Nawada: शहीद सप्ताह के दौरान नक्सली पुष्प अर्पित कर साथियों को करते याद, पुलिस को रहना पड़ता चौकन्ना
पुलिस मुठभेड़ में मारे गए नक्सली साथियों के याद में नक्सलियों ने बनाया है शहीद स्मारक 28 जुलाई से 3 अगस्त तक होती है नक्सलियों की शहीद सप्ताह। यह स्मारक जिला प्रशासन के लिए कलंक से कम नहीं सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर नक्सली बनाए हैं शहीद स्मारक।
राहुल कुमार, रजौली (नवादा)। पुलिस मुठभेड़ में प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन भाकपा माओवादी के चार हार्डकोर नक्सली मारे जाते हैं। साथियों को शहीद का दर्जा देते हुए नक्सली रजौली थानाक्षेत्र के फरकाबुजुर्ग पंचायत के हाथोंचक गांव के पास स्थित सिंचाई विभाग की जमीन पर नक्सलियों ने कब्जा कर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए साथियों का शहीद स्मारक बनाया है।
इस स्मारक पर जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त के पहले सप्ताह में रात के अंधेरे में गुपचुप तरीके से नक्सली अपने दस्ते के साथ पहुंचते हैं। और साथियों के स्मारक पर पुष्प अर्पित कर लाल सलाम के नारा लगाते हुए उन्हें याद करते हैं, और फिर जंगल में गायब हो जाते हैं। यह स्मारक कई वर्ष पहले बनाई गई है,लेकिन आज भी शहीद सप्ताह के दौरान नक्सली इन्हें याद करना नहीं भूले हैं।
किन-किन का है नाम
स्मारक पर मारे गए चार नक्सलियों का नाम अंकित है। इसमें जिले के वारसलीगंज थानाक्षेत्र के टोला हाड़ी बीघा के रामशीष यादव, रजौली थाना क्षेत्र के गंगटा गांव के रतन यादव, मांगोडीह के इंदल राम, भूपतपुर गांव के चंद्रिका राम का नाम अंकित है। इन चारों में दो की मौत वर्ष 2002 में जिले के रोह थाना क्षेत्र के हर्षितपुर पुलिस मुठभेड़ में हुई थी। रामाशीष उस वक्त एरिया कमांडर था।इसकी पहचान बड़ी मुश्किल से हुई थी।
नक्सली स्मारक हटाने में अधिकारियों को दिलचस्पी नहीं
सिंचाई विभाग की भूमि पर अतिक्रमण कर नक्सलियों ने बनाया है स्मारक लेकिन उसे हटाने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहे हैं। अगर सरकारी भूमि पर कोई गरीब अतिक्रमण कर अपना आशियाना बना ले तो सरकारी कुर्सी पर बैठे बाबू आग बबूले हो जाएंगे और बुलडोजर लेकर उनके आशियाने को उखाड़कर फेंक देंगे क्योंकि वह कमजोर हैं। लेकिन, जब बात आमने-सामने की होती है तो सरकारी बाबू की माथे से पसीना टपकने लगता है। ऐसा नहीं है कि इस स्मारक के बारे में स्थानीय प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक नहीं जानती है।
यह नक्सली स्मारक जिला प्रशासन के लिए कलंक से कम नहीं है। ऐसे मैं सवाल उठता है कि नवादा का पुलिस-प्रशासन नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करने में क्यों हिचक रहा है? मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों के स्मारक जिनपर उन्हें शहीद अंकित किया गया है, नई पीढ़ी को क्या संदेश देते होंगे?और कहीं ना कहीं नक्सल साथियों के याद में शान से खड़ा शहीद स्मारक पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नही है।