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कभी छत तो कभी दीवारों से गिरते हैं प्लाटर

नीरज कुमार मिश्र, डोभी शिक्षा विभाग की लापरवाही और सरकार की अनदेखी के कारण बच्चे दहशत में है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Jan 2019 08:08 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2019 08:08 PM (IST)
कभी छत तो कभी दीवारों से गिरते हैं प्लाटर
कभी छत तो कभी दीवारों से गिरते हैं प्लाटर

नीरज कुमार मिश्र, डोभी

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शिक्षा विभाग की लापरवाही और सरकार की अनदेखी के कारण बच्चे दहशत में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं। विद्यालयों के पास अपना भवन नहीं है, जो इमारत मुहैया कराई गई है वह जर्जर हो चुकी है। फर्श में टूटी हुई ईंटें बिछी हैं। फर्नीचर की तो बात करना ही बेमानी है। कभी छत तो कभी दीवारों से प्लाटर गिरते रहते हैं। सदी, गर्मी या फिर बरसात हो, हर मौसम में आसमान के नीचे ही कक्षाएं लगती हैं। ऐसे में बच्चों के साथ-साथ शिक्षक भी डरे रहते हैं। गुणवत्तापरक शिक्षा और सुविधाओं के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती है। इसके बावजूद विद्यालयों के भवनों को दुरुस्त नहीं कराया जा रहा। हम बात कर रहे हैं मध्य विद्यालय जयप्रकाश नगर की।

प्रारंभ से आज तक विद्यालय सामुदायिक भवन में चल रहा है। वर्ष 1995 में भूदान की जमीन पर बने सामुदायिक भवन में प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की गई। विद्यालय के पास मात्र दो डिसमिल जमीन है। वर्ष 2011 में प्राथमिक विद्यालय को मध्य विद्यालय में उत्क्रमित कर दिया गया। प्रखंड का यह पहला विद्यालय है। यहां सभी वर्ग के बच्चे पोशाक में ही आते हैं। नये सत्र में नामाकन लेने वाले बच्चे भी सप्ताह के अंदर अपने परिजन को कहकर पोशाक बनवा लेते हैं। बच्चों को विद्यालय प्रशासन द्वारा एक रंग मे रंग दिया है, जिस कारण अधिकारी जब निरीक्षण के लिए आते हैं तो देखकर खुश हो जाते हैं।

वर्तमान में विद्यालय में 288 बच्चे नामाकित हैं। यहां सिर्फ बैठने के लिए जगह नहीं है। विद्यालय के शिक्षक ठंड में विद्यालय के सामने वाली जमीन पर बैठाकर पठन-पाठन का कार्य करते हैं, परंतु गर्मी के मौसम मे बहुत कठिनाई होती है। वहीं बरसात में तो दो क्षतिग्रस्त कमरा होने के कारण पढ़ाई बाधित होता है। बरसात में छत से पानी टपकता रहता है। विद्यालय में पाच शिक्षक और एक टोला सेवक हैं। मध्याह्न भोजन का निर्माण खुले में होता है। पेयजल के लिए एक चापाकल है। बैठने के लिए बच्चे खुद घर से बोरा लेकर आते हैं। वहीं, थाली की कमी के कारण दो शिफ्ट में बच्चों को मध्याह्न भोजन दिया जाता है। इस विद्यालय में जयप्रकाश नगर, चकला और मुंगेश्वरपुर गाव के बच्चे पढ़ने आते हैं। विद्यालय बंद रहने पर आसपास के लोग विद्यालय भवन का उपयोग निजी कार्य और जानवर बाधने के लिए करते हैं।

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भवन का घोर अभाव है। इसके कारण शिक्षक होने के बावजूद पढ़ाई बाधित होती है। विद्यालय की चहारदीवारी नहीं होने से आवारा जानवर घूमते रहते हैं। विद्यालय के आसपास गंदगी फैला देते हैं।

नीलम कुमारी, कक्षा आठ

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-विद्यालय के सामने वाला पोखर में काफी गड्ढ़ा हो गया है, जिसके बरसात के दिनों में बच्चों को डूबने की आशंका रहती है। खतरे को भांपते हुए एक शिक्षक को देखरेख में लगाना पड़ता है। पोखर और विद्यालय का घेराव अति आवश्यक है।

-अनिता कुमारी, कक्षा आठ

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-विद्यालय के पास जमीन नहीं होने के कारण हमलोग खेलकूद में काफी पीछे हैं। विद्यालय के भवन से लगातार टूट-टूटकर पलास्टर गिरता रहता है। इससे बच्चे ही नहीं शिक्षक भी डरे सहमे रहते हैं।

अमीषा कुमारी, कक्षा आठ

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विद्यालय में संस्कृत विषय की पढ़ाई नहीं होती है। तीन वर्ग के बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाने से कोर्स पूरा नहीं हो पाता है। बरसात में विद्यालय का संचालन भगवान के रहमोकरम पर निर्भर होता है।

उपेन्द्र कुमार, कक्षा आठ


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