जीयर स्वामी ने कहा-किसी के कल्याण की भावना के उद्देश्य से होता है मंगलाचरण, चाहे वह गीत हो या स्तुति के रूप में
रोहतास जिले के डेहरी के नारायणपुर गांव में आयोजित ज्ञान यज्ञ में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी के प्रवचन में लोगों की भीड़ जुट रही है। उन्होंने शुक्रवार शाम प्रवचन करते हुए मंगलाचरण के उद्देश्य और महत्व पर प्रकाश डाला।
जागरण संवाददाता, सासाराम (रोहतास)। सुकदेव जी महाराज ने बताया कि मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना। जैसे कि किसी का विवाह हो रहा हो उसके भूत, भविष्य, वर्तमान की सुखद कामना करना ही मंगलाचरण है। इसके लिए पितरों को, ऋषियों को, भगवान को, देवताओं की गीतों से गुहार ही मंगलाचरण होता है। डेहरी के नारायणपुर गांव में आयोजित ज्ञान यज्ञ में प्रवचन करते हुए लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि सुकदेव जी ने भी बाद में मंगलाचरण किया। कहा कि इसका उद्देश्य है कि समाज में, परिवार में जो भी इसे सुने उसका मंगल हो। चाहे भजन के रूप में हो या स्तुति के रूप में हो।
भगवान के अंगों में ब्रह्मांड
जीयर स्वामी जी ने कहा कि सुकदेवजी ने राजा परिक्षित को बताया कि जो अच्छे सदाचारी ब्राम्हण हों उन्हें भगवान का मुख बताया गया है। भगवान के मुख की पूजा करने का मतलब अग्नि का पूजन, रोम की पूजा का मतलब वृक्ष तथा नाड़ी की पूजा से नदियों की पूजा है। स्वास वायु है। भगवान के नेत्र के ध्यान का मतलब अंतरिक्ष का ध्यान कर लिया। भगवान के पैर के तलवे को ध्यान करते हुए यह मानना चाहिए कि यह पताल लोक है। पैर के अग्र भाग रसातल लोक, दोनो एडी का ध्यान का मतलब महातल का दर्शन, जांघो के ध्यान का मतलब महीतल लोक का दर्शन। दोनो पेंडुली का दर्शन परासर लोक की पूजा, घुटनों का दर्शन सुतल लोक का दर्शन, नाभी का दर्शन करने का मतलब हमने आकाश का, भगवान के वक्षस्थल की पूजा करने का मतलब स्वर्गलोक का दर्शन कर लिया।
ईश्वर के ललाल से तपोलोक का दर्शन
मुख का दर्शन करने का मतलब जन लोक, ललाट का दर्शन करने का मतलब तपोलोक का दर्शन, सिरोभाग का दर्शन सत् लोक है। भगवान की भुजा की पूजा करने का मतलब इन्द्र की, कान का ध्यान करने का मतलब दिशा का पूजन, इस प्रकार भगवान के अंगो का ध्यान करने से अलग अलग लोकों के परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है। यदि सारे दुनिया के तीर्थ व्रत देवी देवता की पूजा करने की क्षमता नही है तो केवल एक मात्र भगवान नारायण की पूजा कर लिया तो तैंतीस कोटि देवता हैं सभी देवताओं को सातों लोक की अराधना कर ली।