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गया के सरकारी स्कूल के छात्रों ने खोला चिल्ड्रेन बैंक, जेब खर्च जमा कर गरीब बच्चों की करते हैं मदद

गया के सरकारी स्कूल के बच्चों ने अपना चिल्ड्रेन बैंक चलाता हैं। नगर प्रखंड के मध्य विद्यालय डिहुरी के छात्र अभिभावकों से मिले जेब खर्च को जमा करते हैं और उससे पाठ्य सामग्री खरीदते हैं। इससे पहल से गरीब बच्चों की जरूरतों भी पूरी हो रही है।

By Rahul KumarEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 01:31 PM (IST)Updated: Fri, 03 Dec 2021 06:42 AM (IST)
गया के सरकारी स्कूल के छात्रों ने खोला चिल्ड्रेन बैंक, जेब खर्च जमा कर गरीब बच्चों की करते हैं मदद
नगर प्रखंड के मध्य विद्यालय डिहुरी में चिल्ड्र्रेन बैंक में डिपोजिट राशि की रसीद दिखाते बच्चे। जागरण

गया, नीरज कुमार। यह राष्ट्रीयकृत या निजी बैंक नहीं, बल्कि 'बच्चों का बैंक' हैं फिर भी इसकी कार्यप्रणाली पूरी तरह बैंक की तरह ही है। यहां बच्चे अभिभावकों से मिले जेब खर्च को बचाकर कुछ रकम जमा करते हैं और उसी से पाठ्य सामग्री मसलन, पेंसिल, रबर, कटर, कॉपी, पेन व पाठ्य पुस्तकें खरीदते हैं। यही नहीं, कभी जरूरत पर पैसे नहीं रहते तो इसी बैंक से बिना ब्याज के ऋण भी ले लेते हैं। इसका संचालन बच्चे ही करते हैं। यह बैंक नेशनल टीचर इनोवेशन अवार्ड (राष्ट्रीय शिक्षक नवाचार पुरस्कार) से सम्मानित नगर प्रखंड के राजकीय मध्य विद्यालय, डिहुरी के प्रधानाध्यापक वीरेंद्र कुमार की सोच का नतीजा है।

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अभिभावक भी लेते हैं लोन 

उन्होंने पाठ्य पुस्तकों के लिए हमेशा परेशान रहने वाले गरीब बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए अपने विद्यालय में चिल्ड्रेन बैंक खोला है। बैंक में बच्चों के खाते खुले हैं, जिसमें वे जेब खर्च को मिठाई, चाट या फास्ट फूड पर नहीं खर्च करके जमा करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर धन की निकासी कर पाठ्य सामग्री, स्टेशनरी, पोशाक, जूते-मोजे आदि खरीदते हैं। इसी बैंक से बच्चों को यूनिफॉर्म खरीदने के लिए भी ऋण दिया जा रहा। यह एक रुपये से लेकर 500 रुपये तक जमा होता है। अभिभावकों को जरूरत होती है तो वे भी 50 से 500 रुपये तक का लोन ले लेते हैं। महत्वपूर्ण यह कि बैंक का संचालन पूरी तरह से स्कूली छात्र करते हैं और यह बैकिंग प्रणाली पर आधारित है। जैसे राष्ट्रीय बैंकों में विड्राल या डिपॉजिट फॉर्म भरकर जमा-निकासी होती है, ठीक उसी तरह बच्चे भी अपनी धनराशि जमा या निकालते हैं। बैंक में प्रबंधक से लेकर खजांची तक का काम बच्चे करते हैं। नवंबर तक बैंक में 136 बच्चों के खाते खुले हैं। बैंक एक माह पहले अक्टूबर से ही शुरू हुआ है।

 बच्चों में बचत की भावना विकसित करने को खोला बैंक 

प्रधानाध्यापक वीरेंद्र कुमार ने बताया, स्कूल में आए दिन बच्चे छोटी-छोटी चीजों के लिए परेशान होते थे। किसी के पास पेंसिल नहीं होती थी तो किसी के पास कॉपी। बच्चों की परेशानी और उनकी जरूरतों को देख ऐसा बैंक खोलने की योजना मन में आई। सोचा कि खुद के जेब खर्च को बचाकर बच्चे ऐसा कर सकते हैं। बस, योजना को सबके प्रयास से फलीभूत कर दिया और बैंक खुल गया। वह कहते हैं, चिल्ड्रेन बैंक का मुख्य मकसद शिक्षण प्रक्रिया में आने वाले गतिरोध को खत्म करना है। बैंक के जरिए छात्रों में अनुशासन, स्वावलंबन, जिम्मेदारी, सहभागिता व सामंजस्य की भावना को विकसित करना उद्देश्य था। 

वरीय शिक्षक बने मुख्य प्रबंधक, करते हैं बैंक की निगरानी 

चिल्ड्रेन बैंक की संपूर्ण निगरानी करने के लिए एक वरीय शिक्षक राकेश कुमार चौधरी को जिम्मेवारी सौंपी गई है। इन्हें मुख्य प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया है। वे कहते हैं, बैंक खुलने से बच्चों में बचत का गुण विकसित हो रहा है। अनोखा बैंक खुलने का असर भी दिखने लगा है। इससे बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है और बच्चे पहले से ज्यादा अनुशासित हो गए हैं। बच्चों की छोटी-सी कोशिश आज पूरे समाज व शिक्षा जगत में एक नए संदेश का संचार कर रही है। उन्होंने बताया कि यहां बिना ब्याज के एक माह के लिए लोन दिया जाता है। इसके लिए एक फॉर्म है, जिस पर अभिभावक का हस्ताक्षर अनिवार्य होता है। अभिभावक के हस्ताक्षर की जरूरत 50 रुपये से अधिक धन लेने पर पड़ती है। 


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