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गया की धरती झूम उठी अपने 'पृथ्वी' पर, दादा की आंखों में छलके खुशी के आंसू

अपनी कप्तानी में अंडर 19 वर्ल्ड क्रिकेट चैंपियनशिप जीतने वाले पृथ्वी शॉ ने टेस्ट में डेब्यू करते ही शतक जमा कर एक बार फिर अपनी पैतृक भूमि को गौरवान्वित होने का अवसर दिया है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 10:03 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 11:05 PM (IST)
गया की धरती झूम उठी अपने 'पृथ्वी' पर, दादा की आंखों में छलके खुशी के आंसू
गया की धरती झूम उठी अपने 'पृथ्वी' पर, दादा की आंखों में छलके खुशी के आंसू

गया [विश्वनाथ]। गया एक बार फिर गर्व से फूले नहीं समा रहा। अपने 'पृथ्वी' की कामयाबी पर उसकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े, धरती झूम उठी। हो भी क्यों नहीं, इस मिट्टी के लाल ने कमाल जो किया है। अपनी कप्तानी में अंडर 19 वर्ल्ड क्रिकेट चैंपियनशिप जीतने वाले पृथ्वी ने टेस्ट में डेब्यू करते ही शतक जमा कर एक बार फिर अपनी पैतृक भूमि को गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। 

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दादा को मिली बधाई, बंटी मिठाई 

वेस्टइंडीज के खिलाफ शतक जमाते ही यहां मिठाइयां बंटने लगीं। पृथ्वी के दादा अशोक शॉ मानपुर के शिवचरण सहाय लेन में रहते हैं। यहीं रेडीमेड की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। पृथ्वी के प्रदर्शन के बाद लोग उनके घर पर पहुंचने लगे। लोगों के बीच मिठाइयां बांटी गईं। शहर इतरा रहा था कि उसके बेटे ने यहां का नाम रोशन किया है। 

चार साल की उम्र में खरीदा था बैट 

पृथ्वी के पिता पंकज शॉ 12 साल की उम्र में ही रोजगार की तलाश में मुंबई चले गए थे। उन्होंने वहीं शादी भी कर ली। फिर बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम रखा पृथ्वी। दादा अशोक शॉ बताते हैं-पृथ्वी चार साल का था तो मेला घूमने गया। वहां बैट-बॉल खरीदने की जिद करने लगा।

पड़ोस के दोस्तों के साथ क्रिकेट मैच खेलना शुरू किया। उसके पिता उसे लोकल ट्रेन से रोज एमआइपी क्रिकेट ट्रेनिंग सेंटर, मुंबई लेकर जाते थे। एक स्कूल में आयोजित क्रिकेट मैच में उसने 564 रन बनाए थे। सचिन तेंदुलकर उसका खेल देखकर बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने उसे काफी प्रोत्साहित किया। पिछले साल उसका चयन अंडर 19 में हुआ। उसने वर्ल्ड कप जीता। 

दादा-दादी की आंखों में खुशी के आंसू 

 पृथ्वी के दादा अशोक शॉ और दादी रामदुलारी देवी की आंखों में खुशी के आंसू हैं। वे कहते हैं-वह मैदान में खेलता था, उसी समय लगता था कि पोता एक दिन बड़ा क्रिकेटर बनेगा। सपना सच हो गया। वह पिता के साथ हमलोगों का भी नाम रोशन कर रहा है। वह और भी आगे बढ़े, ईश्वर से यही प्रार्थना है। 

हर तरफ से मिल रही बधाई

पृथ्वी के रक्त का नाता गया से है। उसके पिता यहां से कम उम्र में ही मुंबई चले गए, पृथ्वी का जन्म भले वहीं हुआ और कॅरियर की ओर बढ़ा। लेकिन उसकी पैतृक भूमि गया की दुआएं उसके साथ है। जब उसने शतक बनाया तो यहां के लोगों की आंखों से छलक रही खुशी यह बयां कर रही थी। 


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