कंधों पर सजे स्टार सुना रहे थे सफलता की कहानी
जोश जज्बा.. उत्साह उमंग..। देश के लिए हद पार कर देने की ललक। शनिवार को ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी गया में आयोजित पासिंग परेड में यही दृश्य था। देश के विभिन्न हिस्सों के जेंटलमैन कैडेट कड़े प्रशिक्षण के बाद सेना में अधिकारी बन रहे थे।
जोश, जज्बा.., उत्साह, उमंग..। देश के लिए हद पार कर देने की ललक। शनिवार को ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी, गया में आयोजित पासिंग परेड में यही दृश्य था। देश के विभिन्न हिस्सों के जेंटलमैन कैडेट कड़े प्रशिक्षण के बाद सेना में अधिकारी बन रहे थे।
इनमें सैन्य सेवा की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले थे तो किसी का पारिवारिक परिवेश कृषि और व्यवसाय का। ये नौनिहाल अपने परिवार ही नहीं, अब देश का गौरव हैं। इनके कंधों पर अब दुश्मनों से देश की सुरक्षा की बागडोर है। लेफ्टिनेंट रैंक के अधिकारी बने जेंटलमैन कैडेटों के कंधों पर माता-पिता और परिजनों ने स्टार सजाए तो यह यादगार पल बन गया। परेड में 62 वैसे जेंटलमैन कैडेट भी शामिल हुए, जो एकवर्षीय बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण पूरा कर चुके हैं। अब तकनीकी शिक्षा हेतु देश के विभिन्न तकनीकी संस्थानों में स्नातक की डिग्री के लिए भेजे गए। जेंटलमैन कैडेटों ने अपने प्रशिक्षण और सफलता के अनुभव बयां किए।
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हमारे पिता डॉ. सुखविंदर सिंह शिक्षक थे और मां सत्यनाम गौड़ एक क्लर्क हैं। मुझे सेना का अनुशासन काफी पसंद है। इसलिए हमने भारतीय सेना में जाने का मन बनाया और काफी मेहनत की। चार साल के परिश्रम का फलाफल मिला। स्वर्णपदक विजेता बनने पर प्रसन्नता दोगुनी हो गई।
कुलविंदर सिंह, स्वर्ण पदक विजेता, विष्णुगढ़, तिलकनगर, नई दिल्ली
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पिताजी फौज में हैं। इसलिए देश सेवा का जज्बा शुरू से रहा। सेना में जाने के लिए पिता जी ने भी प्रेरित किया। चार साल के कठिन परिश्रम के बाद भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त किया। आज का दिन मेरे जीवन के लिए अविष्मरणीय है।
चंदन कुमार सिंह, रजत पदक विजेता जमनेपुर, पीरो, भोजपुर
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मेरे पापा फौज में सुबेदार हैं। इन्हीं से प्रेरणा लेकर भारतीय सेना का अंग बनने का निर्णय लिया। कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय से इस मुकाम को हासिल किया हूं। गया का मौसम शुरूआती दौर में प्रशिक्षण में बाधक बन रहा था, लेकिन उसके अनुरूप अपने को तैयार कर प्रशिक्षण प्राप्त किया।
नीरज कुमार सिंह, कांस्य पदक विजेजा, गोरखपुर, उत्तरप्रदेश
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चार साल की मेहनत आज रंग लाई। मेरे नाना और मामा फौज में थे। उन्हीं से प्रेरणा मिली और देश सेवा का जज्बा मन में रखकर इसके लिए मेहनत करना शुरू कर दिया था। प्रशिक्षण के दौरान आपसी भाईचारे का माहौल मिला और एक-दूसरे कैडेटों से बहुत कुछ सीखने का मौका भी मिला।
नवीन तंवर, हरियाणा
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मेरे पिता अर्द्धसैनिक बल में कार्यरत हैं। शुरू से ही अनुशासन में बंधकर रहने की आदत थी। मैंने भी सेना में जाने का मन बनाया तो माता-पिता ने हामी भर दी। फिर तैयारी कर मुकाम को हासिल किया। चार वर्षो के कठिन परिश्रम के बाद आज कंधे पर मां-पापा ने स्टार लगाया।
एसएस ढिल्लो, गढ़वाल, उतराखंड
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पिता जी फौज में हैं। मैं अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि को बरकरार रखने के लिए भारतीय सेना में शामिल हुआ हूं। आज सफलता प्राप्त करने पर काफी प्रसन्नता हो रही है। इसे प्राप्त करने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा है।
मनजीत सिंह चीर, जम्मू-कश्मीर
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पांच वर्षो तक लगातार परिश्रम का फल परिजनों के आशीर्वाद से मिला है। इस सफलता का श्रेय माता-पिता, बड़े भाई सहित अन्य परिजन और विशेष कर पत्नी शशिकला मिश्रा को जाता है। पत्नी मेरे अंदर के टैलेंट को समझकर तैयारी के लिए प्रेरित करती रही। मेरे पिता जी पूर्व सैनिक और भाई सचिवालय में सहायक हैं।
ब्रजेश कुमार मिश्रा, अनिसाबाद, पटना
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मैं आज काफी प्रसन्न हूं। चार साल की मेहनत के बाद देश की सेवा का मौका मिला है। इसके लिए मेरे माता-पिता से प्रेरणा मिली। आज सफल होने पर माता-पिता द्वारा मेरे कंधे पर स्टार लगाया गया। यह पल आजीवन याद रहेगा।
किशन कुमार पांडेय, हनुमानगंज, छपरा
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आज मेरे परिवार में काफी खुशी है। मैं अपने परिवार का चौथा सदस्य हूं, जो आज भारतीय सेना में शामिल हो रहा है। मेरे पिता सेना से सेवानिवृत्त हुए और बड़े भाई और बहन भी सेना में हैं।
शांविन सिंह राठौर, लखनऊ, उत्तरप्रदेश
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दादा जी की प्रेरणा से इस मुकाम को हासिल कर सका हूं। वे संस्कृत के विद्वान हैं और हमेशा देश सेवा की बातें बताते रहे। मेरे पिता जी एयरफोर्स से सेवानिवृत्त हैं। इसलिए घर में सेना का माहौल बचपन से मिला। आज परिजनों ने जब स्टार लगाया तो यह पल यादगार बन गया।
हर्ष शर्मा, सोनीपत, हरियाणा
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सभी जेंटलमैन कैडेट को बधाई, जो भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त कर लेप्टिनेंट रैंक के अधिकारी बने हैं। सभी ने इस मुकाम को अपने कठिन परिश्रम की बदौलत प्राप्त किया है। सर्विस में भी ऐसे काम करते रहे। बड़े-बड़े पद संभालने का सभी को मौका मिले। सेना का अनुशासन कठिन और कठोर है। इसे सब पर लागू नहीं किया जा सकता। तकनीकी विकास को कैसे अपनाया जाएगा, यह आर्मी के लिए चुनौती है। इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
ले.ज. मनोज मुकुंद नरावने
जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ, पूर्वी कमान
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