आत्मनिर्भर गया: बकरीपालन ने बदल दी गांव की तस्वीर, बाहर कमाने जाना बंद और बच्चों की होने लगी शिक्षा
सभी लोग बकरी पालन कर स्वरोजगार को अपना चुके हैं। इतना ही नहीं सारा दिन इन लोगों का समय बकरी की सेवा करने में बीत जाता है गांव के सटे जंगलों में बकरी को ले जाकर चराते हैं तथा शाम होते ही उन्हें घर ले आते हैं।
अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी (गया)। गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड अंतर्गत मनफर गांव में लगभग सभी लोग बकरी पालन कर स्वरोजगार को अपना चुके हैं। इतना ही नहीं सारा दिन इन लोगों का समय बकरी की सेवा करने में बीत जाता है, गांव के सटे जंगलों में बकरी को ले जाकर चराते हैं तथा शाम होते ही उन्हें घर ले आते हैं। बकरी पालन से लोगों को दो पैसे की आमदनी हो जाती है और घर का काम पैसे के अभाव में अब नहीं रुकता है।
रोजगार की तलाश में लोग प्रदेश को जाते थे परंतु आई है कमी
जब गांव की महिलाओं ने बकरी पालन कर दो पैसे की अच्छी आमदनी का रास्ता निकाली तो प्रदेश जाने का सिलसिला थम गया। आज इस गांव के अधिकांश लोग घर पर रखकर खेती बाड़ी का काम कर रहे हैं वही बकरी पालन के काम में काफी मेहनत करते हैं जो इनकी मूल पूंजी और स्वरोजगार है।
जब जरूरी पड़ा पैसे की नहीं होती है कमी
गांव की आशा देवी, रेशमी देवी, गुलरिया देवी, सत्यनारायण सिंह कहते हैं कि बकरी पालन से हम लोगों को काफी सुख और सुकून मिला है। पैसे की जब भी जरूरत पड़ी उस अनुसार हम लोग अपने बकरी को बेच देते हैं। मिले पैसे से अपने काम निपटा लेते हैं अब यह चिंता नहीं रहता की पैसा कहां से लाएंगे। कर्जा महाजन की स्थिति भी इस गांव में कमी है एक वक्त था कि हर घर के लोग शुद्ध पर कर्ज लेकर अपना जीविकोपार्जन करते थेऔर नहीं तो जंगल की सूखी लकड़ी को जंगल से लाकर गांवोे तथा जीटी के किनारे लाईन होटलों मे बेचकर पेट पालने का मात्र एक रास्ता था।
नहीं मिला पशु शेड मचान के नीचे रखते हैं बकरियों को
ग्रामीण गंगा सिंह भोक्ता 75 बकरी पाल रखे हैं। यह बताते हैं कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत पशु शेड के लिए हमने प्रखंड मुख्यालय पहुंचकर पदाधिकारी को आवेदन दिए थे। मेरे साथ गांव के लगभग 20 लोगों ने और आवेदन दिया है। ताकि पशु शेड मिले जहां बकरियों को सुरक्षित रख सकें परंतु पशु शेड अब तक नहीं मिला है। हमलोग पूर्व की भांति मचान के नीचे बकरियों को रखते हैं जहां बरसात और गर्मी के दिनों में काफी समस्या खड़ी होती है। सांप काटने और लो लहर के कारण कई बकरियां ऐसे भी हम लोगों के मर जाती हैं। उस वक्त हम लोगों को पूंजी का एहसास बहुत होता है क्योंकि गरीब हैं और कमाने खाने वाले हम लोग परिवार से आते हैं।
बकरी पालन से ग्रामीणों में बढी आत्मनिर्भरता
गांव के रूपलाल सिंह भोक्ता बताते हैं कि बकरी पालन से गांव वालों मे आत्मनिर्भरता बढी है इतना ही नहीं लोग अपने बाल बच्चे को बाहर रखकर गुणात्मक शिक्षा भी दे रहे हैं। हालांकि लोक डॉन के वजह से स्कूल बंद होने के कारण बच्चे घर पर ही पढ़ रहे हैं यह सब बदलाव तब हुआ जब हमलोगों के बीच दो पैसे की अच्छी आमदनी होने लगी। वे बताते हैं कि पशु शेड के लिए काफी प्रयास किया गया इसके बावजूद भी आज तक हम लोगों को नरेगा से नहीं मिल पाया। बाराचट्टी के पशु चिकित्सक का हम लोगों के प्रति काफी अच्छा सहयोग मिल रहा है। जो समय समय पर आकर बकरियों का जांच भी करते हैं और टीका भी लगा कर गए हैं नहीं तो हम लोग और परेशान होते।