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जून में खूब बरसे, जुलाई में किसान मेध को तरसे, भभुआ में धान की रोपणी हुई प्रभावित

बिहार के कैमूर जिला के भभुआ में जुलाई महीन के 18 दिन में मात्र 20 मिलीमीटर बारिश हुई है। जुलाई महीने में रोपनी का कार्य पिक पर होता है। ऐसे में नहरों व मोटर के सहारे किसान रोपाई कर रहे हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 09:04 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 09:23 AM (IST)
जून में खूब बरसे, जुलाई में किसान मेध को तरसे, भभुआ में धान की रोपणी हुई प्रभावित
200 मिमी की जगह मात्र 20 मिमी बारिश हुई, किसान चिंतित, सांकेतिक तस्‍वीर ।

भभुआ (कैमूर), संवाद सहयोगी। जुलाई माह के करीब 18 दिन बीत गए। एक पखवाड़ा की समाप्ति के बाद दूसरा पखवाड़ा भी शुरू हो चुका है। जुलाई महीने में कैमूर जिले में रोपनी पिक पर है। फिर भी बारिश की कमी के कारण रोपनी प्रभावित हो रही है।

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जुलाई महीने के 18 दिन बीत जाने के बाद भी कैमूर जिले में जुलाई महीने में मात्र 20 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। जबकि जुलाई महीने में सामान्य औसत वर्षा करीब 200 से अधिक मिली मीटर होनी चाहिए थी। बारिश की कमी के कारण धान की रोपनी प्रभावित हो रही है। किसान नहर के पानी तथा मोटर पंप पर निर्भर हो गए हैं। पानी के अभाव के कारण खेतों में लगाए गए धान भी सूख रहे हैं।

लगातार मोटर व डीजल पंप चलने के कारण भी भूगर्भ जल का स्तर भी नीचे की ओर लगातार जा रहा है, इससे कई जगहों पर चापाकल से पानी भी उगलना बंद कर दिया है। जिला सांख्यिकी विभाग की माने तो कैमूर जिले में जुलाई महीने में मात्र 20 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई। जिला सांख्यिकी पदाधिकारी उमेश कुमार सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि जिला में काफी कम बारिश हुई है।

जिला में हुई बारिश का डाटा - एमएम में

दुर्गावती  5.4

कुदरा - 16

मोहनिया 11.4

नुआंव - 18.4

रामगढ - 25.4

रामपुर - 41.2

अधौरा - 40.0

भभुआ - 14.8

भगवानपुर - 11.2

चैनपुर - 14.8

चांद - 14.8

 किसानों के चेहरे पर दिख रही मायूसी

 प्रकृति के आगे मौसम वैज्ञानिकों का दावा भी फेल होने लगा है। बारिश नहीं होने से खेतों में बोरिंग मशीन से रोपे गए धान के पौधे भी मुरझा रहे हैं तथा जोताई किए गए खेत सूख रहे हैं। जो किसानों के लिए सुखद संकेत नहीं माना जाएगा। बारिश के साथ धान रोपाई के प्रमुख नक्षत्र पुख व पुनर्वसु के दगा देने से किसानों के अरमान पर पानी फिरता दिख रहा है। आषाढ़ माह के इस नक्षत्र में बारिश से नदियां उफान पर होती थी। जलस्तर बढऩे से लोगों को पेयजल की समस्या नहीं होती थी। लेकिन नदियों के सूख जाने से हैंडपंप भी जवाब दे रहे हैं। बोङ्क्षरग मशीन से पानी निकालकर लोग थोड़ा बहुत खेतों में धान की रोपनी करा तो रहे हैं। लेकिन आगे से रोपनी हो रही है और पीछे से खेत सूख जा रहे हैं। किसान चारों तरफ से परेशान हैं। शुरू में अतिवृष्टि से भदई फसल व सब्जी नष्ट हो गई। अब पानी के अभाव में धान की फसल खराब हो जा रही है। खेत सूख जाने से धान का उत्पादन काफी कम हो जाएगा। मेघ कब बरसेंगे इसको लेकर लोग आस लगाए हुए हैं। रविवार को आसमान में बादल छाए रहने के बाद भी बारिश नहीं हुई, इससे किसानों के चेहरे पर ङ्क्षचता झलक रही है। नहरी इलाकों में तो रोपनी का कार्य किसी तरह चल रहा है लेकिन प्रकृति पर निर्भर रहने वाले किसान अभी बान तक नहीं पूज सके हैं। रामगढ़ मोहनियां पथ पर पनसेरवां गांव से पश्चिम व दक्षिण खेतों में धान के पौधे के जगह घास के पौधे उग गए हैं। जहां तहां धान के पौधे लगे हैं उसके भी खेत सूख रहे हैं। जबकि इस इलाके को ङ्क्षसचाई के लिए लक्ष्मीपुर माइनर भी है। लेकिन वह भी पानी की प्यासी है।


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