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जीविका ने बदली सुनीता की जिंदगी

कभी घर की चौखट पर भी पैर रखने से डरती थीं। आज आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार का भरण-

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Nov 2019 02:14 AM (IST)Updated: Fri, 22 Nov 2019 06:10 AM (IST)
जीविका ने बदली सुनीता की जिंदगी
जीविका ने बदली सुनीता की जिंदगी

कभी घर की चौखट पर भी पैर रखने से डरती थीं। आज आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने के साथ-साथ अपने बच्चों को शिक्षा की तालीम दिलवाकर औरों के लिए मिसाल पेश कर रही हैं। शेरघाटी प्रखंड के सुदूर गाव बनियाब्राउन्न की महिला सुनीता देवी आज प्रेरणाश्रोत बनी हैं। जीविका से जुड़कर खुद व परिवार की जीवनशैली बदल दी। पाचवें कक्षा तक पढ़ीं सुनीता के जीविका समूह से जुड़ते ही मानो पंख लग गया। समूह के अध्यक्ष बन गई। बैंक में खाते खुलवाकर गाव की दीदी को जोड़ी। छह माह के बाद लोन मिलने लगा। गाव में जरूरतमंदों को समूह से कर्ज देने लगी। फिर कृषक समूह बनाकर गाव में सिंचाई के लिए सार्वजनिक ट्यूबवेल लगाईं। अब सुनीता गाव क सीएम दीदी है। हवाई जहाज से सैर कर दिल्ली में सम्मानित हो चुकी हैं।

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गया जिले के शेरघाटी प्रखंड के बनिया बरौन गाव की सुनीता कहती हैं, झोपड़ी से हवाई जहाज तक का सफर संघर्ष लगन और जज्बे से संभव हुआ।

दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाली सुनिता बताती हैं, बाराचट्टी के बलथर गाव में पली बढ़ी। माता पिता ने सातवीं वर्ग तक की पढ़ाई कराई। फिर शेरघाटी के बनियाबरौन गाव में राजू माझी से शादी कर दी गई। ससुर की शादी से पहले मौत हो चुकी थी। पति ही घर के कमाऊ थे। उस समय मेरी उम्र 16 -17 की थी। शादी के छह माह बाद इसाई मिशनरी द्वारा बगल के गाव घोड़जरा में गाव के दलित बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला गया। उसमें मुझे शिक्षक के रूप में पढ़ाने के लिए चुना गया। उस समय दो समय पढ़ाने में 1200 सौ रुपये मासिक दिया जाने लगा। पति खेत में काम करते रहे। गाव के कुछ लोग मेरे शिक्षक के रूप में काम करने पर भला बुरा कहने लगे। मैंने इसकी परवाह नहीं की।

सुनिता बताती हैं, वर्ष 2008 में जीविका संस्था के लोग गाव आए। दीदी को साथ लेकर समूह बनाने की बात बताई। मैं जीविका से जुड़ गई। एक सप्ताह में 12 दीदी से मिलकर सरस्वती जीविका स्वंय सहायता समूह बनाया। समूह के प्रत्येक सदस्य प्रति सप्ताह दस रुपये अपनी कमाई से बचत कर जमा करने लगे। जीविका अधिकारियों के निर्देश में बैंक में खाते खुलवाया। छह माह में समूह परिपक्वहोने पर पहले 50 हजार का लोने समूह को दिया गया। इससे समूह में जुड़ी दीदीयों का हौसला बढ़ा। मुझे सरस्वती समूह का अध्यक्ष बना दिया गया। अध्यक्ष बनने के बाद पटना में प्रशिक्षण दिया गया। उसके बाद 1 लाख 65 हजार की लागत से गाव में सबमर्सिबल लगाया गया। इसके संचालन के लिए खेतीहर मीना एवं गीता दीदी का चयन हुआ। आज एक दशक से अधिक का समय बीत गया। सबमर्सिबल से गाव के बंजर खेतों में हरियाली आई। समूह के गौरा, गीता, श्रद्धा, सोनमंती बताती है कि सुनिता दीदी के मार्गदर्शन में गाव तरक्की किया है। गाव के सारी महिलाएं आज समूह से जुड़ गई हैं। अब पटवन के लिए किसानों से केवल मेंटनेंस चार्ज लिया जाता है।

सुनीता बताती हैं, समूह निर्माण में अच्छे कार्य के लिए वर्ष 2012 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हवाई जहाज से परेड में शामिल होने के लिए दिल्ली गया। अब स्थिति बढि़या है। तीनों बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर रहे हैं।


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