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Gaya PitruPaksha Mela: ट्रेनों में आरक्षित सीट पर पुत्रों के साथ गयाजी आते हैं पितर !

पितृपक्ष में कई पिंडदानी गया जी आने के क्रम में मृतात्मा का सीट आज भी ट्रेन में आरक्षित कराते हैं। सीट पर एक थैला में नारियल चावल एवं फूल रखा रहता है। मान्यता है कि सीट पर बैठक कर पितृ गयाजी मोक्ष के लिए चल रहे हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 06:32 AM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 01:27 PM (IST)
Gaya PitruPaksha Mela: ट्रेनों में आरक्षित सीट पर पुत्रों के साथ गयाजी आते हैं पितर !
पितृ पक्ष में पहले किए जाते थे कई तरह के विधि-विधान, सांकेतिक तस्‍वीर।

गया, जागरण संवाददाता। पितृपक्ष में कई पिंडदानी गया जी आने के क्रम में  मृतात्मा का सीट आज भी ट्रेन में आरक्षित कराते हैं। सीट पर एक थैला में नारियल, चावल एवं फूल रखा रहता है। मान्यता है कि सीट पर बैठक कर पितृ गयाजी मोक्ष के लिए चल रहे है। उक्त कार्य कई वर्षो से होते आ रहा है, और आज भी हो रहा है। यह बातें 70 वर्षीय गयापाल पुरोहित माखनलाल बारिक जयपुर के राजगुरु ने जागरण संवाददाता से बताया।

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उन्होंने कहा कि पिंडदानी अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए घर से चलते थे, तो कई विधि-विधान करना पड़ता था। गांव के श्मशान में पूजा-अर्चना करते थे। पूजा नारियल, चावल, सफेद फूल आदि सामग्री से करते थे। उसके बाद नारियल लेकर गयाजी श्राद्ध करने के लिए चलते थे। घर चलते समय गांव के लोग सहयोग करते थे।  गांव के लोग रुपये-पैसे देते थे। कहते थे कि मेरा भी पितृ के नाम से श्राद्धकर्म में पैसा लगा देना। गया आने से पहले पिंडदानी प्रयागराज पहुंचते थे। जहां मुंडन संस्कार होता था। उसके बाद वाराणसी पहुंचते थे। जहां महादेव विश्वनाथ की परिक्रमा करते थे। उसके बाद गया पहुंचते थे।

15 दिनों के श्राद्धकर्म में पहले दिन पिंडदान पुनपुन में करते थे। उसके बाद गया में स्थित पिंडवेदियों पर पिंडदान करते थे।पिंडदानी अपने-अपने पंडा के घर में रहकर एक, तीन, सात, 15 एवं 17 दिन तक पिंडदान करते थे। उन्होंने कहा कि गयापाल पुरोहित के घरों पर सादगी के साथ रहते थे। लाचारी होने पर ही पिंडदानी धर्मशाला में रहते थे।  साथ ही एक समय का भोजन करते थे। पूरे दिन उपवास रहकर विधि पूर्वक पिंडदान करते थे। कर्मकांड समाप्त होने के बाद गयापाल पुरोहित से सुफल यानि आर्शीवाद लेकर घर लौटते थे। घर में प्रवेश करने से पहले मंदिर में भगवान का दर्शन करते थे। उसके बाद घर प्रवेश करते  थे। साथ ही भंडारा का भी आयोजन होता था।


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