह सुविधा बंद है, जिससे मरीजों को भारी परेशानी हो रही है और निजी क्लीनिकों की कमाई बढ़ रही है। अस्पताल प्रशासन ने उच्चाधिकारियों को इस स्थिति की जानकारी दी है।

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    मगध मेडिकल में 2 साल से ठप पड़ा अल्ट्रासाउंड

    जागरण संवाददाता, गया। मगध प्रमंडल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में पिछले दो वर्षों से अल्ट्रासाउंड सेवा ठप है। इस वजह से हजारों मरीजों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। अस्पताल प्रशासन की मानें तो रेडियोलॉजिस्ट (अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ डॉक्टर) की कमी के कारण यह महत्वपूर्ण जांच सुविधा बंद है। 

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    हर दिन दूर-दराज़ इलाकों से आने वाले मरीज यहां अपनी बीमारी का इलाज कराने पहुंचते हैं, लेकिन जब डॉक्टर अल्ट्रासाउंड जांच लिखते हैं, तो उन्हें निजी क्लीनिक का रुख करना पड़ता है। वहां जांच कराने में मरीजों को 1000 से 1200 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों के लिए यह स्थिति बेहद कठिन हो गई है।

    तीन डॉक्टरों से शुरू हुई सुविधा, अब पूरी तरह बंद

    कुछ साल पहले तक मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अल्ट्रासाउंड जांच नियमित रूप से होती थी। तब यहां तीन रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर तैनात थे। हर दिन मरीजों को यह सुविधा उपलब्ध कराई जाती थी।

    धीरे-धीरे डॉक्टरों के पद खाली होते चले गए। पहले एक डॉक्टर के ट्रांसफर होने के बाद सप्ताह में दो-तीन दिन ही जांच होती थी। फिर एक और डॉक्टर के चले जाने से सेवा पूरी तरह ठप हो गई।

    करीब दो साल पहले से आम मरीजों के लिए अल्ट्रासाउंड सेवा पूरी तरह बंद कर दी गई है।

    हर दिन 300 मरीजों को होती है जांच की जरूरत

    अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार, ओपीडी में रोजाना करीब 1500 से 1800 मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इनमें से औसतन 300 मरीजों को डॉक्टर अल्ट्रासाउंड जांच के लिए लिखते हैं।

    सेवा बंद होने के कारण ये सभी मरीज बाहर के निजी क्लीनिकों में जाकर जांच कराते हैं। बाहर जांच कराने में न केवल समय बल्कि काफी पैसा भी खर्च करना पड़ता है।

    ग्रामीण इलाकों से आने वाले गरीब मरीजों के लिए यह खर्च किसी बोझ से कम नहीं है।

    निजी क्लीनिकों की चांदी, सरकारी व्यवस्था ठप

    अल्ट्रासाउंड सेवा बंद होने से शहर के निजी क्लीनिकों की कमाई बढ़ गई है। जो जांच सरकारी अस्पताल में मुफ्त होती थी, उसके लिए अब मरीजों को जेब ढीली करनी पड़ रही है।

    एक मरीज ने बताया कि डॉक्टर ने पेट दर्द की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड लिखा था, लेकिन अस्पताल में सुविधा नहीं होने से उन्हें बाहर जाकर जांच करानी पड़ी। इसके लिए उन्हें 1100 रुपये खर्च करने पड़े।

    अधीक्षक बोले डॉक्टर की कमी है वजह

    अस्पताल अधीक्षक डा के के सिन्हा ने स्वीकार किया कि फिलहाल अल्ट्रासाउंड सेवा बंद है। उन्होंने बताया, “रेडियोलाजिस्ट के अभाव में सामान्य मरीजों का अल्ट्रासाउंड नहीं हो पा रहा है। केवल पुलिस जांच से जुड़े केसों में अदालत के आदेश पर अल्ट्रासाउंड कराया जाता है। 

    अधीक्षक ने यह भी कहा कि उच्चाधिकारियों को स्थिति की जानकारी दी जा चुकी है। यदि डॉक्टर की नियुक्ति या प्रतिनियुक्ति की जाती है, तो सेवा दोबारा शुरू की जा सकती है।

    मरीजों की बढ़ रही परेशानी

    गया के अलावे औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद, अरवल आदि से रोजाना बड़ी संख्या में मरीज मगध मेडिकल पहुंचते हैं। लेकिन अल्ट्रासाउंड सुविधा न होने से कई बार डॉक्टरों को भी इलाज में कठिनाई होती है।

    एक मरीज की पत्नी ने बताया डॉक्टर ने कहा कि पहले अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट लाओ, फिर इलाज करेंगे। बाहर जाकर रिपोर्ट बनवाने में दो दिन लग गए। इतने पैसे भी कहां से लाएं । ऐसे में अस्पताल की यह स्थिति गरीब मरीजों के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है।

    प्रशासनिक उदासीनता पर उठ रहे सवाल

    लोगों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण दो साल से यह सेवा बंद है। जबकि यह सुविधा किसी भी बड़े अस्पताल का बुनियादी हिस्सा होती है। मरीजों ने सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द रेडियोलाजिस्ट की नियुक्ति कर अल्ट्रासाउंड सेवा शुरू की जाए।

    क्या कहते हैं विशेषज्ञ

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अल्ट्रासाउंड जांच कई गंभीर बीमारियों की पहचान में अहम भूमिका निभाती है। पेट, लिवर, किडनी, गर्भावस्था या ट्यूमर से जुड़ी समस्याओं की शुरुआती पहचान इसी जांच से होती है। सेवा बंद रहने से मरीजों की सही समय पर पहचान और इलाज में देरी हो रही है, जो कई बार जानलेवा साबित हो सकती है।