वोट का है जमाना संभल जाइए..
फोटो- जीवेत् शरद शतम् जागरण संवाददाता बोधगया
गया । वोट का है जमाना संभल जाइए, पूरी-कचौड़ी खाकर बदल जाइए। कुछ यू नारा लोकतंत्र के पर्व में प्रत्याशियों के समर्थकों द्वारा एक-दूसरे दल पर कटाक्ष करते हुए लगाया जाता था। बैलगाड़ी में लाउडस्पीकर बांधकर चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने वाले लगभग 95 वर्षीय सुजाता नगर बैजूबिगहा निवासी भूंई लाल यादव अपने संस्मरण सुनाते हुए कहते हैं। स्वतंत्रता के लिए चलाए गए विभिन्न आंदोलनों में आंशिक तौर पर हिस्सा भी लिए हैं। आजादी के बाद पहले चुनाव से लेकर आज तक अपने मताधिकार का प्रयोग करने में कभी पीछे नहीं रहे। लेकिन इन्हें वर्तमान दौर का चुनाव पसंद नहीं है। कहते हैं कि अब तो राजनीति करने वाले लोग आपस में लड़ाने का काम करते हैं। पहले ऐसा नहीं था। गांव के चौपाल पर निर्णय लिया जाता था। वोट किसे करना है। एक बार निर्णय ले लिया गया तो उसमें बदलाव नहीं होता था। इस बात से प्रत्याशी और उनके समर्थक भी जानते थे। लेकिन दबंगई प्रथा पहले से ही चुनाव में हावी रहा है। जमींदार लोग प्रत्याशियों को आर्थिक रूप से मदद करते थे। निचले तबके के लोगों को मताधिकार से रोका जाता था।
(दैनिक जागरण आपकी लंबी उम्र की कामना करता है)