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नवादा में अभ्रक का अवैध खनन जारी, होने वाले जान-माल के नुकसान का कोई लेखा-जोखा नहीं

रजौली वन क्षेत्र को सेंचुरियन वन घोषित करने के वर्षों पहले बिहार झारखंड से रजौली के लगे सवैयाटांड़ पंचायत के जंगली वन क्षेत्र में सरकारी निर्देश के बाद अभ्रक खनन पर रोक लगा दी गयी थी। नतीजा यह कि अभ्रक खनन जारी है और आगे भी जारी रहेगा।

By Prashant KumarEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 02:33 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 02:33 PM (IST)
नवादा में अभ्रक का अवैध खनन जारी, होने वाले जान-माल के नुकसान का कोई लेखा-जोखा नहीं
अभ्रक के अवैध खनन में लगाई गई जेसीबी। जागरण।

संवाद सूत्र, रजौली (नवादा)। रजौली वन क्षेत्र को सेंचुरियन वन घोषित करने के वर्षों पहले बिहार झारखंड से रजौली के लगे सवैयाटांड़ पंचायत के जंगली वन क्षेत्र में सरकारी निर्देश के बाद अभ्रक खनन पर रोक लगा दी गयी थी। उसके बाद न तो उसमें कार्य करने वाले मजदूरों को अलग काम दिया गया और न ही अभ्रक के खदानों पर कोई सख्ती की गई। जिसका नतीजा सरकार के संवेदक तो भले ही बदल गए। लेकिन, वहां के माफियाओं ने वन विभाग के साठगांठ से इन खदानों पर अपना पैर जमा लिए।

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नतीजा यह कि अभी तक अवैध रूप से अभ्रक खनन जारी है और आगे भी जारी रहेगा। उसे रोकने का कोई सख्त उपाय विभाग के द्वारा नहीं किया जा रहा है। कभी-कभार छापेमारी कर एक दो लोगों को नामजद कर देते हैं। लेकिन शक्ति के नाम पर कोई भी कार्य ऐसा नहीं किया जाता जिससे अवैध खनन माफियाओं में किसी का भी भय हो। कार्रवाई के नाम पर प्राथमिकी दर्ज होती है और वे फाइलें कार्यालय में धूल फांकने लगती है।प्राथमिक की होने के बाद माफिया वकील वकीलों के जरिए कोर्ट में केस लड़ते रहते हैं। कमजोर वर्ग के लोग अपने जीविकोपार्जन के लिए अभी भी ढिबरा यानी माइका स्क्रैप पर बिनने पर निर्भर है। इनके जान-माल के नुकसान का कोई हिसाब-किताब मौजूद नहीं है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि ग्रामीण तो बस ढिबरा चुनने का काम करते हैं। जबकि ठेकेदार बड़े स्तर पर अवैध अभ्रक खनन में शारदा माइंस पर लिप्त हैं।यह खदान सरकारी दस्तावेजों में अब सक्रिय नहीं है। यहां खनन नहीं होता। यह सिर्फ कागजों पर लेकिन ठीक उसका उल्टा यहां पर दिन रात अवैध खनन हो रहा है। और प्रशासन मूकदर्शक बनकर सिर्फ तमाशा देख रही है और उगाही कर रही है।

पिछले दिनों इसी माइंस पर सवैयाटांड़ पंचायत के बाराटांड़ गांव निवासी मोहम्मद अब्दुल वाहिद के पुत्र मोहम्मद साजिद उर्फ तारों की मौत हो गई थी। जिसके बाद उसके भाई ने मोहम्मद माजीद के द्वारा फर्द बयान थानाध्यक्ष के समक्ष दिया गया है।उसने खनन करने वाले घुटर यादव, वीरू यादव, रोहित यादव, छोटू यादव, रमेश यादव, रितेश यादव, पप्पू साव, रिंकू यादव, सोनू यादव, पवन कुमार, पप्पू यादव, सोनू कुमार समेत दर्जनों लोग माइका खनन करने में लगे होने की बात कही थी। युवक के ब्यान पर पंचायत के मुखिया समेत पप्पू साव व उसके सहयोगियों को नामजद अभियुक्त बनाया गया था। मृतक के भाई ने आरोप लगाया है कि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई।

इन लोगों की मानें तो 2019-20 में अभ्रक खानों में कम से कम आधे दर्जन से अधिक बच्चों व मजदूरों की मौत हो चुकी है। किसी मामले में कोई एफआइआर तक दर्ज नहीं हो पाया।नाम नहीं छापने की शर्त पर कारोबारी कहते हैं कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी से लेकर वनविभाग के छोटे बड़े कर्मचारियों के बीच ढाई लाख रुपये प्रति महीने पहूंचायी जाती है। बताते चलें कि सस्ती क्वालिटी के अभ्रक को स्थानीय भाषा में ढिबरा के नाम से बुलाया जाता है और बड़ी संख्या में स्थानीय लोग इसके सहारे अपना जीवन-यापन करते हैं।एक टोकरी ढिबरा इकठ्ठा कर उसे बेचने पर बाजार से इन्हें बमुश्किल 20 रुपये मिल पाता है।

पंचायत के गरीब परिवारों के लिए ढिबरा ही जीविका चलाने का साधन है। कभी कभी इसकी वजह से इनकी जान भी चली जाती है।इनके अनुसार, “अभ्रक का खनन दशकों से प्रतिबंधित है। सैकड़ों परिवार अभी भी जान जोखिम में डालकर जंगलों से इसे निकालते हैं और बहुत मामूली कीमत देकर माफिया मालामाल हो रहे हैं। इस संबंध में डीएफओ अवधेश कुमार ओझा ने बताया कि माफियााओं के विरुद्ध कार्रवाई की जाती रही है और की जाती रहेेगी।उन्होंने कहा कि अवैध खनन करने वालोंं को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।


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