कुर्किहार: बुद्ध की ज्ञान भूमि है यह स्थल, यहां की मिट्टी में दफन इतिहास
गया के जिले के वजीरगंज प्रखंड में स्थित कुर्किहार में बौद्धकालीन अवशेषों का भंडार पड़ा है। ये अष्टधातु व काले पत्थरों की हैं। ये मूर्तियां बुद्धकालीन हैं।
गया [रविभूषण सिन्हा]। कुर्किहार में जमीन के नीचे इतिहास छिपा है, पर इसकी पूरी तरह खोदाई नहीं कराए जाने के कारण सब कुछ जमींदोज ही है। गया जिले के वजीरगंज प्रखंड में स्थित यह जगह पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां बौद्धकालीन अवशेषों का भंडार पड़ा है। करीब पांच हजार की आबादी वाले इस गांव की गली-गली में सदियों पुरानी मूर्तियां छिपी हैं। ये अष्टधातु व काले पत्थरों की हैं।
घर की दीवारों में भी मूर्तियां
यहां गढ़ में हल्की खोदाई करने पर भी मूर्तियां मिलने लगती हैं। प्राय: मूर्तियां बुद्धकालीन हैं। गांव के बीच अवस्थित एक प्रसिद्ध देवी मंदिर में महात्मा बुद्ध की करीब दो दर्जन आदमकद मूर्तियां स्थापित हैं। ग्रामीण हिंदू देवी-देवताओं की तरह इन मूर्तियों की पूजा करते हैं। गांव घूमेंगे तो गली-कूचे, चौक-चौराहों पर मूर्तियां मिलना कोई आश्चर्य नहीं। कुछ मूर्तियां तो लोगों ने घर बनाने के दौरान दीवारों तक में लगा दी हैं।
226 मूर्तियां पटना संग्रहालय में
1930 ई0 में क्षेत्र के तत्कालीन जमींदार राय हरि प्रसाद ने इस गढ़ के कुछ अंश में खोदाई कराई थी तो सैकड़ों मूर्तियां निकली थीं। 226 मूर्तियां पटना के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इनमें 80 मूर्तियां अष्टधातु एवं शेष दुर्लभ काले पत्थरों की बनी हैं। इतिहासकार बताते हैं कि जब विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में था, तब कुर्किहार में मूर्ति एवं शिल्प कला प्रशिक्षण केंद्र भी रहा है।
सीएम ने कहा था, कराई जाएगी खोदाई
27 जनवरी 2007 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी विकास यात्रा के दौरान यहां इस स्थल की खोदाई कराने की बात कही थी। अधिकारियों को निर्देश भी दिए गए थे, पर हुआ कुछ नहीं। इतिहास के अनुसार, ज्ञान के खोज में भटकते राजकुमार सिद्धार्थ ने कुर्किहार में भी विश्राम किया था। बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद यहां फिर आए थे।
2005 में विश्व मूर्तिकला प्रदर्शनी में भारत सरकार ने यहां की दो मूर्तियां भेजी थीं। स्थानीय ग्रामीण प्रो. सुरेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि कुर्किहार सिर्फ एक गांव नहीं, इतिहास है, जिससे बुद्धकालीन और उससे प्राचीन इतिहास व किंवदंतियां भी जुड़ी हैं।
महाभारत काल की भी चर्चा है। संजीव कुमार, भूषण सिंह, विभूति कुमार, साधुशरण सिंह, अनिल सिंह, अवध बिहारी आदि कहते हैं कि इस गढ़ की खोदाई होने से और भी बहुत चीजें सामने आ सकती हैं।