रिक्शे पर पली 17 वर्षों की उम्मीद को इस बेटे ने किया साकार, जानिए
कहते हैं ना...इरादे बुलंद व नेक हों तो हर सपना साकार होता है। इसे साकार कर दिखाया है एक रिक्शा चालक पिता और उसके बेटे ने। पिता के सपने को बेटे ने परिश्रम से पूरा कर दिखाया है।
गया [संजय कुमार]। रामचंद्र और शुभम। इस कहानी के दो पात्र हैं। एक सत्रह वर्षों तक अपने सपनों के साथ ठंड-गर्मी और बरसात में रिक्शे के साथ चलता रहा। दूसरा उन सपनों से भी आगे जाने की जिद के साथ बढ़ता रहा। वक्त भी शायद दोनों के जुनून पर मुस्कराया।
अब शुभम रिक्शेवाले का बेटा नहीं, और जिंदगी को रिक्शे के साथ खींच यहां तक लाने वाले रामचंद्र रिक्शावाला नहीं, अब एक इंजीनियर के पिता हैं। कहानी का ट्विस्ट यही है।
अभयानंद की संस्था ने दिया मुकाम
और हां! इन सबके पीछे वह व्यक्ति, जिसने किसी के अंदर की प्रतिभा और जुनून को पहचाना, उसे मुकाम तक पहुंचाने के लिए उसके संग-संग चला। ये हैं अभयानंद। बिहार के पूर्व डीजीपी और मगध सुपर थर्टी के संस्थापक, जहां प्रतिभाशाली बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देकर उसे आइआइटी और एनआइटी जैसी संस्थाओं के लिए तैयार किया जाता है।
बेटे के लिए पिता ने की मेहनत
गया शहर में एक मोहल्ला है मखलौटगंज। यहीं 17 वर्षों से किराए के मकान में रह रहा है एक परिवार। इसके परिवार के मुखिया रामचंद्र प्रसाद। वैसे तो गया जिले के ही वजीरगंज के शंकर विगहा के रहने वाले हैं, पर रोजी-रोटी के लिए शहर चले आए। वे बताते हैं, काम की तलाश की। कुछ नहीं मिला तो रिक्शा चलाना शुरू कर दिया।
17 साल से अनवरत। दो कमरों का एक दड़बेनुमा किराए का मकान। बड़ा बेटा शहर में ही नींबू बेचता है तो चार पैसे उससे भी आ जाते हैं।
एनआइटी में हुआ चयन
छोटा बेटा शुभम बचपन से ही पढऩे में तेज था। जितनी सामर्थ्य थी, पिता पढ़ाते रहे। चार पैसे ज्यादा हों तो चिलचिलाती धूप में भी रिक्शा थोड़ा ज्यादा चला लेते। आज वही शुभम एनआइटी से इंजीनियरिंग करने के बाद अब मारुति कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर के रूप में कार बनाएगा। रिक्शे पर देखे गए सपनों का कार तक
पहुंचने वाला एक खूबसूरत सफर। शुभम अगले साल जुलाई में योगदान देगा।
जब कंपनी में मिली नौकरी
शुभम ने बताया कि पहली से आठवीं तक की पढ़ाई राजकीय मध्य विद्यालय मुरारपुर से की। नवमीं और दसवीं टी मॉडल हाईस्कूल से करने के बाद इंटरमीडिएट की पढ़ाई गया कॉलेज से की। दसवीं बोर्ड में जिले में तीसरे स्थान पर रहे। कॉलेज मे पढ़ाई के दौरान ही मगध सुपर थर्टी में चयन हो गया।
उसके बाद दो वर्षों तक वहां निश्शुल्क पढ़ाई चलती रही। खाना-रहना सब मुफ्त। इंजीनियरिंग के लिए प्रवेश परीक्षा दी तो एनआइटी में अच्छी रैंक आई। इसी साल जयपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हुई। कॉलेज से ही कैंपस से मारूति सुजुकी उद्योग में चयन हो गया।
पढऩे के लिए किया काम भी
शुभम ने छठी से आठवीं की पढ़ाई के दौरान शाम के वक्त एक दवा दुकान में भी काम किया। इसके बदले तीन सौ रुपये महीना मिलता था। शुभम ने कहा, मेरे माता-पिता ने बहुत कष्ट सहे। यदि अभयानंद सर ने सुपर थर्टी की स्थापना नहीं की होती तो शायद आज मैं यहां नहीं होता।
मां की छलक आई आंख
शुभम के पिता रामचंद्र कहते हैं, बेटे को अच्छी नौकरी मिल गई तो अब दिन भी बदलेंगे। मैं रिक्शा अभी भी चलाता हूं, धीरे-धीरे छोड़ दूंगा। शांति देवी कहती हैं, जैसे-तैसे जिंदगी कट रही थी। बेटे ने सपना पूरा कर दिया। मां की आंखें छलक उठती हैं।